जीएसटी वसूली का यह मुद्दा अलग विषय हो सकता है, लेकिन अगर पूर्व में सेवाकर वसूला नहीं जा रहा था तो जीएसटी के बारे में सोच विचार किया जाना चाहिए। ऐसे मुद्दों में कुलपति व रजिस्ट्रारों को विश्वविद्यालय की गरिमा का ध्यान रखना होगा, अन्यथा ऐसी घटनाओं से शिक्षा के मंदिर दागदार होते रहेंगे। छात्रों की शिक्षा पर अंतिम मुहर विश्वविद्यालयों में ही लगती है, यहीं से देश का भविष्य बाहर आता है। वो क्या सीख कर जाएंगे इन सब घटनाओं से।
हमारे जनप्रतिनिधियों को भी संयम बरतना चाहिए। अगर यह मुहर सही नहीं होगी तो काम कैसे चलेगा। विश्वविद्यालय में आए दिन झगड़े फसाद, अभद्रता के साथ ही गुरुजनों से धक्का मुक्की की घटनाएं भी आम होती जा रही है। इन सबको नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, विश्वविद्यालय के कुलपति व प्रोफेसरों को सोचना होगा पर सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय में तो अधिकारी व प्राइवेट कॉलेज के संचालक जिस तरह लड़े वह निंदनीय है। इसकी पूरी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए व दोषियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए। कार्रवाई इतनी सख्त होनी चाहिए कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
जीएसटी के मुद्दे पर सभी विश्वविद्यालयों की एक नीति होनी चाहिए। हमारे जनप्रतिनिधियों व सरकार का दायित्व है कि इस पर एक नीति बनें। ताकि दूसरे विश्वविद्यालयों मेंं इस तरह की स्थिति उत्पन्न न हो।