सुना है कि कलियुग में ऐसा ही होता है। मिट्टी का शरीर मिट्टी में मिल जाता है। यह कटु सत्य है। किन्तु मरने के बाद ऐसा होता है। आज नेताओं और अफसरों का कालाधन हथियारों और नशीली दवाइयों के माध्यम से देश को ही खा रहा है। सत्ता पक्ष के साथ पुलिस रहती है।
बिना पुलिस संरक्षण के नशे का जाल स्कूली छात्रों के कण्ठ पकड़ सकता है? नशे के इस माफिया के पीछे सरकारी तंत्र ही तो है। आय का कितना बड़ा स्रोत है। गृहविभाग सबसे बड़ा कमाऊपूत है-फाइलों के बाहर। देश की नई पीढ़ी को अपंग-नकारा करने वाले इस माफिया को क्या कहा जाए-भ्रष्ट, देशद्रोही?
आप कुछ नहीं कह सकते। सरकार स्वयं नशे के कारोबार में शामिल होती है। बगुला भगत की तरह। विभाग में पद का नाम है-'आबकारी एवं मद्य संयम आयुक्त' और करते क्या हैं? नशाखोरी के प्रसार की मॉनिटरिंग।
यह भी पढ़ें
बैठ जाओ राहुल
इस वर्ष राजस्थान सरकार ने 15000 करोड़ रुपए की शराब बिक्री का लक्ष्य रखा है। बिक्री बढ़ाना ही नीति है। घटाई तो जुर्माना/ नकद गारंटी। बिक्री बढ़ाने वाला अधिकारी भी पुरस्कृत। लगभग 5000 करोड़ रुपए की अवैध शराब भी बिकती है राज्य में। गुजरात जैसे मद्य निषेध वाले प्रदेश की बड़ी सप्लाई राजस्थान होकर जाती है।ये सब किसकी सहायता और भागीदारी से? राजस्थान ही नहीं मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से लेकर यूपी, पंजाब, हरियाणा सब जगह हालात एक जैसे ही हैं। चलिए छोडि़ए! ये आधुनिक विकासवादी युग के व्यापार हैं। जिन परिवारों में कष्ट भोगना लिखा है, वहां ऐसी कमाई जायज मानी जाती है। शायद हर युग में इसका स्थान होता है।
आजकल जिस कार्य का संचालन पुलिस, माफिया और परोक्ष रूप में सरकार कर रही है, वह है-बच्चों में नशाखोरी को लेकर योजनाबद्ध अभियान। पकड़ा जाए सो चोर! जयपुर की बापू बस्ती में छापा मारकर आठ को गिरफ्तार करना पुलिस की मजबूरी बन गया था।
धंधा तो कब से कहां-कहां नहीं हो रहा, पुलिस भी जानती है, स्कूल-कॉलेजों के संचालक भी जानते हैं। कमाई बांट रहे हैं। बच्चों को अभियान चलाकर, जाल में फंसाया जाता है। हो सकता है कुछ समय बाद स्कूलों में भी भांग-गांजे के पौधे मिलने लगें।
यह भी पढ़ें
जनता की बने कांग्रेस
कुछ वर्ष पूर्व बड़े निजी स्कूलों के पास थडिय़ों पर नशा बिकता था। समाज चिन्तित होने लगा तो सरकार नकली 'नशा मुक्ति' के अभियान चला देती। आज स्कूल-कॉलेजों में शरारती लोगों की गैंग काम करती है। ये लोग बच्चों को शुरू में मुफ्त में और बाद में सस्ती दरों पर नशा (भांग, गांजा, अफीम, डोडा, स्मैक, हेरोइन, एमडी ड्रग्स) उपलब्ध कराते हैं।एक बार लत पड़ गई तो घर-परिवार चौपट। आप श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ जिलों को देख लें। नई पीढ़ी पांगळी (अपंग) होने लगी है। पुरानी पीढ़ी को शराब पी रही है। पूरा क्षेत्र शनै:शनै: कैंसर की भेंट चढ़ रहा है। दूसरी ओर कोटा-झालावाड़ में तो 'मानव चूहे' पैैदा हो गए।
बच्चे घरों में चोरियां करने लगे। पुलिस में एफआइआर होने लगी है। नई कौंपलें (12-13 वर्ष की आयु के बच्चे) हुक्काबार में नियमित जाने लगी हैं। बड़े स्कूलों का नाम 'रोशन' हो रहा है। वहां कई नाम चलते हैं आकर्षित करने के लिए। जैसे- फन्टास्टिक फ्राइडे।
यह भी पढ़ें
कड़वा सच
अब दवा के रूप में भी खुले आम नशा मिल रहा है। सस्ता व आसानी से उपलब्ध होने के कारण अब किसान और मजदूर वर्ग भी इस घेरे में उतर आया है। पंजाब से आने वाला 'चिट्टो' भी बहुत प्रचलन में आ चुका है। राजनीतिक युवा संगठन अपराध में पूर्ण रूप से लिप्त हो चुके हैं।आज नशे के गोली-केप्सूल तक उपलब्ध हैं। पूरी पीढ़ी को जिन्दा खाया जा रहा है। सबके शरीर मिट्टी के (नकारा) होने लगे हैं। ये देश का भविष्य बनेंगे!
कुछ समय पहले यह प्रदेश देहरादून के पास रहने वाले माफिया की आश्रयस्थली रहा है। हर सरकार पांच साल में राज्य के एक हिस्से की बलि चढ़ा देती है। सरकारें किसी की भी आए, इस प्रक्रिया में कोई अंतर नहीं आता। उससे बड़ी क्या सेवा हो सकती है जनता की?
भीलवाड़ा में वर्ष 2021 में तस्करों ने दो पुलिसकर्मियों की गोली मारकर हत्या कर दी। जांच में तस्करों से मिलीभगत के दोषी पाए गए छह पुलिसकर्मियों को बर्खास्त भी किया गया। पुलिस मौन क्यों है? केवल दो-चार छापे मारने, दो-चार पुलिस कर्मियों को निलम्बित व बर्खास्त करने से जिम्मेदारी की इतिश्री मान ली?
क्या क्षेत्र के एसएचओ, सीआई, एसपी डीजीपी जैसे अधिकारियों को जेल नहीं जाना चाहिए? क्या स्कूल प्रबन्धकों को जेल नहीं जाना चाहिए? ईश्वर भी इनको माफ नहीं करेगा। किसी न किसी अभयारण्य में इनकी योनि रिजर्व हो चुकी होगी। ये मानव को पशु के समान ही लाकर छोड़ देते हैं।
ये लोकतंत्र के कैसे सेवक हैं? एक श्रेणी धन चुराती है, दूसरी धंधा करवाती है। कृष्ण भी शिथिल पड़े शरीरों में आंसू बहा रहे होंगे कि इन परिस्थितियों से तो कंस का कारागार भी अच्छा था। मुखौटा तो नहीं था।
क्या क्षेत्र के एसएचओ, सीआई, एसपी डीजीपी जैसे अधिकारियों को जेल नहीं जाना चाहिए? क्या स्कूल प्रबन्धकों को जेल नहीं जाना चाहिए? ईश्वर भी इनको माफ नहीं करेगा। किसी न किसी अभयारण्य में इनकी योनि रिजर्व हो चुकी होगी। ये मानव को पशु के समान ही लाकर छोड़ देते हैं।
ये लोकतंत्र के कैसे सेवक हैं? एक श्रेणी धन चुराती है, दूसरी धंधा करवाती है। कृष्ण भी शिथिल पड़े शरीरों में आंसू बहा रहे होंगे कि इन परिस्थितियों से तो कंस का कारागार भी अच्छा था। मुखौटा तो नहीं था।
यह भी पढ़ें