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जनादेश में छिपे संदेशों को काश विपक्षी दल समझें :प्रभात झा

कार्यकर्ता राजनीतिक दलों और जनता के बीच सेतु का कार्य करता है। दल का शृंगार होता है कार्यकर्ता। जिस दल को कार्यकताओं पर विश्वास नहीं, वह जनता का विश्वास कैसे हासिल कर सकता है।

जयपुरMay 31, 2019 / 03:27 pm

dilip chaturvedi

prabhat jha

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प्रभात झा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजपा

सन् 2019 लोकसभा चुनाव के जनादेश का सभी राजनीतिक दलों को गहरा अध्ययन करना चाहिए। मुझे विश्वास है कि वे ऐसा कर भी रहे होंगे। अभी तक जो हमने विश्लेषण किया है, उसमें राजनीतिक दलों के लिए अनेक सन्देश छिपे है, उसे क्रमश: रखने का प्रयास कर रहा हूं। इस जनादेश ने इतिहास रचा है।

‘इतिहास’ घटता है न कि घटाया जाता है। अवसर तो भारत में बहुत बड़े-बड़े नेताओं और राजनीतिक दलों को मिला, पर प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाते अमित शाह ने सहमति और समन्वय का इतिहास रचा है। यह वर्तमान राजनीति में अद्वितीय घटना है। इस संदेश के पीछे इस ‘समन्वय’ की बहुत बड़ी भूमिका है। नेता जो सोचता है, संगठन उसे पूरा करने में लग जाए और संगठन जो सोचे उसे नेता पूरा करने में लग जाए, यह सामान्य बात नहीं है। भाजपा को छोडक़र देश में अभी ऐसा राजनीतिक दल कोई नहीं है।

इस जनादेश में कुछ महत्त्वपूर्ण संदेश और भी हैं, जैसे भारत के जनविवेक को जातीय आधार पर देखना। जनतंत्र के 73 वर्ष हो गए। अब जनता परिपक्व हो गई है। उसके जन विवेक को जाति से जोडक़र उसे मजबूर समझना नादानी है, समझदारी नहीं। ‘जातीय’ मिथक तोडऩे का यह प्रयास निरंतर जारी रहना चाहिए।

‘दल से बड़ा देश’ है। इस विचार से हटकर अन्य दलों की स्थिति यह है कि सबसे पहले स्वयं, फिर दल और उसके बाद देश। अपवाद स्वरूप परिवारवाद या वंशवाद ठीक है, पर इसी भाव पर आधारित दलों को जनता ने धराशायी कर दिया।

यदि आप जनप्रतिनिधि हैं तो आप पर जनता का हक है। अब राजनीतिक तौर पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि को दिखने के साथ-साथ काम भी करते रहना होगा।आप विरोध के लिए विरोध न करें। विरोध सार्थक-समर्थ और तथ्यपरक हो तो जनता के विवेक को स्वीकार भी होना चाहिए। अनर्गल आरोपों से नेता और उसके दल का ही बुरा हश्र होता है। पुलवामा के बाद बालाकोट की घटना को देश ने सराहा, पर विपक्षी दलों ने मजाक उड़ाया। विपक्ष की इस को लेकर बड़ी आलोचना हुई। भारतीय राजनीति में मतभेद सदैव रहेंगे, पर मर्यादा और मानदंड कभी नहीं भूलने चाहिए।

नेता दो आंखों से जनता को देखना चाहते हैं, पर भूल जाते हैं कि जनता हजार आंखों से उन्हें देख रही है। अत: विरोध विचारों का होना चाहिए न कि देश में हो रहे विकास का। विपक्षी दल विकास का विरोध करते रहे, जिससे उनकी सोच भी थम गई। धर्म निरपेक्षता के नाम पर अब मतदाता को, आम नागरिक को गुमराह नहीं किया जा सकता।

हर राजनीतिक दल को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को सम्मान देना चाहिए। कार्यकर्ता राजनीतिक दलों और जनता के बीच सेतु का कार्य करता है। दल का शृंगार होता है कार्यकर्ता। जिस दल को कार्यकताओं पर विश्वास नहीं, वह जनता का विश्वास कैसे हासिल कर सकता है। आज भारतीय राजनीति और दलों को यह समझने की महती आवश्यकता है। एक और अहम संदेश यह कि देश उसे पसंद करता है जो देश हित में साहसिक निर्णय लेते हैं न कि मात्र दल हित में। विपक्ष ने उन साहसी निर्णयों को वोट की नजरों से देखा, जबकि देश ने मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों को देश हित में देखा।

इस जनादेश में संदेश तो कई हैं, पर एक अंतिम और अहम संदेश यह कि संविधान, संसद, सरहद और सुरक्षा के साथ-साथ उपस्थित लोगों में से देश किनके हाथों में सुरक्षित है। लोग जब विचार करते हैं तो सभी नेताओं के चेहरे चलचित्र की तरह आंखों के आगे आते हैं। चुनाव उन्हीं का होता है, जिन पर अटूट विश्वास होता है। जन-जन का विश्वास जीतने के लिए विश्वासपूर्ण कार्य करने होते हैं। नरेंद्र मोदी इस कसौटी पर सबसे अव्वल रहे। उन्हें इसका दोहरा ईनाम मिला।

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