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नीति नवाचार: एमएसपी पर कानून बनाने से बच रही हैं सरकारें

locationनई दिल्लीPublished: Oct 20, 2021 10:03:43 am

Submitted by:

Patrika Desk

एमएसपी खरीद गारंटी कानून बनाने की मांग का आंदोलन राजस्थान से शुरू हुआ था।कृषि लागत एवं मूल्य आयोग विपणन वर्ष 2015-16 में किसानों को अपने उत्पाद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर बेचने का अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाने की अनुशंसा कर चुका है।

नीति नवाचार: एमएसपी पर कानून बनाने से बच रही हैं सरकारें

नीति नवाचार: एमएसपी पर कानून बनाने से बच रही हैं सरकारें

रामपाल जाट (राष्ट्रीय अध्यक्ष, किसान महापंचायत)

जब देश में खाद्यान्न का संकट गहराया, तो भारत सरकार ने उत्पादकता एवं उत्पादन बढ़ाने के लिए रासायनिक खेती को प्रोत्साहन देना शुरू किया। इसका खर्च अधिक होने से यह लगा कि किसान इसे मुश्किल से ही अपनाएंगे। इसी सन्दर्भ में वर्ष 1964 में प्रधानमंत्री के सचिव एल.के. झा की अध्यक्षता में एक समिति का गठन हुआ। उसके प्रतिवेदन के आधार पर नवाचारों को प्रोत्साहित करने के प्रयोजन से समन्वित नीति तैयार की गई। इस नीति में उद्योगों को कच्चा माल व उपभोक्ताओं को खाद्यान्न सस्ती दर पर उपलब्ध कराने पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया। इसी के लिए कृषि मूल्य आयोग 1 जनवरी 1965 में प्रभाव में आया, जिसका नाम वर्ष 1985 में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग किया गया। इसे वैधानिकता प्रदान करने का उल्लेख भी इस समिति के प्रतिवेदन में किया गया था। इसी प्रतिवेदन के आधार पर धान के न्यूनतम एवं अधिकतम मूल्य का निर्धारण आरम्भ हुआ। इसका स्वरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में उभर कर आया, जिसे समवर्ती सूची के क्रम संख्या 34 में ‘मूल्य-नियंत्रण’ के तहत केंद्र सरकार घोषित करने लगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में घोषणा कर चुके हैं कि ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) था, है और रहेगा।’ इसके बाद भी केंद्र सरकार इसे वैधानिकता देने को तैयार नहीं है। यह स्थिति तो तब है जब न्यूनतम समर्थन मूल्य के निर्धारण में महती भूमिका निभाने वाली संस्था कृषि लागत एवं मूल्य आयोग विपणन वर्ष 2015-16 में किसानों को अपने उत्पाद न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचने का अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाने की अनुशंसा कर चुका है। वर्ष 2011 में गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए केंद्र सरकार द्वारा गठित समिति के अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र मोदी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति के लिए खरीद की गारंटी का कानून बनाने का अभिमत व्यक्त कर चुके हैं। किसानों को अपने उत्पादों के खर्च प्राप्ति के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में आशा की किरण दिखाई देने लगी थी। इसके बावजूद किसानों को उनकी उपज की लागत तक प्राप्त नहीं हुई। इससे किसानों में नाराजगी पैदा हुई।

वर्ष 2010 में मूंग का समर्थन मूल्य 3670 रुपए प्रति क्विंटल होते हुए भी राजस्थान में किसानों को मूंग के दाम 1800 रुपए प्रति क्विंटल से कम प्राप्त हो रहे थे। उसी दर्द में से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने की मांगा का आंदोलन उपजा, जो अब देशभर में चल रहा है। इसी क्रम में किसानों के मंथन के आधार पर ‘किसानों की सुनिश्चित आय एवं मूल्य का अधिकार विधेयक – 2012’ का प्रारूप तैयार हुआ। उसी के आधार पर एक निजी विधेयक को 8 अगस्त 2014 को लोकसभा ने सर्वसम्मति से विचारार्थ स्वीकार किया था।

वर्ष 2018 में सभी राज्यों को केंद्र सरकार ने ‘आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन विपणन अधिनियम, 2017’ का प्रारूप भेजा। इसमें घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर क्रय-विक्रय रोकने का आज्ञापक प्रावधान है। इसके बावजूद किसी भी राज्य द्वारा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का वैधानिक अधिकार नहीं दिया गया, जबकि कृषि एवं कृषक कल्याण के संबंध में कानून बनाने का क्षेत्राधिकार संविधान में राज्यों को ही प्रदान किया हुआ है। राजस्थान सहित गोवा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, मिजोरम, नगालैंड में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर क्रय-विक्रय को रोकने का प्रावधान है, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है। देश के अन्य राज्यों ने तो केंद्र द्वारा प्रारूपित आदर्श कानून को लागू करने में रुचि ही नहीं दिखाई। इन राज्यों में इसके लिए पहले से कोई कानूनी प्रावधान भी नहीं है।

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