भारत के पड़ोसी इन दिनों बहुत तेजी में है। चीन (China) एक साल में चार जनरल बदल रहा है तो फिर पाकिस्तान (Pakistan) भी चीन के साथ कदमताल कर रहा है। तालिबान (Taliban) अपनी ताकत का पूरी दुनिया में ही मुजाहिरा करने की कोशिश में है तो उसे जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ से भी इंकार नहीं है। ऐसे में हमें चीन, अफगानिस्तान (Afghanistan), पाकिस्तान और कश्मीर घाटी की सुरक्षा को एक साथ देखने की जरूरत है।
पहली बात पाकिस्तान ने एलओसी के जानकार लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास को चीफ ऑफ जनरल स्टाफ बनाया है यानी अब एलओसी पर पाकिस्तान अपने सैन्य प्रबंधन में बदलाव करेगा और आक्रामकता दिखाएगा। तिहाड़ में बंद मसर्रत आलम का हुर्रियत चीफ बनाया जाना इस बात का संकेत है कि घाटी में पाकिस्तान पकड़ बनाने के लिए तत्पर है।
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दूसरी बात पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम इसलिए किया था जिससे वह पूरी तरह से अफगानिस्तान में तालिबान के पक्ष में अपनी फौज को जरूरत के अनुसार प्रयोग कर सके और उसने किया भी। अब तालिबान के स्थिर होने के बाद वह लौटकर एलओसी आएगा और कुछ ही दिनों में नियंत्रण रेखा पर प्रभाव दिखना शुरू हो जाएगा।
तीसरी बात अब सीमा पार से ज्यादा खतरा आंतरिक है क्योंकि तालिबान की हुकूमत आने के बाद इस्लामिक कट्टरपंथियों में यह संदेश गया है कि वे दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकत को हरा सकते हैं। ऐसे में देश के अंदर इस्लामिक कटटरपंथी ताकतें अब साजिश करती दिखाई देंगी। इससे बेहद ही सतर्क और सावधान रहने की जरूरत है।
चौथी बात, चीन ने नौ महीने में तीन बार वेस्टर्न थिएटर कमांड का कमांडर बदला है। इसके साफ मायने हैं कि तीनों ही कमांडर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के महासचिव शी जिनपिंग द्वारा दिए गए राजनीतिक लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाए हैं। चाहे गलवान की बात हो या लद्दाख में घुसपैठ की। ऐसे में अब चौथा कमांडर लाया गया है। इस कमांडर के अंतर्गत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन के कब्जे में गया भारत का अक्साई चिन का इलाका आता है।
तालिबान के ताकत में आने के बाद भारत फ्रंटलाइन स्टेट के रूप में उभरा है। 15 अगस्त 2021 तक जो देश भारत को अपने साथ नहीं रखना चाह रहे थे, तालिबान को लेकर वार्ता की मेज से भारत को दूर रख रहे थे, अब वही रूस, अमरीका, ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियां एक सप्ताह के भीतर ही भारत की चौखट पर हैं। चीन का अफगानिस्तान में दाखिल होना तय है और यहां से चीन के ताकतवर होने का डर सभी को है। पाकिस्तान उसके हर कदम में साथ होगा। ऐसे में चीन की बढ़ती ताकत को यदि संतुलित किया जा सकता है तो भारत को साथ लेकर ही यह संभव है और वह भी बिना अफगानिस्तान में घुसे हुए। यही वजह है कि ये देश भारत का दरवाजा खटखटा रहे हैं। भारत भी स्थिति पर नजर रखे हुए है। चीन व पाकिस्तान का लक्ष्य एक ही है – भारत को कमजोर करना। चीन जहां अफगानिस्तान में आर्थिक लाभ उठाएगा, वहीं पाकिस्तान कश्मीर में आतंक फैलाएगा। चीन विश्व की ताकत बनने तक किसी भी युद्ध की स्थिति में नहीं है। वह खुद को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा है। ऐसे में भारत अब नई भूमिका में है।
भारत उन सभी देशों के बीच पुल के रूप में काम कर रहा है जो आतंक के खिलाफ तो हैं लेकिन साथ नहीं। फिर चाहे वह रूस और ईरान से अमरीका की बात हो, सऊदी अरब व ईरान की बात हो या तुर्कमेनिस्तान से रूस की बात हो या फिर ऐसे कई अन्य देश। ऐसे में अब देखना होगा कि भारत अपनी नई और ताकतवर भूमिका में किस तरह से आगे बढ़ता है।