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भगवान पर भारी वीआईपी

Published: Aug 11, 2015 10:52:00 pm

भीड़ काबू करने की नाकामी हर बार गहरे घाव दे जाती
है लेकिन सरकारें हैं कि मुआवजे की घोषणा करने के साथ ही हादसे की जांच की समिति
बनाकर गहरी नींद सो जाती हैं

VIP philosophy

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वीआईपी कल्चर ने देश को बर्बाद करके रख दिया है फिर भी हम समझने और संभलने को तैयार नहीं हैं। चुनाव से पहले जनता के “सेवक” और चुनाव बाद “मालिक” सा आचरण करने वाले नेताओं के साथ-साथ नौकरशाहों की जमात ने आम आदमी का जीना दूभर कर रखा है। मंदिरों में दर्शन करने हों तो उन्हें “वीआईपी” के निकलने तक इंतजार करना पड़ता है।

सड़क पर चलो तो “वीआईपी” की गाड़ी गुजरने तक रूके रहो। झारखंड के देवघर मंदिर में “वीआईपी दर्शन” 11 जिंदगियों को लील गया तो 50 श्रद्धालुओं को घायल कर गया। सावन के दूसरे सोमवार को मंदिर में मची भगदड़ का कारण वीआईपी के लिए अलग से व्यवस्था रहा। इसके चलते आम श्रद्धालुओं को रोकना पड़ा औरे भगदड़ मच गई। हर साल किसी न किसी शहर में मचने वाली भगदड़ श्रद्धालुओं को भगवान के घर में ही मौत की नींद सुला देती है।

देवघर के मंदिर में जब डेढ़ लाख भक्त कतार में खड़े हों तो “वीआईपी दर्शन” का क्या औचित्य? भगवान के दरबार में भी अपने आपको “खास” मानकर अलग से दर्शन करने वालों पर भगवान कितने कृपालु होते होंगे ये तो पता नहीं लेकिन उनकी इस गलती की सजा भुगतनी पड़ती है उन श्रद्धालुओं को जो घंटों लाइन में लगकर जान गंवाने को मजबूर होते हैं। मंदिरों में भगदड़ को लेकर हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई बार नाराजगी जताने के बावजूद मंदिर प्रबंधन और राज्य सरकारें सबक लेने को तैयार नहीं हैे।

इसी साल की शुरूआत में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को फटकार लगाते हुए मंदिरों में भगदड़ रोकने के लिए देशव्यापी समान नीति अपनाने पर जोर दिया था। पिछले चंद सालों की घटनाओं पर नजर डालें तो जोधपुर के मेहरानगढ़, हिमाचल के नैना देवी और महाराष्ट्र के मंथरा देवी मंदिर के हादसे आंखों के सामने घूम जाते हैं।

भगदड़ के पीछे हर मामले में एक-सी कहानी दोहराई जाती है। भीड़ को काबू करने की नाकामी हर बार गहरे घाव दे जाती है लेकिन सरकारें हैं कि मुआवजे की घोष्ाणा करने के साथ ही हादसे की जांच की समिति बनाकर गहरी नींद सो जाती हैं। शायद नए हादसे के इंतजार में। मंदिरों में भीड़ नियंत्रण में रखना सरकारों का काम है न कि कोर्ट का।

जब कोई व्यक्ति इस काम के लिए कोर्ट का दखल चाहता है तो इसका अर्थ है कि उसका सरकारी व्यवस्था में भरोसा नहीं है। देवघर मंदिर जैसे हादसे फिर ना हों इसके लिए केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों और मंदिर प्रबंधनों को मिलकर कारगर व्यवस्था बनाने पर ध्यान देना चाहिए। ऎसे में जांच कमेटी बनाने की बजाय पुरानी जांच रिपोर्ट देखना ही काफी होगा।
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