हम दावे के साथ कहते हैं कि चाहे हम हमेशा रो-पीट कर थर्ड डिवीजन पास हुए हो लेकिन हमारी अंक- तालिका फर्जी कतई नहीं है। एकदम शुद्ध है। आप चाहे तो सीबीआई से जांच करा लें या फिर कोई जांच आयोग बिठा दें। लेकिन हमारी छोटी-सी बुद्धि में एक बात नहीं घुस रही कि किसी जमाने में प्रसारित ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की हीरोइन और आज की कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी काहे को अपनी मार्कशीट छिपा रही हैं? दिक्कत क्या है?
अजी हम पढऩे-लिखने में पैदल थे, तो थे। और जो पढऩे-लिखने में अव्वल रह कर प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बन गए उन्होंने क्या फली फोड़ ली। हम आपको एक-दो नहीं, दर्जनों ऐसे अफसरों के नाम गिना सकते हैं जिन्होंने रिश्वत खाने, नियमों को तोडऩे-मोडऩे में अपनी सारी प्रतिभा लगा दी।
हैरानी इस बात की है कि देश को चलाने का दावा करने वाले भी अपने को गोपनीय रखना चाहते हैं। अरे बहनजी! ये ‘गुप्तकाल’ नहीं है, आधुनिक काल है और हम लोकतंत्र में रह रहे हैं। जहां के नागरिकों को अपने जनप्रतिनिधि के बारे में जानने का पूरा हक है। क्योंकि हम न केवल आपको चुनते हैं वरन् आपके हाथ में हमारा ही नहीं हमारी कई पीढिय़ों का भविष्य भी सौंप देते हैं।
क्या फर्क पड़ता है कि हमारी तरह कोई नेता थर्ड डिवीजन पास हुआ है या पढ़ा-लिखा है या नहीं। इस देश में लाखों ऐसे प्रतिभाशाली हैं जिन्होंने कागज-कलम हाथ में ही नहीं लिया और देश के लिए महान काम किया। लेकिन हाय। जिसे देखो वही अपने को ‘गुप्त’ रखना चाहता है। पता नहीं लोग जीवन में खुली किताब की तरह क्यों नहीं रहते।
व्यंग्य राही की कलम से