आइआइटी की यह रिपोर्ट देश के हेल्थ सिस्टम की हकीकत को बयां करती है, जिसमें बुजुर्गों को लेकर कोई चिंता या फिक्र सरकारों की ओर से दिखाई नहीं देती। रिपोर्ट सुझाव देती है कि देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में अधिकाधिक निवेश की जरूरत है। कोरोनाकाल में लचर स्वास्थ्य सेवाओं के जिस तरह से उदाहरण सामने आए हैं, उनसे स्वास्थ्य क्षेत्र में व्यापक सुधारों की जरूरत स्पष्ट होती है। सवाल है कि आजादी के इतने साल बाद भी हम बुनियादी सुविधाओं में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत क्यों नहीं कर पाए। खासकर तब, जबकि एकल परिवारों की संख्या बढ़ रही है। बुजुर्गों के एक बड़े तबके के साथ उनके बच्चे नहीं रह रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में स्थिति ज्यादा चिंताजनक है। ऐसे में जरूरत है कि हम अपने हेल्थ सिस्टम में सभी नागरिकों के साथ बुजुर्गों की जरूरत को बारीकी से समझें और उसके बाद उसमें जरूरी संशोधन कर उन्हें सही इलाज मुहैया कराने की पहल करें।
देेश में सबसे बड़ी जरूरत बुजुर्गों की आत्मनिर्भरता को लेकर है। इसमें स्वास्थ्य सुरक्षा बड़ा सवाल है। यह तब ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है, जब बुजुर्ग 80 या इससे अधिक उम्र के हो जाते हैं। देश में बुजुर्गों में से 27 प्रतिशत से अधिक आबादी 80 वर्ष की उम्र पार करने वालों की है। इनमें ज्यादातर बुजुर्ग गतिहीन होने लगते हैं। उन्हें स्वास्थ्य सुरक्षा कवरेज की अधिक जरूरत होती है। सभी बुजुर्गों को यह कवरेज कैसे मिले, इसके लिए सरकार को गंभीरता से सोचना होगा। बेहतर हो कि सरकार एक उम्र के बाद सभी के उपचार का खर्च वहन करे, जिससे उन्हें स्वास्थ्यगत जरूरतों के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं रहना पड़े। इसके लिए सरकारी स्तर पर समग्र योजना बनाने की जरूरत है। बुजुर्गों को स्वास्थ्य सुरक्षा कवरेज मिलेगा तो यह न केवल उनकेप्रति सम्मान होगा, बल्कि उनकी आर्थिक मुश्किलों को काफी हद तक कम करेगा।