script

गोवा में राजनीतिक अस्थिरता का ज्वार

locationनई दिल्लीPublished: Mar 14, 2019 02:22:54 pm

विधानसभा चुनाव से बड़ी लोकसभा चुनाव की चुनौतियां
पिछले लोकसभा चुनाव के तीन साल बाद ही मोदी लहर हुई ठंडी
पर्रिकर का विकल्प कौन होगा इस पर भी मंथन

Goa Lok Sabha Election 2019

गोवा में राजनीतिक अस्थिरता का ज्वार

राजेश कसेरा, पणजी से

देश के तीन बड़े राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सरकार गंवाने के बाद संकट से घिरी भारतीय जनता पार्टी को अपने एक और गढ़ गोवा में भी संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। यहां सत्तारूढ़ भाजपा प्रदेश में सरकार बचाने के लिए संघर्ष कर रही है तो मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की गंभीर बीमारी के बाद राजनीतिक अस्थिरता काफी बढ़ गई है।
पर्रिकर के कद जितना बड़ा चेहरा नहीं होने से भाजपा को लोकसभा चुनाव में अपनी दो सीटों को बचाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है। वर्ष 2014 में देश में मोदी लहर के बाद गोवा की जनता ने भी पूरा आशीर्वाद बरसाया। उत्तर गोवा और दक्षिण गोवा की दोनों सीटों पर भाजपा के सांसद श्रीपद नाइक और नरेन्द्र सावईकर जीते, लेकिन मोदी लहर का यह जादू तीन साल बाद ही फीका पड़ गया।
पर्रिकर के केन्द्र सरकार में जाने और राज्य में भाजपा के विकास के रथ का मजबूत सारथी नहीं मिलने से जनता ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सबक सिखा दिया। विधानसभा की 40 सीटों में से भाजपा के खाते में 14 ही आईं और जोड़-तोड़ कर सरकार बना ली। गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीपीएफ) के तीन, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी (एमजीपी) के तीन, एनसीपी के एक और दो निर्दलीय के गठबंधन से ताना-बाना बुन लिया, जो वर्ष 2019 के आने तक किसी को भी नहीं सुहा रहा।
गोवा में आरएसएस से आने वाला एकमात्र चेहरा प्रमोद सावंत हैं
सहयोगी दल किसी न किसी मुद्दे पर भाजपा को घेरते रहते हैं तो पार्टी में पर्रिकर को छोड़कर कोई नेता नहीं जो सबको साथ लेकर बढ़ सके। ऐसे में गोवा में भाजपा को साख और सत्ता बचाने के लिए फिर से पर्रिकर को कमान सौंपनी पड़ी, लेकिन मौजूदा हालात ऐसे हैं कि पर्रिकर सहित तीन मंत्री गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। भाजपा के कुल विधायकों की संख्या 11 रह गई है। इनमें से एक सदन के अध्यक्ष हैं, यानी नंबर संख्या के लिहाज़ से विधायकों की संख्या महज 10 है।
पर्रिकर नहीं तो दूसरा कौन

भाजपा को लेकर गोवा में चर्चा है कि पार्टी उन्हीं को मुख्यमंत्री बनने का मौका देती है, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़ा हो। इसके मद्देनजर गोवा में आरएसएस से आने वाला एकमात्र चेहरा प्रमोद सावंत हैं, जो विधानसभा अध्यक्ष भी हैं। सावंत दो बार विधायक बन चुके हैं और भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी थे।
इधर, पार्टी में ही सावंत के विरोध में स्वर भी गूंज रहे हैं। कई नेताओं का कहना है कि वे नए हैं और इतना बड़ा अवसर देना जल्दबाजी होगा। सहयोगी दल भी सावंत के लिए तैयार नहीं होंगे और उनके कदम खींचने से सरकार खतरे में आ जाएगी। हालांकि इस दौड़ में रह-रहकर श्रीपद नाइक का नाम भी सामने आ रहा है, जो केंद्र सरकार में आयुष मंत्री है। पर जिस तरह से नाइक की छवि सहज और सरल व्यक्तित्व है, वह पार्टी और सहयोगी दलों को पचेगी नहीं।
भाजपा के सहयोगी दल दिखा रहे हैं आंख

गोवा में सरकार को बचाने के लिए भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन का मन बनाया तो सहयोगी दलों महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के प्रमुख सुधीर धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने मना कर दिया कि उनका समर्थन मनोहर पर्रिकर को है, भाजपा को नहीं। यहां कांग्रेस 16 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर सरकार बनाने का दावेदार थी, लेकिन भाजपा ने दांव-पेंच लगाकर सत्ता हथिया ली। विशेषज्ञों की मानें तो फिलहाल भाजपा यहां पर गहरे संकट के दौर में है। इसका असर यकीनन लोकसभा चुनाव पर देखने को मिलेगा।
मौकापरस्त दल ज्यादा, भरोसेमंद कम

गोवा में जोड़-तोड़ कर सत्ता हासिल करने का खेल चलता रहा है। स्थानीय दल ज्यादातर सत्ता की लालसा में किसी भी शीर्ष पार्टी के साथ खड़े होने को तैयार हो जाते हैं। भाजपा की वर्तमान सरकार के सहयोगी भी मौकापरस्त ज्यादा हैं और भरोसेमंद कम। पॉवर सेंटर में बने रहने के लिए पाला बदल सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस को छोड़कर सरकार में शामिल हुए स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे पर भी भाजपा कतई भरोसा नहीं कर सकती, वह इसलिए कि कांग्रेस कभी भी राणे को मुख्यमंत्री पद का लोभ दे राजनीतिक खेल कर सकती है।
कुंद सी पड़ी है कांग्रेस

गोवा में सैलानियों का शोर भले पूरे राज्य में गूंजता हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में 40 में से 16 सीटें जीत कर भी सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस का जोर कहीं नजर नहीं आता। गत लोकसभा चुनाव में लोकसभा की दोनों सीटें गंवाने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता का सबसे अधिक समर्थन पाने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। इसके बाद वह मजबूत विपक्ष की भूमिका को निभाने में भी सक्षम नहीं रह पाई।
बीते आठ माह से राज्य में चल रही उठापटक के बीच भी कांग्रेस आपसी धड़ेबाजी में उलझी रही और राजनीतिक संकट का लाभ उठाकर सत्ता वापसी नहीं कर पाई। इसके दीगर भाजपा ने कांग्रेस के दो विधायकों को शामिल करके कांग्रेस को भारी झटका दे दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने गोवा में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए वरिष्ठों को किनारे करके युवा नेताओं के हाथ में कमान सौंपी, लेकिन यह निर्णय भी पार्टी के वरिष्ठों नहीं सुहाया। आगामी 2019 के चुनाव में जनता की खामोशी भले सत्तारुढ़ दल को चौंकाने वाले परिणाम दे सकती है, पर यह कांग्रेस के ताकतवर होने का संकेत भी नहीं।
एक ही सवाल, केन्द्र के साथ राज्य के चुनाव भी होंगे?

सत्ता संघर्ष के बीच गंभीर रोग से जूझ रहे पर्रिकर को केन्द्र में रखकर भाजपा अपनी सरकार को बचा रही है, उसने राज्य में यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि कहीं लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी तो नहीं है। भाजपा केन्द्र में वापसी के साथ गोवा में भी भावनात्मक मुद्दों को भुनाकर बहुमत के आंकड़े को छू लें। हालांकि गोवा की राजनीति पर समझने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा का लक्ष्य जैसे-तैसे लोकसभा चुनाव तक राज्य की सरकार को बचाए रखना है ।
सहयोगी दल किसी न किसी मुद्दे पर भाजपा को घेरते रहते हैं तो पार्टी में पर्रिकर को छोड़कर कोई नेता नहीं जो सबको साथ लेकर बढ़ सके। ऐसे में गोवा में भाजपा को साख और सत्ता बचाने के लिए फिर से पर्रिकर को कमान सौंपनी पड़ी, लेकिन मौजूदा हालात ऐसे हैं कि पर्रिकर सहित तीन मंत्री गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। भाजपा के कुल विधायकों की संख्या 11 रह गई है। इनमें से एक सदन के अध्यक्ष हैं, यानी नंबर संख्या के लिहाज़ से विधायकों की संख्या महज 10 है।
पर्रिकर नहीं तो दूसरा कौन

भाजपा को लेकर गोवा में चर्चा है कि पार्टी उन्हीं को मुख्यमंत्री बनने का मौका देती है, जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पृष्ठभूमि से जुड़ा हो। इसके मद्देनजर गोवा में आरएसएस से आने वाला एकमात्र चेहरा प्रमोद सावंत हैं, जो विधानसभा अध्यक्ष भी हैं। सावंत दो बार विधायक बन चुके हैं और भाजपा युवा मोर्चा के अध्यक्ष भी थे। इधर, पार्टी में ही सावंत के विरोध में स्वर भी गूंज रहे हैं। कई नेताओं का कहना है कि वे नए हैं और इतना बड़ा अवसर देना जल्दबाजी होगा। सहयोगी दल भी सावंत के लिए तैयार नहीं होंगे और उनके कदम खींचने से सरकार खतरे में आ जाएगी। हालांकि इस दौड़ में रह-रहकर श्रीपद नाइक का नाम भी सामने आ रहा है, केंद्र सरकार में आयुष मंत्री है। पर जिस तरह से नाइक की छवि सहज और सरल व्यक्तित्व है, वह पार्टी और सहयोगी दलों को पचेगी नहीं।
भाजपा के सहयोगी दल दिखा रहे हैं आंख: गोवा में सरकार को बचाने के लिए भाजपा ने नेतृत्व परिवर्तन का मन बनाया तो सहयोगी दलों महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के प्रमुख सुधीर धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने मना कर दिया कि उनका समर्थन मनोहर पर्रिकर को है,भाजपा को नहीं। यहां कांग्रेस 16 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के तौर पर सरकार बनाने का दावेदार था, लेकिन भाजपा ने दांव-पेंच लगाकर सत्ता हथिया ली। विशेषज्ञों की मानें तो फिलहाल भाजपा यहां पर गहरे संकट के दौर में है। इसका असर यकीनन लोकसभा चुनाव पर देखने को मिलेगा।
मौकापरस्त दल ज्यादा, भरोसेमंद कम: गोवा में जोड़-तोड़ कर सत्ता हासिल करने का खेल चलता रहा है। स्थानीय दल ज्यादातर सत्ता की लालसा में किसी भी शीर्ष पार्टी के साथ खड़े होने को तैयार हो जाते हैं। भाजपा की वर्तमान सरकार के सहयोगी भी मौकापरस्त ज्यादा है और भरोसेमंद कम। पॉवर सेंटर में बने रहने के लिए पाला बदल सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस को छोडकऱ सरकार में शामिल हुए स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे भी भाजपा कतई भरोसा नहीं कर सकती, वह इसलिए कि कांग्रेस कभी भी राणे को मुख्यमंत्री पद का लोभ दे राजनीतिक खेल कर सकती है।
कुंद सी पड़ी है कांग्रेस: गोवा में सैलानियों का शोर भले पूरे राज्य में गूंजता हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में 40 में से 16 सीटें जीत कर भी सत्ता से बाहर बैठी कांग्रेस का जोर कहीं नजर नहीं आता। गत लोकसभा चुनाव में लोकसभा की दोनों सीटें गंवाने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में जनता का सबसे अधिक समर्थन पाने के बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। इसके बाद वह मजबूत विपक्ष की भूमिका को निभाने में भी सक्षम नहीं रह पाई। बीते आठ माह से राज्य में चल रही उठापटक के बीच भी कांग्रेस आपसी धड़ेबाजी में उलझी रही और राजनीतिक संकट के का लाभ उठाकर सत्ता वापसी नहीं कर पाई। इसके दीगर भाजपा ने कांग्रेस के दो विधायकों को शामिल करके कांग्रेस को भारी झटका दे दिया। राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने गोवा में कांग्रेस को मजबूत बनाने के लिए वरिष्ठों को किनारे करके युवा नेताओं के हाथ में कमान सौंपी, लेकिन यह निर्णय भी पार्टी के वरिष्ठों नहीं सुहाया। आगामी 2019 के चुनाव में जनता की खामोशी भले सत्तारुढ़ दल को चौंकाने वाले परिणाम दे सकती है, पर यह कांग्रेस के ताकतवर होने का संकेत भी नहीं।
एक ही सवाल, केन्द्र के साथ राज्य के चुनाव भी होंगे?
सत्ता संघर्ष के बीच गंभीर रोग से जूझ रहे पर्रिकर को केन्द्र में रखकर भाजपा अपनी सरकार को बचा रही है, उसने राज्य में यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि कहीं लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव की तैयारी तो नहीं है। भाजपा केन्द्र में वापसी के साथ गोवा में भी भावनात्मक मुद्दों को भुनाकर बहुमत के आंकड़े को छू लें। हालांकि गोवा की राजनीति पर समझने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा का लक्ष्य जैसे-तैसे लोकसभा चुनाव तक राज्य की सरकार को बचाए रखना है ।

ट्रेंडिंग वीडियो