यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि देश के योजनाकार बुजुर्गों पर कम ही फोकस करते हैं। न तो उनके शारीरिक स्वास्थ्य का पर्याप्त ध्यान रखा जा रहा है और न ही मानसिक स्वास्थ्य का। नतीजतन रिटायर जीवन जी रहे बुजुर्ग जल्द ही स्वयं को न सिर्फ परिवार पर भार समझने लगते हैं बल्कि अवसाद के शिकार हो जाते हैं। एक हालिया सर्वे में सामने आया कि देश के 81.4 फीसदी बुजुर्गों केलिए महंगाई असहनीय हो गई है। सबसे ज्यादा मार निम्न-मध्यम आयवर्ग के बुजुर्गों पर पड़ी है, जिनकी संख्या करीब 94 फीसदी है। वैसे तो महंगाई की मार से सभी परेशान हैं। पर ऐसे बुजुर्ग जिनकी आय के साधन लगभग समाप्त हो गए हों और जिनके स्वास्थ्य पर होने वाला खर्च लगातार बढ़ता जा रहा हो, महंगाई की मार ज्यादा सताती है। युवा वर्ग आर्थिक समस्या के निदान के उपाय अपने परिश्रम से खोज सकता है, लेकिन कमजोर होते शरीर के साथ बुजुर्ग लाचारी महसूस करने लगते हैं। कल्याणकारी सरकारों से इनके विशेष ख्याल की उम्मीद रहती है। लेकिन सरकारें जाने-अनजाने बुजुर्गों के प्रति असंवेदनशील हो जाती हैं। रेलवे ने बुजुर्गों को किराए में मिलने वाली छूट समाप्त कर दी है। हालांकि संसदीय समिति ने सरकार से तुरंत उसे बहाल करने की सिफारिश की है। औसत आयु में बढ़ोतरी के कारण रिटायर हो चुके बुजुर्गों को अपनी जमा-पूंजी पर अब पहले से ज्यादा समय बिताना पड़ रहा है।
जो पेंशनर हैं, उन्हें ज्यादा समस्या भले न हो पर अन्य बुजुर्गों के लिए यह बड़ी समस्या है। खासकर तब, जब समाज उनके अनुसार काम के मौके नहीं निकाल पाता। भारत में वर्ष 1960 में औसत आयु 41.42 वर्ष से 2019 तक बढ़कर 69.66 वर्ष हो गई है। रिटायरमेंट की औसत उम्र 60 साल के बाद भी कोई आज ज्यादा स्वस्थ रह सकता है। रिटायरमेंट की उम्र में बढ़ोतरी उचित न हो, तब भी बुजुर्गों के प्रति समाज को ज्यादा संवेदनशील होने की जरूरत है।