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सेहत : कहीं आप ‘डॉक्टर शॉपिंग’ तो नहीं कर रहे

locationनई दिल्लीPublished: Feb 09, 2021 07:04:21 am

– मनोचिकित्सा विज्ञान में ‘डॉक्टर शॉपिंग’ प्रभावी इलाज संभव है।- एक सीमा तक शरीर में नजर आ रहे लक्षण हम सबको गंभीर बीमारियों के लिए जागरूक करते हैं ।

सेहत : कहीं आप 'डॉक्टर शॉपिंग' तो नहीं कर रहे

सेहत : कहीं आप ‘डॉक्टर शॉपिंग’ तो नहीं कर रहे

डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी

रंजीत के पिता को 2 वर्ष पूर्व हार्ट अटैक आया था और इस कारण से उनका निधन हो गया। कुछ समय बाद 28 वर्षीय रंजीत को सीने में दर्द, बेचैनी की शिकायत रहने लगी । वे बार-बार हृदय रोग चिकित्सक के पास जाने लगे, हर बार उनके सारे टेस्ट नॉर्मल रहे। उन्हें लगा ये डॉक्टर कुछ मिस कर रहे हैं। इसलिए वे अब शहर के कई हृदय रोग चिकित्सकों से परामर्श लेने लगे। एक बार तो रात में उन्हें इतनी बेचैनी हुई कि आपातकाल में उनकी एंजियोंग्राफी भी हुई, लेकिन सब कुछ सामान्य पाया गया।

उपरोक्त उदाहरण में रंजीत इलनेस एंग्जाइटी डिसऑर्डर (हाइपोकॉनड्रियासीस) से पीडि़त हैं। सामान्य रूप से चिंता या घबराहट आने वाले समय में कुछ अवांछित होने की आशंका होना है, जबकि इनका कोई वास्तविक आधार नहीं होता। एक सीमा तक शरीर में नजर आ रहे लक्षण हम सबको गंभीर बीमारियों के लिए जागरूक करते हैं और इस कारण से हम सही समय पर चिकित्सक से परामर्श लेकर लाभान्वित हो जाते हैं, लेकिन बिना वास्तविक आधार के इसका अनुपात इतना बढ़ जाए कि यह व्यक्ति के पारिवारिक, सामाजिक और आर्थिक जीवन को प्रभावित करने लगे तो हम इसे मनोरोग की श्रेणी में रखते हैं।

स्वभावत: घबराहट वाले, बचपन के कटु अनुभव झेलने वाले लोगों में ऐसी समस्याएं होने का खतरा बढ़ जाता है। इनमें गंभीर बीमारी हो जाने का भय बना रहता है, जैसे कि हार्ट अटैक, लकवा, कैंसर इत्यादि। शरीर में होने वाले किसी भी परिवर्तन को ये सीधा गंभीर बीमारियों के लक्षण से जोड़कर देखते हैं। इंटरनेट पर बीमारियों की गंभीरता को पढ़कर इनके लक्षण और बढ़ जाते हैं। कई बार ये घर वालों को बताए बिना ही बहुत से टेस्ट करवाते रहते हैं। इनके लिए बार-बार डॉक्टर बदलना बेहद सामान्य बात हो जाती है। इसे मनोविज्ञान की भाषा में ‘डॉक्टर शॉपिंग’ कहते हैं। लंबे समय तक उचित समाधान न होने पर डिप्रेशन और स्वयं को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ जाने का खतरा बना रहता है।

सतही तौर से देखने पर हमें इस समस्या के कारण हो रहे नुकसान स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहे होते, किन्तु वास्तविकता में व्यक्ति की जीवन की गुणवत्ता बुरी तरीके से प्रभावित हो रही होती है। गंभीर आर्थिक नुकसान के साथ-साथ उत्पादकता पर बुरा असर, सामाजिक और कार्यालयी जिम्मेदारी भी प्रभावित हो रही होती है। घर के सदस्यों या गैर मनोरोग चिकित्सकों का ये कहना, ‘ये सब तुम्हारे मन का फितूर है, इस समस्या को और बढ़ाए रखने का काम करता है। जागरूकता और आपके फिजिशियन का मार्गदर्शन आपकी समस्या की अवधि निर्धारित करने में महती भूमिका निभाता है। मनोचिकित्सा विज्ञान में इसका प्रभावी इलाज संभव है।

(लेखक मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट हैं और सुसाइड के खिलाफ ‘यस टु लाइफ’ कैंपेन चला रहे हैं)

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