जयपुरPublished: Sep 02, 2023 01:15:15 pm
Gulab Kothari
Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' शृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख - ज्ञान ही भक्ति
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।। (गीता 7.16)
हे अर्जुन! चार प्रकार के लोग मुझे भजते हैं-आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी। इनमें से आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी तीनों ही क्रमश: शरीर-मन-बुद्धि के पुजारी हैं। स्वयं को मुझसे से भिन्न मानते हैं। फिर भी ये उत्तम प्राणी हैं, मुझको (ईश्वर को) याद करते हैं। जब रोग की चिकित्सा नहीं होती, वेदना असह्य हो जाती है, तब आर्तनाद करता है। जैसे गजेन्द्र मोक्ष प्रसंग में हाथी करता है, जब उसका पैर मगरमच्छ पकड़ लेता है। प्राण रक्षा के लिए व्याकुल व्यक्ति ईश्वर से प्राणों की भीख मांगता है। द्रौपदी ने आर्त स्वर में कृष्ण को पुकारा था-चीरहरण के समय। संसार सागर पार करने के लिए भी भगवत् शरण में जाते हैं। अर्थार्थी भोग साधन की तृष्णा में डूबा होता है। वह भोग-सुविधा के पीछे भागता है। सदा ईश्वर से कुछ मांगता ही रहता है। भक्त ये भी पक्के होते हैं, भगवान को समर्पित रहते हैं, किन्तु ऐश्वर्य प्राप्ति के लिए। फिर भी भगवान के साथ एकात्म नहीं हो सकते। साधनों की बहुलता से समाज के कार्य भी करते रहते हैं।