नरसिम्हा राव की बड़ी उपलब्धि देश में उदारीकरण-वैश्वीकरण और निजीकरण की शुरुआत करने जैसा बड़ा कदम रहा तो उनकी बड़ी विफलता कोई बड़ी चुनावी जीत न होना रही। राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली।
इससे पहले उन्होंने गृह, वित्त, मानव संसाधन जैसे अहम मंत्रालय संभाले। उनकी सूझबूझ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मनमोहन सिंह जैसे गैर राजनीतिक व्यक्ति को अपना वित्त मंत्री बनाया पर राव का कार्यकाल भारतीय राजनीतिक इतिहास में राजनीतिक जोड़-तोड़ और तिकड़म भरा देखा जाता है।
उस दौर में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हुई। उत्तर भारत के राज्यों के चुनावों को छोड़ भी दें तो आंध्रप्रदेश में ही विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस का जमीनी आकलन यह रहा कि राव चुनाव नहीं जिता सकते। विवादित ढांचा गिराए जाने की घटना ने तो उनकी साख पर बट्टा लगा दिया था।
कांग्रेस में राव की भारी आलोचना होने लगी थी। राजनीतिक चश्मे से देखें तो कांग्रेस को यह खीझ भी है कि जवाहर लाल नेहरू के दौर से कांग्रेस को बहुसंख्यकों का जो समर्थन प्राप्त था, वह राव के दौर में ही टूट गया। इस कालखंड में ही भाजपा का उदय हुआ और देश को कांग्रेस का विकल्प मिल गया। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रकरण से भाजपा की उत्तर भारत में पकड़ मजबूत होती चली गई। वहीं कांग्रेस नुकसान झेलती गई और वह वोटबैंक के खेल में पिछड़ गई। शुरुआती दो साल तो राव और सोनिया गांधी के बीच सब ठीक रहा पर आगामी चार साल ‘खटास’ में ही निकले।
राव ने अपने खिलाफ उठते स्वरों के चलते 10-जनपथ के साथ भी पैंतरेबाजी की कोशिश की। उन्होंने बोफोर्स का मुद्दा उठाया। राजीव गांधी की हत्या के मामले में तेजी से कार्रवाई नहीं हुई। राव के बारे में माना गया कि वे राजनीतिक साजिश रचते रहते थे। भले ही देश को उन्होंने उदारीकरण का मॉडल दिया। अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले पर राजनीतिक मोर्चे पर वे विफल साबित हुए। उनकी प्रशासनिक उपलब्धियां कम नहीं हैं पर राजनीतिक शह-मात का खेल कांग्रेसजन के मन में राव की छवि धूमिल कर देता है।
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