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Patrika Opinion: ऐसे तो कैसे बचेंगी हमारी बेटियां

locationनई दिल्लीPublished: Oct 01, 2020 02:42:09 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

आज हाथरस है, कल कोई दूसरा शहर या गांव-कस्बा होगा। हैवान हर जगह हैं, कैसे बचाओगे बेटियों को इनसे?

Rape

रेप

हाथरस गैंगरेप पीडि़ता 15 दिन संघर्ष करने के बाद आखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। पुलिस ने रात के अंधेरे में उसके गांव में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया, वह भी उसके परिवार की बिना मंजूरी के। हालांकि पुलिस का कहना है कि उसके पिता और भाई की अनुमति ली गई थी। हाथरस और देश की बिटिया तो दुनिया को अलविदा कह गई, लेकिन इस बेदर्द सिस्टम और समाज के हिस्से कई सवाल छोड़ गई।

अब सोशल मीडिया पर उसके लिए न्याय की मांग हो रही है, अभियान चल रहे हैं। आज हाथरस है, कल कोई दूसरा शहर या गांव-कस्बा होगा। हैवान हर जगह हैं, कैसे बचाओगे बेटियों को इनसे? कब तक यूं ही सब कुछ सहन करते रहेंगे? सवाल यह है कि आखिर क्या मजबूरी थी कि पुलिस ने आधी रात को ही अंतिम संस्कार कर दिया? सवालों की फेहरिस्त लंबी है, लेकिन मुश्किल यही है कि जवाब कौन देगा? क्या अपनी नाकामी को रात के स्याह अंधेरे में जलाकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर खुद को काबिल बताने में लगी है पुलिस?
हर बलात्कार इस देश के सिस्टम और सोच पर सवाल खड़े करता है। सवाल पुलिस से ज्यादा उन सरकारों के नेताओं से भी हैं, जिनकी जुबान दूसरे राज्यों के अपराधों पर तो खूब चलती है, लेकिन खुद के राज्य में होने वाली घटनाओं पर सांप सूंघ जाता है, आखिर क्यों? निर्भया के रेप पर चीखने वाली भाजपा अपने राज्यों में होने वाली घटनाओं पर ऐसी खामोशी क्यों ओढ़ लेती है? सवाल केवल भाजपा से नहीं है, सवाल उन सभी राजनीतिक दलों और नेताओं से हैं, जिन्हें अपने राज्यों में अपराध दिखाई नहीं देते हैं।

इस तरह के मामलों में भी वोट तलाशने के खेल में पुलिस एक सियासी हथियार भर है। विडंबना यह है कि ऐसे मामलों में भी जाति और धर्म का तड़का दिया जाता है, जिससे वोटों को प्रभावित किया जा सके। सोशल मीडिया पर भावनाओं को जाहिर कर सियासी हित साधने का प्रयास होता है। आखिर इस तरह की घटनाओं को रोका कैसे जाए? इसके साथ ही पुलिस को ऐसी घटनाओं के प्रति कैसे ज्यादा जिम्मेदार और जवाबदेह बनाया जाए? कैसे उन्हें संवेदनशील होकर काम करना सिखाया जाए? बलात्कार जैसे घिनौने अपराधों को रोकना जरूरी है। हिम्मत सरकार दिखाए। बैठकर बात करे।
राजनीतिक दल सियासत की बजाय नए रास्ते तलाशें। सिर्फ सोशल मीडिया पर भावनाएं जाहिर कर देने से किसी को न्याय नहीं मिल जाएगा। न्याय के लिए जरूरत है कि पहल जमीन पर होती हुई दिखाई देनी चाहिए।
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