नई दिल्लीPublished: Sep 16, 2023 01:21:44 pm
Gulab Kothari
Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' शृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख - मैं, मैं नहीं-तू, तू नहीं
भूमिरापोऽनलो वायु: खं मनो बुद्धिरेव च।
अहङ्कार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।। (गीता 7.4)
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।। (गीता 7.5)
पंच महाभूत, मन, बुद्धि अहंकार ये आठ रूप मेरी अपरा प्रकृति है। दूसरी मेरी परा प्रकृति है, जो चेतन है, जीवरूपा है। शास्त्र कहते हैं कि विश्व को पुरुष और प्रकृति चलाते हैं। पुरुष शाश्वत है, सत्य है, प्रकृति ऋत है, मिथ्या है, नश्वर है। गीता में कृष्ण कह रहे हैं कि प्रकृति मेरी है। तब कृष्ण और प्रकृति दो नहीं हैं। जो मेरा है, वह मुझ से भिन्न नहीं हो सकता। मुझसे भिन्न होकर कोई कार्य नहीं कर सकता। प्रकृति पुरुष का साधन मात्र है। पुरुष की शक्ति है। जैसे माया ब्रह्म की शक्ति है। माया को बल, शक्ति और क्रिया कहा है। पुरुष को अव्यय-अक्षर-क्षर कहा है। क्षर की क्रिया प्रकृति है।