ओपिनियन

बीज पर कंपनी नहीं, किसान का हक

ये सब कुछ बाजारवाद का दुष्परिणाम है जो किसानों के लिए आर्थिक बोझ के रूप में सामने आता है

Sep 03, 2017 / 03:12 pm

सुनील शर्मा

Illegal trade of seeds in Deputy director agriculture satna

– वंदना शिवा, पर्यावरणविद्, कृषि मामलों की विशेषज्ञ
नवदान्य का अर्थ है नौ बीज, जो जैव विविधता की समृद्धि का प्रतीक हैं। ये नया उपहार भी है यानी बीज का तोहफा, जो कि जीवन का स्रोत है। लहलहाती फसल के लिए जरूरी है बीज आजादी।
कुछ कंपनियों द्वारा बीज की आपूर्ति नियंत्रित की जाती है। ये सब कुछ बाजारवाद का दुष्परिणाम है जो किसानों के लिए आर्थिक बोझ के रूप में सामने आता है। नतीजा यह होता है कि किसान मजदूर बन कर रह गए हैं। बीज के मामले में आजादी खत्म तो समझो कि किसान भी स्वतंत्र नहीं रहा।
भारत में खेती एक बड़ी आबादी के लिए जीवन का आधार है। बाजारवाद की नजर पडऩे से फसली बीज आम किसान के लिए महंगा सौदा हो रहे हैं। प्रकृति की इस देन में किसानों के बीच आखिर बाजार बिचौलिया क्यों बने। बीज पर किसान का पहला हक है, कंपनियों का नहीं। इसे आंदोलन के रूप में सामने लाना होगा…
बीज में भविष्य छिपा है। अतीत के विकास को संजोए बीज के भीतर भविष्य की अपार संभावनाएं छिपी होती हंै। बीज मात्र जीवन का स्रोत नहीं है, यह हमारे अस्तित्व की नींव है। लाखों-करोड़ों वर्षों से बीज इस प्रकार स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ है कि इसके परिणाम स्वरूप पृथ्वी पर विविधता पूर्ण समृद्धि दिखाई देती है। हजारों वर्षों से किसान, खास तौर पर महिलाएं स्वतंत्र रूप से बीज को परस्पर साझेदारी और प्रकृति के साथ मिल कर बीज की विविधता को कुछ इस प्रकार विकसित कर रही हैं कि प्रकृति प्रदत्त उपहार को विभिन्न संस्कृतियों की आवश्यकता अनुरूप अपनाया जा सके।
दरअसल, जैव विविधता और सांस्कृतिक विविधता ने ही परस्पर एक दूसरे को विकसित किया है या यूं कहें, आकार दिया है। बीज खाद्य श्रृंखला की पहली कड़ी है और जीवन के भावी विकास का स्रोत भी। इसलिए इन बीजों का संरक्षण कर इन्हें भावी पीढिय़ों को हस्तांतरित करना हमारा कर्तव्य भी है और जिम्मेदारी भी। बीज उगाना और किसानों के बीच इनका परस्पर आदान-प्रदान जैव विविधता और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने का आधार है। आज प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता को हिंसा और अन्य खतरों का सामना करना पड़ रहा है। बीज की स्वतंत्रता पर होने वाले खतरे का असर मानव जीवन और हमारे ग्रह दोनों पर ही पड़ता है। पिछले कुछ दिनों से बीजों का विकास रोकने के भी प्रयास हो रहे हैं। जीवाणु रहित और एक ही बार (सिंगल यूज) के लिए उपयोगी बीज तैयार कर और उनका पेटेंट करवा कर ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं।
वैश्विक स्तर के साथ ही भारत में भी इस प्रकार की परिपाटी चलन में है। हमारे यहां किसी भी उत्पाद के पेटेंट से आशय है-उस उत्पाद का स्वामित्व, निर्माण, बिक्री का अधिकार उसी व्यक्ति या संस्था को होगा, जिसने पेटेंट करवाया है। इस प्रकार एक बीज के पेटेंट का मतलब तो यह हुआ कि एक जीव को इस प्रकार परिभाषित किया जाना जैसे वह किसी कॉरपोरेशन का कृत्रिम उत्पाद हो। मेरी राय में यह पूर्णत: अवैज्ञानिक तरीका है, क्योंकि बीज स्वत: स्फुटित, स्वविकसित और स्वत: नवीनीकृत होने वाले एवं स्ववृद्धि करने वाले जैव तंत्र हैं। बीज कोई मशीन नहीं है। इसलिए बीज का पेटेंट करना मेरे हिसाब कतई न्यायविरुद्ध और अनैतिक है। बीज के पेटेंट का मतलब है यदि कोई किसान बीज का संरक्षण कर रहा है तो वह एक प्रकार से ‘एक बुद्धिमान संपत्ति चोर है।’ लेकिन इसका अर्थ कहीं अधिक व्यापक है।
यह ऐसी प्रणाली है, जिसके तहत बीज पर व्यावसायिक एकाधिकार हो गया है। इसके तहत कुछ कंपनियों द्वारा बीज की आपूर्ति नियंत्रित की जाती है। ये सब कुछ बाजारवाद का दुष्परिणाम है जो कि किसानों के लिए अतिरिक्त आर्थिक बोझ के रूप में सामाने आता है। इस समूची प्रक्रिया से आखिरकार ये नतीजा यह होता है कि किसान मजदूर बन कर रह गए हैं। जहां बीज के मामले में स्वतंत्रता समाप्त हुई, आप समझो कि किसान भी स्वतंत्र नहीं रहा। किसान बीज के मामले में अपनी आजादी को खो देता है। बाजारवाद के कारण पैदा हुई स्थिति में किसानों के हितों को सुरक्षित रखने के लिए एक पहल की गई है। हमने ‘नवदान्य’ की शुरूआत की है।
नवदान्य का अर्थ है नौ बीज, जो जैव विविधता की समृद्धि का प्रतीक हैं। इसका आशय नया उपहार भी है यानी बीज का तोहफा, जो कि जीवन का स्रोत है। खेत में फसल लहलहाने के लिए जरूरी है बीज को लेकर आजादी। वर्ष 1987 से हम बीज अखण्डता और बीज स्वतंत्रता (बीज स्वराज) के लिए संघर्षरत हैं। नवदन्य जैसे आंदोलनों ने बीज की विविधता, नवीनीकरण, संकलन और बीज स्वतंत्रता को बल दिया है। ऐसे कानून बन गए हैं, जो बीज की अखंडता, किसानों के अधिकार, आदर्शों, पारिस्थितिकी, विविधता और बीज के भावी विकास के लिए अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करते हैं। साथ ही किसानों को बीज संरक्षण और आदान-प्रदान की भी छूट देते हैं।
हमारा संघर्ष बाजार के उन तीन व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के खिलाफ है, जो रासायनिक पदार्थ और जीएमओ बीज बेचते हैं। ये किसानों से बीज लगान के तौर पर रॉयल्टी वसूलते हैं। ये तीन प्रतिष्ठान हैं-मॉन्सेंटो-बेयर, डाउ-ड्यूपॉन्ट, सिंन्जेंटा केम चाइना।
वर्ष 1987 में मुझे एक बैठक में बुलाया गया, जहां उपस्थित व्यवसायियों का कहना था कि वे जीएमओ, पेटेंट और गैट (जीएटीटी) जैसे मुक्त व्यापार समझौतों के जरिये बीजों पर नियंत्रण रखेंगे और हर किसान को प्रत्येक मौसम में उनसे ही बीज खरीदने होंगे। हमारा संकल्प है कि मैं बीज की विविधता और उसे बचाने, संवद्र्धित करने और मुक्त आदान-प्रदान करने के किसानों के अधिकारों की रक्षा करेंगे। विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के ट्रिप्स (ट्रेड रिलेटेड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स एग्रीमेंट) के मद्देनजर बीज संरक्षण करना बेहद जरूरी हो गया है, क्योंकि इस समझौते के तहत ही जीएमओ, बीजों के पेटेंट और रॉयल्टी वसूली जैसी संभावनाओं के द्वार खुले हैं। यही वजह है कि मैंने जीएमओ, बीटी कॉटन और मॉन्सेंटो द्वारा की जा रही अवैध लगान यानी रॉयल्टी वसूली को चुनौती दी है। जीएमइओ सरसों की क्या जरूरत थी? बीज स्वतंत्रता यानी बीज स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है! (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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