पहले वहां अश्वेतों से भेदभाव आम था। श्वेत और अश्वेत लोगों की रहने की बस्तियां, विद्यालय अलग- अलग थे। इसके बाद अमरीका में नस्लभेद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी गई। हाल के हमलों से हमें यह नहीं मानना चाहिए कि अमरीका के सभी लोग नस्लीय भेद की भावना रखते हैं।
अमरीका की आबादी का बड़ा वर्ग ऐसे हमलों का समर्थन नहीं करता। हमें यह भी देखना होगा कि नस्लीय टिप्पणी करने तथा हिंसा पर उतारू लोगों की संख्या गिनती की है। अमरीका में द्वितीय संविधान संशोधन के बाद सभी नागरिकों को अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक रखने का अधिकार मिला हुआ है।
वहां लोगों को आसानी से बंदूक उपलब्ध हो जाती हैं। यह भी हिंसक प्रवृत्ति पनपने का बड़ा कारण है। हमें यह भी जानना होगा कि अमरीका में भौतिकवाद हावी होता जा रहा है। समूचा अमरीका अब कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो चुका है।
इस भौतिकवाद की दौड़ में वहां के काफी लोग पीछे रह गए हैं। वहां स्थानीय लोगों को अच्छी नौकरी, अच्छा घर और अच्छे दोस्त आदि नहीं मिल पा रहे। ऐसे में उनमें कुंठा व विद्रोह का भाव जागना स्वाभाविक है।
इन लोगों को लगता है कि भारतीय उनके हिस्से की नौकरियों पर काबिज हो रहे हैं। अमरीका जाने वाले अधिकांश भारतीय उच्च शिक्षित और अपने कार्यक्षेत्र में दक्ष हैं। जहां अमरीकियों की औसत घरेलू आय 52 हजार डॉलर प्रतिवर्ष हैं, वहीं भारतीयों की औसत घरेलू आय एक लाख तीन हजार डॉलर है। यह अंतर भी इन लोगों में ईर्ष्या जगाता है।
दूसरा कारण यह भी है कि अमरीका में पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी लोग जा रहे हैं। 9/11 की घटना के बाद से वहां के लोगों में मुस्लिमों के प्रति नफरत का भाव भी बढ़ा है। भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों की शक्ल-सूरत में ज्यादा फर्क नहीं है।
ऐसे में दक्षिण एशिया के लोगों में फर्क नहीं कर पाने के कारण भी भारतीय लोग निशाना बन जाते हैं। ट्रंप ने भी चुनाव अभियान के दौरान प्रवासियों को रोकने के लिए बड़े-बड़े वादे किए लेकिन अब लग रहा कि वे वादे चुनाव जीतने के लिए ही किए गए थे।
अब ट्रंप कहने लगे हैं कि अच्छे प्रवासियों को अमरीका आने देना चाहिए। इससे भी ऐसे लोगों में निराशा भावना है। ऐसे में आने वाले समय में ऐसे हमले और हों तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।