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देश के हर व्यक्ति को बनना होगा गांधी

locationनई दिल्लीPublished: Oct 02, 2020 03:14:23 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

गांधीवादी युद्ध लडऩे के लिए लोगों को तैयार करने का काम करना है। गांधीजी ने आत्मनिर्भर गांव का जो नारा दिया था, उस तक लौटने में हमें सौ साल लग गए।

Mahatma Gandhi

महात्मा गांधी

मास्क पहने महात्मा गांधी का चित्र कल्पित करके देखें। कुष्ठ रोगियों की बस्ती में काम कर चुके गांधीजी आज अगर किसी बस्ती में गहरे पैठ कर सेवा करने जाएं,तो पीपीई किट वाला सूट पहन लेंगे या अपनी चिर परिचित वेशभूषा में होंगे, कहा नहीं जा सकता। गांधीजी अपने फिनिक्स स्कूल के छात्रों को शांति निकेतन के अल्प प्रवास से वापस उनके वतन अफ्रीका भेजने के लिए हवाई लॉकडॉउन खुलने का इंतजार कर रहे होते।
वे आज शिक्षा नीति को लंबे विचार और वैज्ञानिक सोच वाली समिति की रिपोर्ट के आधार पर और नई किसान नीति को बहुत जल्दी में लागू करने के कार्य पर बहुत प्रसन्न दिखतेे या खिन्न होते? इस पर अलग-अलग राय हो सकती है। सदा मैदान में यथार्थ के बीच रहे गांधी को कोई बहका या बहला तो नहीं ही पाता।

वर्ष1905 में जब दक्षिण अफ्रीका में प्लेग या काले ज्वर ने पैर पसारे तब महात्मा गांधी ने जो कार्य किया और उसमें वे किस तरह लोगों को जोड़ पाए, वह अनुकरणीय है। उन्होंने ऐसे सेनापति का कार्य किया, जो स्वयं योद्धा रह कर युद्धभूमि में खड़ा रहा। गांधीजी ने इंडियन ओपिनियन के 16 जनवरी 1905 के अंक में 21 ंिबंदु दिए थे, जो उस समय के प्लेग के साथ आज कोरोनाकाल के लिए भी प्रासंगिक हैं। 1935 में जब गुजरात के बोरसद में प्लेग का प्रकोप हुआ, तब सरदार पटेल एक कैंप लगा कर जमीनी रूप से कार्य कर रहे थे और गांधीजी ने भी उनके ठीक निकट शिविर लगा कर साथ में कार्य किया था।
यह आज के समय से कुछ अलग था, जब भोजन आदि सामग्री के रूप में मदद करने तो बहुत से लोग आगे आ रहे हैं, पर इसके अलावा जागरूकता बढ़ाने और अन्य मदद के लिए चुने हुए प्रतिनिधियों से लेकर शीर्ष व्यक्तित्वों तक का जमीनी अभाव साफ दिख रहा है। इसके कुछ वाजिब कारण हैं, तो कुछ गैर जरूरी और खुदगर्ज हिचक भी जिम्मेदार है। आज हमारे पास मास्क से लेकर पीपीई किट और समर्पित कोरोना योद्धाओं तक बहुत कुछ है, पर कोई गांधी नहीं है।

जब घर की चारदीवारी के अंदर भी संक्रमण पहुंच ही रहा है, तो जिम्मेदार लोगों को गांधी बन कर बाहर आना ही चाहिए, ताकि बाकी लोग अंदर रह सकें। इस आधुनिक भारत में गांधी द्वारा कल्पित आत्मनिर्भरता भाव का आ सकना बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। इसके लिए लोक लुभावन मुद्दों का लालच छोड़ कठिनाइयों का जमीनी अनुभव लेने धरती से जुडऩा होगा। इस जुड़ाव का अथ रैलियां और जुलूस नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर और निरोग मन के लिए गांधीवादी युद्ध लडऩे के लिए लोगों को तैयार करने का काम करना है। गांधीजी ने आत्मनिर्भर गांव का जो नारा दिया था, उस तक लौटने में हमें सौ साल लग गए।
अब स्वराज में जी रहे भारत को सुविधाओं में रहने की आदत पड़ गई है। कोरोनाकाल ने हमें गांधीजी की तरह अपने घर के काम स्वयं करने जितना आत्मनिर्भर तो बना ही दिया। पूरे भारत को सर्वोदय का सूर्य चाहिए, तो देश के हर व्यक्ति को गांधी बनना होगा।

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