scriptकोरोना काल मे गांधी फिर हमारी प्रेरणा | Gandhi again our inspiration in the Corona era | Patrika News

कोरोना काल मे गांधी फिर हमारी प्रेरणा

locationनई दिल्लीPublished: Jul 06, 2020 12:21:04 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

सरकार ने लोकल के लिए वोकल का नारा दिया है । आत्मनिर्भर भारत नया संकल्प है । लेकिन जो हालत दिख रहे हैं वह चिंताजनक है ।

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कोरोना काल सचमुच बदले ज़माने की ऐसी तस्वीर पेश कर रहा है जिसकी मानव जाति ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। महात्मा गाँधी ने ग्राम स्वराज व स्वावलम्बन की जो राह दिखाई थी वह अब सरकारों को भी अनिवार्य नजर आ रहा है। बापू के आचार विचार व्यवहार और सदाशयता से भरे हैं। ये विचार ही हमारी प्रेरणा है। गाँधी का त्याग और कर्मठता अप्रतिम थी । देश को आजाद कराने के बाद भी उन्होंने अपने व अपने परिवार के फायदे का लेश मात्र भी विचार नहीं किया। आज सारे संसार में गाँधी सा दूसरा कोई व्यक्तित्व नहीं दिखता .

गांधी ने भारतीय ग्राम्य जीवन को केन्द्र में रखकर विकास के द्वारा राम राज्य लाने का स्वप्न देखा था। आज विकास के लिये दृष्टि में न देहात का ध्यान है और न ही व्यक्ति का । व्यक्ति शिक्षा से ही बन सकता है। और, ग्राम आर्थिक विनियोजना से। परंतु इसके लिये उचित मनोवृत्ति और वैसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिये। विश्व का इस ओर ध्यान नहीं है।

कोरोना ने मजदूरों की गांव वापसी की है । सरकार ने लोकल के लिए वोकल का नारा दिया है । आत्मनिर्भर भारत नया संकल्प है ।
लेकिन जो हालत दिख रहे हैं वह चिंताजनक है, आज समाज धर्म का पुजारी नहीं धन का पुजारी हो गया है। इसलिये सबकी राह नई है , परवाह नई है . और इसी से समस्यायें भी नई है जिनका समाधान आसान नहीं दिखता। यह बात सही है कि विज्ञान की उन्नति से स्थानों के बीच की दूरियां कम हुई है। आवागमन व संचार सुविधायें बढी हैं पर ये सुविधा ही कोरोना संकट बढ़ाने वाली भी दिख रही है।कोरोना ने सब कुछ छिन्न भिन्न कर रखा है ।

ऐसे में गाँधी के सिद्धांतों को अमल में लाना होगा। जनमानस में भाईचारा, सद्भाव, सहिष्णुता, संवेदना, उदारता, कर्मनिष्ठा, कर्मठता और कर्तव्य परायणता का पुनर्भाव जागृत करना होगा । यह सब इसलिए भी क्योंकि लोगो के आचार विचार में स्वार्थ, लोलुपता, विलासिता, अनाचार, दुष्टता बढी है। चूंकि दृष्टि धन केन्द्रित हो गई है इससे काम चोरी, भ्रष्टाचार से संग्रह , भोगवाद पारस्परिक द्वेष और परस्पर कटुता का बोलबाला है। सहयोग, देशप्रेम और सामज्ंस्य का भाव संकुचित होने लगा है , गुणो के इसी ह्रास और भौतिक विकास का दुष्परिणाम सब जगह दिखता है। न केवल मनुष्य के व्यवहार में वरण पर्यावरण पर भी।
भूमि, जल, वायु, आकाश व ताप ये पांचो मूल तत्व जिनसे जीवन है, प्रदूषित हो रहे हैं। कोरोना के बाद लोक डाउन किया है । समस्त सामाजिक व्यवहार, आर्थिक गतिविधियाँ तथा राजनीति भी सांस्कृतिक प्रदूषण से अछूती नहीं रही।
नई दृष्टि से बढे नये दुख, जिनका दिखता अन्त नहीं है
उमस मान बढती जाती है लगता छुपा बसन्त कहीं है।

आज लोगो के विचारों में पवित्रता और सुधार चाहिये। पहले झोपडी के मद्धिम दिये के प्रकाश में दूर तक तो नहीं दिखता था पर उसमें आत्मा का उजास और संबंधो की मिठास का भण्डार था जो आज की गगनचुम्बी भवनों के तीव्र प्रकाश देने वाले विद्युत बल्ब की चकाचौंध में नहीं दिखता।

इस नवीन बदले हुये विश्व में देश विदेश के चौराहो पर स्थापित आपकी मूर्तियां और आपकी याद समेटे देश की मुद्रा में छपी आपकी फोटो जनमानस को गांधी के सिद्धांत नही समझा पा रही है .
मुझे लगता है कि-
अगर गांधी के सोच विचारों का मिल पाता सही सहारा
तो संभवतः भिन्न रूप में विकसित होता देश हमारा
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