यों तो सबसे जाना-माना गांव किंडरडिजक है पर वो रॉटरडैम के पास था। समय को ध्यान में रख कर जांसे शैन्स जाना तय किया जो सेंट्रल स्टेशन से बस कुछ मिनटों पर चौथा पड़ाव था। वहां उतर कर पवनचक्की के खुले संग्रहालय तक पहुंचने के लिए काफी लंबा चलना पड़ा पर पहुंचने पर जो देखा और जाना वो बहुत ही सुंदर और मजेदार था क्योंकि आप वहां 18वीं और 19वीं सदी में पहुंच जाते हैं। कभी दस हजार पवनचक्की के देश के रूप में जाना जाने वाला देश जिसने अपने देश में पानी से संघर्ष करने के लिए पवनचक्की बनाई थी आज हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आकर्षित कर रहा है। चूंकि हॉलैंड समुद्र तल से निचाई पर था, उसने जल निकालने के लिए पवनचक्कियों का बड़ी होशियारी से उपयोग किया और उनसे पैदा होने वाली ऊर्जा को लकड़ी काटने से लेकर आटा पीसने और तेल निकालने से कागज बनाने तक के काम में लिया। अकेले जांसे शैन्स में ढाई सौ साल पहले 600 चक्कियां थीं पर भाप का इंजन बनने के साथ इनका उपयोग कम हो गया। हॉलैंड ने इन ऐतिहासिक पवनचक्कियों की विरासत को संभालने में जो होशियारी दिखाई है वह एक उदाहरण है।
इस खुले संग्रहालय की कल्पना 1961 यानी साठ साल से ज्यादा पहले कर ली गई थी। जिस स्थान को चुना गया वहां पहले से दो पुरानी पवनचक्कियां चल रही थीं। वहां न केवल आसपास से पुरानी चक्कियां लाई गईं बल्कि लकड़ी के पुराने घर भी लाए गए और उनमें छोटे-छोटे संग्रहालय बनाए गए। कहीं हाथ से लकड़ी के पुराने जमाने वाले जूते बनते दिखाई देंगे तो कहीं औजार। समृद्ध परंपराओं के बावजूद आज तक हमारे स्मारकों पर हम यह नहीं कर पाए हैं। एक खास बात यह और कि हमारी तरह हर जगह ऐसे बोर्ड उनकी दीवारों पर नहीं लगे हैं कि कौन से मंत्री या अधिकारी के कर-कमलों द्वारा ये काम कब-कब संपन्न हुआ। यहां पर्यटकों के लिए उनकी पसंद के खाने-पीने की सब सामग्री उपलब्ध है, किसी किस्म की पाबंदी नहीं है। पाबंदी है तो सिर्फ वहां के रखरखाव को न बिगाड़ने पर।
खैर पर्यटक कुछ सक्रिय मिलों के अंदर ऊपर तक जा कर आसपास के नजारों की तस्वीरें ले सकते हैं। एक पवनचक्की का नाम कैट माने बिल्ली है तो दूसरी का भेड़! मुझे पवनचक्की को अंदर से देखने में जो मजा आया वह आप शब्दों से नहीं, वहां जा कर ही ले सकते हैं। अब जब दोबारा जाऊंगी तब पवनचक्की वाला वह गांव भी देखूंगी जो विश्व विरासत में शामिल है।