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मंदी के बीच भारत के लिए उम्मीद भी

locationनई दिल्लीPublished: Apr 28, 2020 04:13:52 pm

Submitted by:

Prashant Jha

ज्यादातर देश चीन से अपनी कंपनियों को हटाना चाहते हैं। इसमें उनके लिए पहला विकल्प भारत ही है। इस तरह से चीन की अर्थवयवस्था पर ज्यादा खतरा है और भारत के लिए इसमें सुखद संकेत है।

मंदी के बीच भारत के लिए उम्मीद भी

मंदी के बीच भारत के लिए उम्मीद भी

अवधेश कुमार, वरिष्ठ पत्रकार और (समसामयिक मुद्दों पर लेखन)

कोरोना कोविड 19 प्रकोप के कारण पूरी दुनिया की गति ठहर गई है। दुनिया में हर 5 में से 4 लोग लॉकडाउन से प्रभावित हैं। इसका असर अर्थव्यवस्था पर भयावह होगा यह तो कोई अदना व्यक्ति भी समझ सकता है। हालांकि इसका निश्चयात्मक आकलन कठिन है कि कितना होगा। अलग-अलग संस्थाएं अपना आकलन दे रहीं हैं जिसमें अंतर है, लेकिन अर्थव्यवस्था शून्य या उससे नीचे भी चली जाएगी इस पर लगभग एक राय है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की प्रमुख ने कहा है कि इस बार की मंदी 2008 से काफी बदतर हो सकती है। सबसे बुरा असर रोजगार पर पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने पहले चेतावनी दी थी कि अगर वायरस को सही समय पर नियंत्रण में नहीं लाया जाता है तो इससे 2.5 करोड़ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है। रोजगार पर यह प्रहार 1930 से भी भयंकर हो सकता है जहां उस समय भी महामारी से आर्थिक मंदी हुई थी। अब चूंकि बेरोजगारी इस आंकड़े को कब का पार कर चुकी है इसलिए अभी आप अनुमान भी नहीं लगा सकते कि कितने बेरोजगार होंगे। अकेले अमेरिका ने डेढ़ करोड़ से ज्यादा बेरोजगार हुए हैं तो ब्रिटेन जैसे छोटे देश में एक करोड़।

डच बैंक एजी के इकोनॉमिक रिसर्च में वैश्विक प्रमुख पीटर हूपर का बयान आया है। उन्होंने कहा है कि हम अमेरिका और यूरोप में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी देख सकते हैं। अमेरिका की तबाही की पहली झलक मासिक श्रम रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दिखाई दी जिसमें पिछले महीने रोजगार एक दशक में पहली बार के लिए गिर गया। क्योंकि बेरोजगारी लाभ के लिए अमेरिका में आवेदकों की संख्या काफी बढ़ गई। गोल्डमैन सैश ने अनुमान लगाया है कि बहुत जल्द ही बेरोजगारी की दर 15 फीसदी से ऊपर जा सकती है। यूरोप में एक रिपोर्ट के अनुसार दो हफ्तों में लाखों ब्रिटानियों ने वेलफेयर भुगतान के लिए आवेदन किया है जो सामान्य से दस गुना ज्यादा है। यहां सर्वे के अनुसार निकट समय में 27 प्रतिशत कर्मचारियों की छुट्टी की जा सकती है। स्पेन में करीब 14 प्रतिशत बेरोजगारी दर पहले से ही दिख रही है जो विकसित देशों में सबसे अधिक है। ऑस्ट्रिया में बेरोजगारी दर 12 प्रतिशत हो गई है जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद सबसे ज्यादा है। जर्मनी में भी मार्च में बेरोजगारी दर बढ़ी। मार्च में 470,000 कंपनियों ने जर्मन वेज सपोर्ट के लिए आवेदन किया था और इस आंकड़े में और वृद्धि की संभावना है। फ्रांस के व्यवसायों ने भी अपने कर्मचारियों को पेरोल पर बनाए रखने के लिए इस तरह के लाभ के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया है।
अगर भारत की बात करें तो अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 90 प्रतिशत लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं। ऐसे में करीब 40 करोड़ कामगारों के रोजगार पर असर पड़ने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, संकट के कारण 2020 की दूसरी तिमाही (अप्रैल-जून) में 6.7 प्रतिशत कामकाजी घंटे खत्म होने की आशंका है। यानी दूसरी तिमाही में ही 19.5 करोड़ पूर्णकालिक नौकरियां खत्म हो सकती हैं। शहरी इलाकों में कोरोवायरस की वजह से बेरोजगारी दर बढ़कर 30.9 प्रतिशत हो जाएगी, जबकि कुल बेरोजगारी दर के 23.4 प्रतिशत रह सकता है। भारत के सांख्यिकीविद प्रनब सेन ने एक आकलन जारी किया है। इसके अनुसार लॉकडाउन के पिछले दो हफ्तों में करीब 50 मिलियन यानी 5 करोड़ लोग बेरोजगार हुए हैं। लॉकडाउन के खत्म होने का बाद बेरोजगारी दर के सटीक आंकड़ों का पता लग सकेगा। ये सारे आंकड़ें और अनुमान संगठनों और व्यक्तियों की अपनी समझ और विश्लेषण के अनुसार हैं।

अब आएं समग्र अर्थव्यवस्था की ओर। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि कोरोना वायरस की वजह से दुनिया में 1930 की महामंदी के बाद सबसे बड़ी मंदी आ रही है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर २०२० में 1.9 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। ध्यान रखने की बात है कि भारत की यह रफ्तार दुनिया में सबसे तेज है। अमेरिका सहित अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था की दर नकारात्मक हो जाएगी। मुद्राकोष ने कहा है कि केवल दो बड़े देश 2020 में सकारात्मक विकास हासिल कर पाएंगे। भारत के अलावा चीन की अर्थव्यवस्था 1.2 प्रतिशत की गति से बढ़ सकता है। अमेरिका की विकास दर -5.9 प्रतिशत, जापान की-5.2, ब्रिटेन -6.5, जर्मनी-7.0, फ्रांस-7.2 प्रतिशत, इटली -9.1 प्रतिशत, रूस -5.5 प्रतिशत, ब्राजील -5.3 प्रतिशत तथा स्पेन की विकास दर -8.0 प्रतिशत रह सकता है। इसमें भारत अगर 1.9 प्रतिशत की विकास दर हासिल करता है तो यह बड़ी बात होगी।

मुद्राकोष की मुख्य गीता गोपीनाथ का बयान है कि हम वैश्विक विकास दर -3 फीसदी तक गिरने का अनुमान लगा रहे हैं। गोपीनाथ का कहना है कि संकट अभूतपूर्व है। हालांकि विश्व बैंक ने इससे अलग अनुमान दिया है। दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताजा अनुमान साउथ एशिया इकोनॉमिक फोकस रिपोर्ट यानी कोविड-19 का प्रभाव संबंधी रिपोर्ट में इसने कहा है कि 2020-21 तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी और यह घटकर1.5 प्रतिशत से 2.8 प्रतिशत के बीच रह जाएगी। हालांकि विश्व बैंक ने यह भी कहा है कि कोविड-19 के प्रभाव के खत्म होने एवं वित्तीय और मौद्रिक नीतिगत मदद की वजह से अगले वित्त वर्ष (2021-22) में देश का सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर पांच प्रतिशत के आसपास रह सकता है। हां, इसके लिए अर्थव्यवस्था को वित्तीय और मौद्रिक नीति के समर्थन की जरूरत होगी।

ब्रिटिश ब्रोकरेज फर्म बार्कलेज ने कोरोना वायरस महामारी के चलते भारत में देशव्यापी लाकडाउन को तीन मई तक बढ़ाने से 234.4 अरब अमेरिकी डालर का आर्थिक नुकसान होगा। बार्कलेज के अनुसार आर्थिक वृद्धि कैलेंडर वर्ष 2020 के लिए शून्य होगी और वित्त वर्ष के नजरिए से देखा जाए तो 2020-21 में इसमें 0.8 प्रतिशत की वृद्धि ही होगी। किंग्स कॉलेज लंदन और ऑस्ट्रेलिया की नेशनल यूनिवर्सिटी ने एक शोध किया है। इसके विश्लेषण के अनुसार 1990 के बाद पहली बार वैश्विक गरीबी का स्तर बढ़ेगा। सबसे गंभीर परिदृश्य में आय में 20 प्रतिशत की गिरावट शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप अतिरिक्त 54 करोड़ लोग प्रति दिन 5.50 डॉलर (417 रुपये) की विश्व बैंक की गरीबी सीमा से कम कमाएंगे।

वस्तुतः मंदी के जितने भी आकलन आ रहे हैं उनका भविष्य कोरोना प्रकोप के नियंत्रण पर निर्भर करेगा। यदि समय पर नियंत्रण नहीं हुआ तो फिर सारे अनुमान धाराशायी हो जाएंगे। महामारी से निपटने पर कितना खर्च आता है, इस दौरान सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों पर खजाने कितने खाली होते हैं, तथा लॉकडाउन की अवधि में ठप्प पड़ी आर्थिक गतिविधियां कितना व्यापक होतीं हैं इन सब पर ही नहीं, लॉकडाउन हटने के बाद आर्थिक पुनरुद्धार को चुनौतियों से भारत सहित दुनिया के देश कैसे निपटते हैं यह भी मायने रखेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि लॉकडाउन की आर्थिक कीमत बहुत बड़ी है। लोगों की आय काफी घटी है, बड़ी संख्या की तो आय बिल्कुल खत्म हो गई है। इसलिए कोरोना महामारी विश्व की अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत बड़े संकट का कारण बनेगा इस बात से किसी का दो मत नहीं हो सकता। लेकिन भारत को लेकर दोनों विश्व संस्थाओं का रुख सकारात्मक है। वैसे देखें तो केन्द्र ने एक बड़ा आर्थिक पैकेज आरंभ में जारी कर दिया।

जनधन खातों में छोटी ही सही राशि जा रही है। किसान सम्मान निधि जा रही है। जनकल्याणकारी पेंशन अग्रिम दे दिए जा रहे हैं। राशन की सस्ती और कुछ राज्यों मेें एक विशेष वर्ग के लिए मुफ्त भी है। और भी पैकेज आने वाले हैं। केन्द्र की छोटी इन्श्योरेंस योजनाए गरीबों के लिए बड़ी राहत साबित होगी। हमारा मानना है कि हमारे यहां कृषि गतिविधियां अब चलने लगीं हैं, कृषि से जुड़े कुछ व्यवसाय भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए आरंभ हो रहे हैं। डेयरी भी चल रहा है। ये सब क्षति को कम करने वाले कारक होंगे। हां, जैसा हम जानते हैं देश का लगभग एक-तिहाई कार्यबल अस्थायी होता है, जिनके पास आर्थिक सुरक्षा नहीं होती है। ऐसे में सरकार को लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए उचित कदम उठाने होंगे।

इसलिए भारत की बेहतरी को लेकर आत्मविश्वास होना चाहिए। अंकटाड यानी यूनाइटेड नेशंस कांफ्रेंस औन ट्रेड एंड डेवलपमेंट की रिपोर्ट में भारत और चीन के लिए बेहतर आकलन है। इससे विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी के बीच रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन बचे रहेंगे। हालांकि रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि आखिर भावयह मंदी में भारत और चीन कैसे बचे रहेंगे, पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की इस विश्वसनीय संस्था के आकलन को हम खारिज नहीं कर सकते। हालांकि चीन के खिलाफ जिस तरह का वातावरण बन रहा है उसकी उम्मीद पहले आकलन करने वाली संस्थाओं को नहीं रही होगी। दुनिया के सारे प्रमुख देश उससे नाराज हैं और क्षतिपूर्ति तक का दावा कर रहे हैं। जर्मनी ने तो 11 हजार करोड़ यूरो का दावा भी कर दिया है। ज्यादातर देश अपनी कंपनियों को वहां से हटाना चाहते हैं। इसमें उनके लिए पहला विकल्प भारत ही है। तो चीन की अर्थवयवस्था पर ज्यादा खतरा है और भारत के लिए इसमें सुखद संकेत है।

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