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“नरक”! जिम्मेदार कौन?

Published: Sep 30, 2015 11:52:00 pm

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू ने
कहा है कि वकीलों की बेनामी शिकायतों की वजह से जजों

Supreme court

Supreme court

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू ने कहा है कि वकीलों की बेनामी शिकायतों की वजह से जजों का जीवन नरक हो गया है। देश के मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी विचार की मांग करती है। सारा देश न्यायपालिका की ओर बहुत आशा से देखता है।

पर न्यायपालिका के शीष्ाü से इस तरह की चिंता सोचने को विवश करती है कि न्यायपालिका में सब कुछ ठीक नहीं है।


गौर करने की बात यह भी है कि मुख्य न्यायाधीश ने इसी टिप्पणी के दौरान खुलकर कॉलेजियम प्रणाली की वकालत भी की है। आखिर न्यायपालिका की इस चिंता के सरोकार क्या हैं? इसी पर पढिए आज का स्पॉटलाइट…


गलती बताना वकील का काम


भारत के मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू की ओर से वकीलों के संदर्भ में जो बयान आया है वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। एक वकील अगर कोई गलती करता है तो उससे पूरे वकील समुदाय पर अंगुली नहीं उठाई जानी चाहिए। यह अनुचित है।


मुख्य न्यायाधीश का यह कहना कि वकीलों की झूठी शिकायतों की वजह से न्यायाधीशों का जीना हराम हो गया है, इससे जनता की नजरों में सारे वकील समुदाय की गरिमा और सम्मान को ठेस पहुंची है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन की हैसियत से मैं इस बयान पर पुनर्विचार करने का आग्रह करूंगा। जिस तरह से एक न्यायाधीश के गलत कृत्य के मद्देनजर सारे न्यायाधीश समुदाय को भला-बुरा कहना ठीक नहीं है, उसी तरह से किसी एक वकील की गलती के लिए इस तरह से टिप्पणी करना कि सारा वकील समुदाय ही एक गलत नजर से देखा जाए, एक गलत पंरपरा है।

दत्तू को नहीं करनी चाहिए थी सुनवाई


वकील होने के नाते हमारा काम यह भी होता है कि अगर न्यायपालिका या कार्यपालिका में कुछ गलत हो रहा है तो उसको दुरूस्त करने के लिए सभी संभव प्रयास करें। इसलिए अगर कोई वकील किसी न्यायाधीश के गलत आचरण के बारे में शिकायत करता है तो उसे गलत नहीं कहा जा सकता। लेकिन इस संदर्भ एक बात और कहना जरूरी है। माननीय मुख्य न्यायाधीश ने यह टिप्पणी एक न्यायाधीश की नियुक्ति के बारे में सुनवाई करते हुए की है। इस नियुक्ति की सिफारिश उसी कॉलेजियम ने ही की थी जिसके संभवत: भाग खुद मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू रह चुके हैं।


इसलिए न्याय का सिद्धांत तो यही कहता है कि इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश को नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि न्याय का सिद्धांत तो यही कहता है कि कोई भी व्यक्ति खुद ही गलती करने वाला और खुद ही न्याय करने वाला नहीं हो सकता। यह संभव है किसी एक न्यायाधीश के खिलाफ किसी वकील की जो शिकायत उन्हें मिली थी वह पूरी तरह फर्जी हो या फिर सही भी हो। पर न्याय की मांग तो यही थी कि मुख्य न्यायाधीश खुद को इस मामले की सुनवाई से अलग करते हुए ऎसी बेंच को यह मामला सौंपते जो कि उस न्यायाधीश की नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा नहीं थे।


आखिर ऎसा तो नहीं कहा जा सकता कि कॉलेजियम के माध्यम से आज तक जिन जजों की नियुक्तियां हुई हैं, वे सारी सही ही थीं।


कोई और भी कर सकता है शिकायत

मुख्य न्यायाधीश का यह कहना भी ठीक नहीं है कि वकीलों की ओर से जो शिकायतें मिलती हैं वे बिना नाम के अर्थात अज्ञात होती हैं। अगर कोई अज्ञात शिकायत मुख्य न्यायाधीश को मिलती है तो वे कैसे यह कह सकते हैं कि यह शिकायत किसी वकील ने ही की है?


यह भी संभव है कि यह शिकायत किसी पत्रकार या किसी आम आदमी या फिर किसी साथी न्यायाधीश ने ही की हो! कोई वजह नहीं कि कोई वकील किसी न्यायाधीश के खिलाफ अज्ञात शिकायत करे।

सभी उच्च न्यायालयों में कुछ वकीलों की आदत है कि वे न्यायाधीशों के खिलाफ बेनामी शिकायतें करते हैं। ये वकील भली-भांति जानते हैं कि इस तरह की शिकायतों को लेकर जज अपना बचाव नहीं कर पाएंगे। न्यायाधीशों का जीवन नरक होकर रह गया है।एच. एल. दत्तू, भारत के मुख्य न्यायाधीश

शिकायत ही पेशा हो जाए तो?

मुख्य न्यायाधीश की बात में काफी सच्चाई है। जहां भी वकीलों को कोर्ट असहज लगता है तो शिकायत दर्ज कर दी जाती है। ऎसे वकील हर जगह हैं बल्कि वकील के भेष में ऎसे लोग हैं, जिनका काम ही सिर्फ शिकायत करना होता है। वे कहने को वकील होते हैं, काम वे सिर्फ एजेंट के तौर पर कर रहे होते हैं। जजों के खिलाफ शिकायत ही उनका पेशा बन जाता है। जब जजों के खिलाफ शिकायत आती है तो जाहिर है कि जांच होती है। इन शिकायत में नाम तो कभी होता नहीं है। सारी शिकायतें अनाम होती हैं और ज्यादातर शिकायतें एक सरीखी आती हैं। मैं उत्तर प्रदेश की ही बात करूं तो आधे से ज्यादा वकीलों का तो काम ही शिकायतें डालना है। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट में 80 जिलों से करीब 1000 शिकायतें रोज आती हैं। 1994-95 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में बतौर सीनियर जज मेरे पास सभी शिकायतों को जांच करने का जिम्मा था। असल में मैं तो उन सारी शिकायतों को पढ़ भी नहीं पाता था। हालांकि कई शिकायतें जायज भी होती हैं, जिन पर कार्रवाई की जाती हैं।


दत्तू ने कॉलेजियम सिस्टम की तारीफ भी की है। मेरा मानना है कि कुछ चीजें ठीक कर दें तो कॉलेजियम सिस्टम बेहतरीन है। पहला, अगर कॉलेजियम को आईबी जैसी एक स्वतंत्र जांच एजेंसी दे दी जाए तो फिर कॉलेजियम में सरकार का कानून मंत्री भी बैठे तो कोई परवाह नहीं होगी। केंद्र सरकार की तरह ही सुप्रीम कोर्ट की एक अलग स्वतंत्र आईबी हो तो जज आसानी से जांच कर सकते हैं। दूसरा, कॉलेजियम में पारदर्शिता सुनिश्चित हो जाए तो फिर नए सिस्टम की जरूरत नहीं होगी। यही अच्छा काम कर सकता है।

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