केंद्रीय
मंत्रिमंडल ने सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण में तेजी लाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। इसका मकसद सरकारी बैंकों को सुदृढ़ करना है। कहा गया है कि सरकारी बैंक गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की समस्या से जूझ रहे हैं। देश के सरकारी बैंकिंग सेक्टर में कुल मिलाकर करीब 7,38,776 करोड़ रुपए के कर्ज की वसूली नहीं हो पा रही है। यानी ये एनपीए में तब्दील हो गए हैं। साथ ही क्रेडिट ग्रोथ कई दशकों के निचले स्तर पर आ गई है।
सरकार सरकारी बैंकों को मजबूत आकार देकर यह स्थिति पलटना चाहती है। देश और दुनिया के बैंकिंग विशेषज्ञों और रेटिंग्स एजेंसियों ने सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि भारत में सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण की दिशा में यह सकारात्मक कदम है। इससे जहां एक ओर बैंकों को परिचालन में लाभ होगा। वहीं दूसरी ओर समान तरह के प्रदर्शन करने वाले बैंकों के विलय से एनपीए के समाधान की रणनीति को प्रभावी तरीके से लागू करने में भी मदद मिलेगी।
भारतीय स्टेट बैंक और आईडीबीआई बैंक को छोडक़र बाकी सभी बैंक इसके दायरे में आएंगे। बैंकों की पूंजी पर्याप्तता के बीच तालमेल बिठाया जाएगा। बैंकों के मुनाफे का भी ख्याल रखा जाएगा। प्रस्तावित विलय बैंकिंग कंपनीज एक्ट के तहत होगा। विलय की प्रक्रिया की पहल बैंकों के बोर्डों द्वारा की जाएगी। वैकल्पिक व्यवस्था के तहत प्रस्ताव को सैद्धान्तिक मंजूरी देने के बाद बैंकों को कानून तथा भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के नियम के मुताबिक विलय की दिशा में कदम बढ़ाना होगा।
सार्वजनिक बैंकों के एकीकरण संबंधी मंत्रीमंडल के प्रस्ताव का संबंधित बैंककर्मियों द्वारा विरोध किया गया है। लेकिन सरकार ने कर्मचारियों की आशंकाओं को निर्मूल बताया है। पिछले दिनों ग्लोबल क्रेडिट एजेंसी फिच के द्वारा प्रकाशित बैंकिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की विकास दर बढ़ाने के लिए बैंकिंग संबंधी ऐसे प्रमुख सुधार की जरूरत है। वित्तीय क्षेत्र में सुधारों के लिए बनी नरसिम्हन समिति ने सबसे पहले बैंक सुदृढ़ीकरण का विचार पेश किया था।
सरकार ने सार्वजनिक बैंकों में सुधार के लिए सात-आयामी इंद्रधनुष रणनीति बनाई है, जिसके तहत सरकार 2018-19 तक बैंकों में पुनर्पूंजीकरण के लिए 70,000 करोड़ रुपए देगी। रिजर्व बैंक का कहना है कि सरकारी बैंकों के विलय होने से सरकारी खजाने पर पूंजीकरण की निर्भरता कम होगी। हम आशा करें कि बैंकों के विलय को सैद्धांतिक मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।