दरअसल, दिशा रवि पर सोशल मीडिया टूलकिट को पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग तक पहुंचाने और उसे संपादित करने का आरोप लगाया गया है। पुलिस की दलील है कि इसके जरिए देश की छवि को खराब करने की साजिश रची गई। हालांकि पुलिस कोर्ट के भीतर ऐसे कोई भी सबूत पेश नहीं कर सकी। सवाल यही है कि सरकारें कुछ लोगों की आवाज से भी इतना डरती क्यों हैं? क्या कुछ आवाजें किसी देश की छवि को खराब कर सकती हैं? क्या देश इतने कमजोर हैं? भारत के संविधान ने खुलकर बोलने की आजादी दी है। यानी संविधान आपको आपकी बात रखने के लिए प्रेरित करता है। लेकिन, आजकल राजनीतिक नफा-नुकसान के हिसाब से चीजों को तौला जा रहा है। सरकारों की नीतियों के विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाया जा रहा है। यहां सरकारों को समझना चाहिए कि विरोध उनकी नीतियों का हो रहा है, न कि उनका। उन्हें तो इस देश ने ही चुनकर जिम्मेदारी दी है। बेहतर है कि सरकारें सुनने और समझने की अपनी शक्ति को बढ़ाएं और देश के भीतर उठने वाले नीतियों के विरोध को स्वीकार करें और जरूरत के हिसाब से बदलाव भी करें, क्योंकि यह देश कबीर का भी है, ‘जो कहते हैं कि निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।