बीमारियों से बचाव की पद्धति में पीछे : मौजूदा दौर में दवाओं से चिकित्सा में हम काफी तरक्की कर चुके हैं, लेकिन बीमारियों से बचाव की पद्धति में काफी पीछे हैं। इंसान ने अपने जीवन की रक्षा के लिए हवा, पानी और वनस्पति से छेड़छाड़ की। इसका नतीजा यह निकला कि सांस लेने के न शुद्ध हवा है, न पीने के लिए साफ पानी। खाने तक के लिए शुद्ध साग-सब्जी नहीं है। देश में आज भी 60-70 फीसदी आबादी विशेषज्ञों की सलाह और चिकित्सा से वंचित है क्योंकि 80 फीसदी विशेषज्ञ शहरों में हैं। स्वास्थ्यकर्मी गांवों में काम करने के इच्छुक नहीं हैं क्योंकि वहां उनके लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं।
चिकित्सा पेशेवरों का कम हुआ आत्मविश्वास : वहीं गुणवत्ता नियामक संस्थाओं का फोकस गुणवत्ता पर न होकर मात्र संख्या या मात्रा पर है। स्वास्थ्य निदेशालय जैसी सर्वोच्च प्रशासनिक संस्था में तकनीकी विशेषज्ञों का अभाव है। वहां बदलाव की जरूरत है। राजनेताओं और नौकरशाही की बढ़ते दखल ने चिकित्सा पेशेवरों का आत्मविश्वास कम कर दिया है। इससे वे समुचित सेवा नहीं दे पा रहे हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत ः सार्वजनिक क्षेत्र में प्राथमिक,द्वितीय और तृतीय स्तर की स्वास्थ्य सेवाओं में सामंजस्य का अभाव है। निजी क्षेत्र में सेवा की अपेक्षा लाभ का अधिक महत्व है। अब स्वास्थ्य सेवाओं को पुनर्परिभाषित करने की जरूरत है। क्रॉस सब्सिडी मॉडल के आधार पर सार्वभौमिक स्वास्थ्य सेवा तंत्र बनाने की आवश्यकता है, जहां समृद्ध व्यक्ति गरीब के लिए सब्सिडी दे और सरकार संसाधनों का निर्माण करे।
उपचार को भी कर सकते हैं आउटसोर्स : क्रॉस सब्सिडी मॉडल के आधार पर उपचार को भी आउटसोर्स किया जा सकता है ताकि कुछ लोगों तक श्रेष्ठ सेवाओं की पहुंच के बजाय सभी को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। गांवों के विकास की पहल रूर्बन का प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में नवाचार चिकित्सा मानव शक्ति प्रबंधन में प्रयोग से किया जा सकता है। यह मॉडल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र(सीएचसी) या ब्लॉक स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को अत्याधुनिक प्रथम संपर्क केंद्रों के रूप में उपलब्ध करवाया जाए। अच्छे स्कूल,सुपर मार्केट और सारी सरकारी सुविधाएं उपलब्ध हों जो स्थानीय, क्षेत्रीय और ग्रामीण आबादी को विकास का माहौल उपलब्ध करवाए। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप यानी पीपीपी आधारित मॉडल चिकित्सा जगत में नई प्रतिभाओं के बने रहने और उनको भर्ती के अवसर देगा।
ये हो सकते हैं प्रशासनिक सुधार – प्रशासनिक तंत्र को एकजुट होने और पुनर्गठित करने की जरूरत है। – प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक स्वास्थ्य सेवाओं के बीच स्वास्थ्य सेवा निदेशक बेहतर कड़ी बन सकते हैं।
– आयुष सेवाओं की भी निगरानी रखनी चाहिए ताकि सामंजस्य रह सके। – चिकित्सा शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, पर्यावरण और पीएचईडी विभाग को मिलकर काम करने की जरूरत है। – एक अतिरिक्त मुख्य सचिव इन विभागों के कार्य का अवलोकन करे।
– स्वदेशी चिकित्सा उपकरणों एवं स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतें कम करने के लिए शैक्षणिक विश्वविद्यालयों को चिकित्सा और जैव प्रौद्योगिकी संस्थानों के साथ मिलकर काम करना होगा। – राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान जैसे आइसीएमआर, डीबीटी और सीएसआइआर को अधिक विशेषज्ञता हासिल करने औऱ अनुसंधान का माहौल विकसित करने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है।(पत्रिका से बातचीत )