सामान्य परिस्थिति होती तो यह जश्न बनता भी था। लेकिन कोरोना ने आज देश के जो हालात बना दिए हैं उसमें ऐसा कोई भी जश्न सरकार और भाजपा दोनों को तो उल्टा पड़ ही सकता है, प्रधानमंत्री की छवि को भी आघात पहुंचाने वाला हो सकता है। अभी पार्टी की ओर से जो समाचार आए हैं उनके अनुसार पार्टी इस मौके पर धमाकेदार प्रचार अभियान चलाने वाली है। जिसके तहत देश भर में एक हजार वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ 750 रैलियां भी आयोजित की जाएंगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा के अनेक बड़े नेता इन्हें सम्बोधित करेंगे।
यह समय है जब भाजपा और उसके नेतृत्व को यह तय करना है कि उसकी प्राथमिकता क्या है? इसमें तो देश को बताने की कोई नई बात नहीं है कि केन्द्र में भाजपा की सरकार है और वह दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा कर रही है। देश का बच्चा-बच्चा इस तथ्य को जानता है। पिछले एक वर्ष में सरकार ने जो भी काम किए हैं वह भी देश की जनता के सामने हैं। फिर चाहे वह कश्मीर से धारा-370 के विशेष प्रावधानों की समाप्ति, सीएए, राममन्दिर या फिर कोरोना में प्रवासियों की घर वापसी जैसा कोई भी मुद्दा हो। देश को, भाजपा को हुए नफे-नुकसान को भी देश खूब जानता है। जश्न खूब हुए हैं, हर साल हुए हैं और आगे भी होते रहेंगे।
आज कोरोना का माहौल ऐसे किसी जश्न की नैतिक इजाजत नहीं देता। देश में कहीं असुरक्षा और भय का माहौल है, कहीं मौत का मातम है, पलायन का दु:खद नजारा है। ऐसे में जश्न मनाना सत्ता का अट्टहास ही नजर आएगा। अभी तो आने वाला कल और भयानक होने वाला है। पार्टी चाहे तो इस पर देशभर में होने वाले खर्च का मोटा-मोटा अनुमान लगाकर उस राशि को प्रधानमंत्री केयर्स फंड में दे सकती है। इससे संकट के इस दौर में, कोरोना पीडि़तों की मदद भी होगी और भाजपा की छवि निखरेगी। दूसरा काम केन्द्र सरकार के स्तर पर यह हो सकता है कि सारे विभाग अपनी ओर से पहल करके राज्यों के पास जाएं और राज्यों से पूछें कि उनके विभाग से सम्बन्धित उस राज्य की क्या आवश्यकताएं हैं। फिर उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए यदि जरूरत पड़े तो पार्टी के कार्यकर्ताओं को जोडकऱ काम आगे बढ़ाया जा सकता है।
अभी तो संदेश यह जा रहा है कि यह सारा अभियान आने वाले बिहार-पं.बंगाल के चुनावों के मद्देनजर किया जाएगा। इसमें राजनीति होगी। इसका अर्थ यह भी निकलता है कि सलाहकारों की टीम दूरदर्शी नहीं है। न ही किसी को इस बात का अहसास है कि देश में क्या हो रहा है और देश की तात्कालिक आवश्यकता क्या है।
केन्द्र सरकार केवल भाजपा शासित राज्यों की सरकार नहीं है, न ही प्रधानमंत्री किसी दल के हो सकते हैं। सभी राज्य, सभी दल, सभी देशवासी केन्द्र सरकार की प्रजा हैं। आज सभी संकट में हैं। क्या यह संभव नहीं कि सरकार के इस उत्सव में पूरा देश शामिल हो सके। भाजपा/केन्द्र सरकार का यश बढ़े। इसके लिए राजनीति से उठकर एक सकारात्मक ‘सबका साथ, सबका विकास’ की तर्ज पर काम होना चाहिए।
भाजपा के पास आज ग्राम स्तर पर भी कार्यकर्ता उपलब्ध हैं। उनको मालूम है कि कहां क्या आवश्यकता है। कोरोना अकेला कारण नहीं रह गया है। मजदूरों का पलायन और उनका पैदल मार्च देखकर देश सकते में है। उनकी राहत के नाम पर हजारों करोड़ बह गए, वे आज भी किनारे खड़े प्रतीक्षा कर रहे हैं, किसी राहत के आने की। सरकार ने टे्रने लगाईं और लगा कि लोगों को शत्रु मानकर भूखे-प्यासे न जाने कहां का कहां काला पानी छोड़ गईं। राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि अनेक राज्यों में तो टिड्डी दल ने कोरोना से बड़ा कहर ढा दिया। सौभाग्य से फसलें कटकर बिक चुकीं, वरना तो नया अकाल सिर पर होता। हरियाली तो चट कर ही गईं। वर्षा का औसत बदल जाएगा।
बाजार पस्त है, उद्योग बन्द हैं। अभी ‘अच्छे दिन’ दूर हैं। भाजपा इस अवसर को सफलता में बदल सकती है। सम्पूर्ण पार्टी एक संकल्प के साथ, एक साथ सभी मुद्दों को उठा ले। हर प्रदेश में, हर स्तर पर अलख जगा दे। पुनर्निर्माण का बिगुल बजना एक स्वर्णिम प्रकाश फैला सकता है। जनता के हर स्तर के, हर प्रश्न का हल निकल सकता है। आपातकाल के अधिकारों के तहत जहां जरूरत लगे राज्य सरकारों को आदेश दिया जा सकता है। रोजगार, पलायन, कृषि, पशुपालन, उद्योग आदि प्रत्येक मुद्दे का तुरन्त हल की ओर प्रस्थान हो सकता है। पूरा देश साथ हो जाएगा।