मातृ देह में पितृ प्राण की भूमिका
नई दिल्लीPublished: Jan 29, 2023 08:12:02 am
Gulab Kothari Article Sharir Hi Brahmand: माता के शरीर में अहंकृति से कारण शरीर, प्रकृति से सूक्ष्म शरीर तथा आकृति से स्थूल शरीर बनता है। सारा स्वचालित रहता है। माता को किसी भी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती... 'शरीर ही ब्रह्माण्ड' श्रृंखला में पढ़ें पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी का यह विशेष लेख-


शरीर ही ब्रह्माण्ड : मातृ देह में पितृ प्राण की भूमिका
Gulab Kothari Article शरीर ही ब्रह्माण्ड: किसी भी यज्ञ की प्रक्रिया को देखें- उसमें पांच अंग होते हैं। ''पांक्तौ वै यज्ञ:''। हमारा जीवन भी एक यज्ञ है। प्रकृति और पुरुष के मध्य जो यज्ञ बनता है, वही ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण है। यज्ञ ही योग है। इसी प्रकार के योग से जीव पृथ्वी पर पैदा होता है। हमने जीव की यात्रा मार्ग पर विचार किया। अब पुन: यात्रा मार्ग का अवलोकन करना चाहिए। क्योंकि यात्रा मार्ग का निर्माण यज्ञ के द्वारा मूलत: स्त्री शरीर में ही निर्मित होता है। पिता का कार्य बीजारोपण तक सीमित है। आगे दो कार्य माता के शरीर में शुरू हो जाते हैं। एक है- शरीर का निर्माण और दूसरा है शरीर में बीज के यात्रा-मार्ग का निर्माण, जिसे स्वतंत्र रूप से पुत्र के शरीर तक पहुंचना है। इसी बीज को कन्या शरीर में जाने से रोकना भी है। वहां बीज की आवश्यकता नहीं है।