बहुत खुशी की बात है कि कोविड की मार के बाद मृत पड़े पर्यटन उद्योग में इस बढ़ती लोकप्रियता ने नए प्राण फूंक दिए और जिम कॉर्बेट व रणथम्बौर के साथ जयपुर के झालाना के बघेरे के कारण मशहूर जंगल में भी पर्यटकों की संख्या बढ़ी हुई है। पर इस सबके बीच जो परेशनियां देखने को मिलती हैं उनकी ओर ध्यान नहीं दिया गया तो फिर हालत बिगड़ेंगे। विश्व पर्यटन संघ ने वन्यजीव पर्यटन के दायरे में वे सब गतिविधियां लीं जो लोगों को वन्यजीवों से जोड़ती हों चाहे आप देखें, तस्वीरें लें या चिडिय़ाघर या जन्तुघर जाएं या कुछ खास क्षेत्रों में मछली पकड़ें या कुछ अन्य देशों में अनुमति पत्र लेकर शिकार करें। अब इनमें भी कुछ गतिविधियां साहसिक पर्यटन से जुड़ जाती हैं। पर पर्यटन से जुडऩे का मतलब है वे व्यवस्थाएं जो पर्यटकों को एक अच्छा अनुभव दें। कुछ प्रचार के चलते सारा ध्यान अभयारण्य की सफारी पर ऐसा सिमट गया कि जिन बच्चों की उम्र, रुचि व धैर्य सीमा को ध्यान में रख कर चिडिय़ाघर मुफ्त में दिखाना चाहिए उन्हें ढाई से चार घंटे गोद में बैठा कर जंगल सफारी कराई जा रही है। जाहिर है यह हर एक के लिए परेशानी का सबब है। दरअसल, उम्र तय करते हुए बच्चों का भी टिकट निर्धारित होना चाहिए और उन्हें विद्यार्थियों की तरह बैठने वाले पर्यटकों में गिनना चाहिए। उधर ऑनलाइन टिकट की व्यवस्था के बाद भी आम पर्यटक का टिकट खरीदना सिरदर्द रहता है।
क्यों ऐसा है कि एजेंट को ज्यादा पैसे देने पर मनमुताबिक समय पर उसकी ही गाड़ी हासिल की जा सकती है, बावजूद इसके कि रॉस्टर व्यवस्था लागू है। फिर इंटरप्रिटेशन सेंटर को जंगल यात्रा का अनुभव बनाने में किसी की रुचि नहीं जबकि इसमें रुचि होनी चाहिए ताकि सभी को पूरी जानकारी मिले, जागरूक किया जा सके कि पर्यटक वन्यजीवों को देख कर चिल्लाए नहीं, सही रंग के कपड़े पहनें आदि। यह भी कि जंगल और जीवों की जानकारी देने वाले गाइड या सफारी चालकों का सारा ध्यान टाइगर या लेपर्ड पर ही केंद्रित न हो।
क्यों ऐसा है कि एजेंट को ज्यादा पैसे देने पर मनमुताबिक समय पर उसकी ही गाड़ी हासिल की जा सकती है, बावजूद इसके कि रॉस्टर व्यवस्था लागू है। फिर इंटरप्रिटेशन सेंटर को जंगल यात्रा का अनुभव बनाने में किसी की रुचि नहीं जबकि इसमें रुचि होनी चाहिए ताकि सभी को पूरी जानकारी मिले, जागरूक किया जा सके कि पर्यटक वन्यजीवों को देख कर चिल्लाए नहीं, सही रंग के कपड़े पहनें आदि। यह भी कि जंगल और जीवों की जानकारी देने वाले गाइड या सफारी चालकों का सारा ध्यान टाइगर या लेपर्ड पर ही केंद्रित न हो।
एक और बड़ी विडम्बना है वाइल्डलाइफ बोर्ड और मॉनिटरिंग समिति के सदस्यों का निरंतर आना-जाना। उनका आना सफारी चालकों के लिए वैसा ही रहता है जैसे कि किसी बाघ-बघेरे का दिखना! सदस्य एक साथ आएं या अलग-अलग आएं? उनके आने का एजेंडा और प्रोटोकोल, जाहिर है कि सामान्य पर्यटक और फोटोग्राफर से हट कर होना चाहिए ताकि वे उनके लिए तय बिंदुओं पर रिपोर्ट भी दे पाएं। पर्यटन आज की जरूरत है चाहे किसी भी नाम से चलाएं पर याद रहे कि ठीक से चलाना उससे भी ज्यादा जरूरी है।