सरकारी मशीनरी पेपर आउट और नकल रोकने के लिए एक उपाय करती है, गिरोह तत्काल उसकी काट निकाल लेता है। ये गिरोह साइबर और इलेक्ट्रॉनिक्स के नजरिए से पारंगत हैं, लेकिन सत्ता व पुलिस का भय नहीं होने से दिमाग का इस्तेमाल गलत दिशा में कर रहे हैं। एसओजी जैसी उच्च स्तरीय जांच एजेंसी से लेकर थाने के सिपाही तक पेपर आउट या नकल गिरोह को सूंघ-सूंघकर जेलों में डाल रहे थे। इस धरपकड़ की सुर्खियां अखबारों में बन रही थीं। दुस्साहसियों के दिल के भीतर डर नहीं बैठ पाया और रीट का पेपर फिर भी आउट हुआ। पूर्व में हुए नीट में जब अभ्यर्थियों के मास्क और जूतों में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस मिले, तो रीट की गाइडलाइन के तहत इन्हें बाहर ही उतरवाया गया। लेकिन गिरोह ने चप्पल चीरकर डिवाइस फिट किए। नकल रोकने के लिए कुछ शर्मसार कर देने वाले उपाय भी सामने आए। सेंटरों पर मास्क, दुपट्टा, जूते-चप्पल, कुंडल, झुमके-बालियां, पाजेब-चुटकी तक खुलवा दिए गए और कपड़ों की आस्तीनें तक काटी गईं। इसके बावजूद पेपर आउट हुआ और नकल के प्रयास हुए।
प्रदेशवासियों ने रात को रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और फुटपाथ पर देश के भविष्य को पढ़ते और सोते देखा। सेंटर तक पहुंचने के लिए युवाओं ने कई किलोमीटर जोखिमभरी यात्रा की और कई चुनौतियां झेलीं। इन सब से रू-ब-रू होने के बाद शायद ही कोई चाहे कि कुछ समाजकंटकों की करनी का दुष्परिणाम साफ-सुथरों को भुगतना पड़े। लाखों युवा और उनके परिवारों के भविष्य के साथ खेलने वालों के खिलाफ तमाम कानूनी प्रक्रिया जल्द पूरी होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए। (स.श.)