मंदसौर गोलीकांड के कारण सत्ता जाने की बात हालांकि भाजपा से जुड़े नेता नहीं मानते। वे कहते हैं कि नाराजगी होती तो मंदसौर लोकसभा सीट में पडऩे वाली 8 में से 7 सीटों पर कांग्रेस की हार नहीं हुई होती। जिस मल्हारगढ़ विधानसभा क्षेत्र में 6 किसान मारे गए, वहां से भाजपा जहां हर बार & से 5 हजार वोटों से जीतती थी, वहां इस बार 11 हजार वोटों से जीती।
मंदसौर शहर विधानसभा सीट से भाजपा के यशपाल सिंह सिसौदिया लगातार तीसरी बार जीते, वह भी 18 हजार वोटों के अंतर से। कांग्रेस ने जो एक मात्र सुवासरा सीट जीती, वह सिर्फ &50 वोटों के अंतर से। तर्क जो भी हो लेकिन हकीकत यह है कि भाजपा की सरकार को रा’य की जनता ने नकार दिया। गांव से करीब ढाई किलोमीटर पहले बही फंटा आया। यहीं पर सीआरपीएफ की गोलियों से तीन किसानों की मौत हुई थी।
हाल ही मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद बनी कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के गृहमंत्री बाला ब‘चन ने घोषणा की है कि किसान आंदोलन से जुड़े मुकदमों की फाइलें फिर से खोली जाएंगी। पिपलियामंडी गांव, जहां पर आंदोलन की सबसे बुरी मार पड़ी थी, के बीचोबीच स्थित जिस दुकान को उपद्रवियों ने फूंक दिया था, उसके मालिक अनिल जैन ने बताया कि 18 लाख रुपए का मुआवजा मिला, जबकि नुकसान कई गुना ’यादा था। अनिल के अनुसार, ‘मुआवजा बहुत कम था लेकिन लोगों ने कहा कि सरकार तो कुछ नहीं देती है, जो दे रही है वही ले लो। उस राशि से जैसे-तैसे जीवन की गाड़ी फिर शुरू की है।’ गांव से लेकर बही फंटा के बीच 1 से 6 जून तक आंदोलन-कारियों का ही राज रहा। इस दौरान 70-80 ट्रक, 200 दुपहिया वाहन आग के हवाले किए गए। जलाए गए ट्रकों में भी मोटरसाइकिलें, कारें, स्पेयर पाट्र्स आदि भरे हुए थे। एक और गौरतलब बात यह है कि गोलीकांड में मारे गए छहों लोग पाटीदार थे। आगे चलकर यह किसान आंदोलन की बजाय पाटीदार आंदोलन बन गया। सरकार ने आंदोलन को रोकने के समय जितनी लापरवाही दिखाई, उतनी ही तत्पर वह किसानों की मौत के बाद हो गई।
मृतक किसानों के आश्रितों को एक-एक करोड़ और घायलों को 50-50 लाख रुपए मुआवजा देने के साथ ही किसानों की सारी मांगें मान ली गईं। इससे मंदसौर जिले के किसान तो संतुष्ट हो गए लेकिन इसके बाद हुई राजनीति के चलते सरकार की बातें शेष रा’य के किसानों के गले नहीं उतरीं। पूरे मध्य प्रदेश के किसान गोलीबारी के चलते हुई छह मौतों के कारण शिवराज से नाराज ही रहे। भाजपा के प्रदेश महामंत्री बंशीलाल गुर्जर, जो दो बार प्रदेश भाजपा किसान मोर्चा अध्यक्ष भी रह चुके हैं, ने बताया कि बाद में यह बात बिल्कुल साफ हो गई कि आंदोलन को कांग्रेस ने डोडा चूरा के तस्करों के साथ मिल कर भडक़ाया।
अफीम की खेती वाले इस जिले में डोडा चूरा तस्कर खासे सक्रिय हैं और तस्करों के तार राजनेताओं से भी जुड़े हुए हैं। राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ जिले से सटे मंदसौर के तस्करों के तार राजस्थान के बड़े तस्करों से भी जुड़े हुए हैं, जिनका राजनीति में दखल बताया जाता है। सरकार की सख्ती के कारण तस्करों ने इस आंदोलन की साजिश रची थी कि पकड़-धकड़ कर रही पुलिस का ध्यान आंदोलन से निपटने में लगे और वे अपना माल पार करा सकें। गुर्जर कहते हैं, विधानसभा चुनाव में मंदसौर जिले की कुल आठ में से 7 सीटों पर भाजपा की जीत कांग्रेस पर हमारे आरोप पर जनता की मुहर है। उन्होंने मेरे सवाल पर माना कि हम शुरुआत में इस आंदोलन की गंभीरता को समझ नहीं पाए और बाद में मंदसौर की स‘चाई भाजपा पूरे प्रदेश की जनता तक पहुंचाने में विफल रही। असल में मंदसौर जिले में तो किसानों को रा’य के अन्य हिस्सों से काफी पहले ही वह सब कुछ मिलना शुरू हो गया था, जिसके लिए आंदोलन किया गया। यहां तो आंदोलन का कारण ही नहीं था। लेकिन सरकार और संगठन के स्तर पर समय पर कदम नहीं उठाए जाने से मामला इतना बड़ा हो गया, जिसका किसी को अंदाजा नहीं था।
मंदसौर में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने को लेकर कांग्रेस प्रदेश महामंत्री राजेश रघुवंशी से बात हुई तो उन्होंने इसका कारण कांग्रेस में टिकट वितरण में गड़बड़ी को बताया। उनका कहना था कि मंदसौर की पूर्व सांसद मीनाक्षी नटराजन की इस बार टिकट वितरण में नहीं चली। मीनाक्षी दस साल से इलाके में सक्रिय हैं, उन्होंने अपनी टीम खड़ी की है, पर इस बार उन्हें हाशिये पर खड़ा कर दिया गया।
राजनीतिज्ञों के अपने-अपने तर्क होते हैं। रा’य में जहां कांग्रेस की मुश्किल रा’य स्तर के नेतृत्व का एक चेहरा न होना है वहीं भाजपा की मुश्किल यह है कि शिवराज के अलावा उसके पास कोई चेहरा नहीं है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के इलाके में विधानसभा चुनावों में गत लोकसभा चुनावों के मुकाबले कांग्रेस मजबूती से उभरी है। छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र जहां से कमलनाथ ने चुनाव जीता था उसकी सभी विधानसभा सीटें कांग्रेस की झोली में आईं। छिंदवाड़ा क्षेत्र में कांग्रेस का यह प्रदर्शन प्रदेश में कांग्रेस सरकार आने के पीछे बड़ा आधार बना। वहीं कांग्रेस में नंबर दो ’योतिरादित्य सिंधिया के ग्वालियर इलाके में पिछली बार की तुलना में कांग्रेस का असर कम हुआ है। पिछली बार ढाई लाख से ’यादा वोटों से जीतने वाले सिंधिया के इलाके में हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा के कुल वोट सिंधिया के कुल वोटों से 16 हजार ’यादा रहे। इसका अर्थ है कि आज की तारीख में इस संसदीय सीट के मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में वोट दिया है।
बहरहाल, ‘माफ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज’ के नारे को दरकिनार कर इस बार मध्य प्रदेश की जनता ने ‘रहने दो शिवराज, हमारे तो कमलनाथ’ का नारा अपना लिया। अब गेंद कांग्रेस और कमलनाथ के पाले में है। कर्ज माफी समेत बेरोजगारी जैसे जनता से किए वादे कमलनाथ और कांग्रेस कितना पूरा कर पाते हैं, जनता इस पर नजर जमाए बैठी है। एक और अहम बात यह है कि कांग्रेस आलाकमान गुटों में बंटी पार्टी को कितना एक रख पाते हैं और कमलनाथ की उनकी पार्टी में ही उनके शुभचिंतक उनकी कितनी ‘कार सेवा’ करते हैं, इसी पर सरकार का भविष्य निर्भर है। जनता ने आधा-अधूरा ही सही कांग्रेस व कमलनाथ पर जो विश्वास जताया है, उस पर वे कितना खरे उतरते हैं, इसके नतीजे &-4 माह बाद होने वाले लोकसभा के चुनाव में सामने आ जाएंगे।
लोकसभा में नहीं गूंजे विकास के सवाल प्रदेश में विकास की बात करें तो रा’य में भाजपा के 26 सांसदों में से कोई ऐसा नाम नहीं है जिसने अपने इलाके में बहुत ’यादा सक्रिय रह कर विकास का कोई बड़ा काम कराया हो। यहां तक कि लोकसभा में इलाके के विकास को लेकर सवाल उठाने में भी रुचि नहीं दिखाई गई।ऐसे में सांसदों के कामकाज को यदि भाजपा आगामी लोकसभा चुनावों का आधार बनाएगी तो उसकी राह आसान नहीं होगी। भाजपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि सांसदों के व्यक्तिगत रिपोर्ट कार्ड की बजाय पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र की अपनी सरकार व उसके कामकाज को अ‘छा बताकर मध्यप्रदेश में वोट लेने की कोशिश करेगी। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, छिंदवाड़ा के कमलनाथ मुख्यमंत्री बनने के बाद लोकसभा से इस्तीफा दे चुके हैं। ’योतिरादित्य और कांतिलाल भूरिया केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस अपने सांसदों को मजबूत और भाजपा के सांसदों के रिपोर्ट कार्ड को कमजोर बताने के साथ केंद्रीय स्तर के मुद्दों को भी प्रदेश की जनता के समक्ष उठाएगी। फैसला जनता करेगी कि किस की बात में कितना वजन है।