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आपकी बात: राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच में होने वाले टकराव को कैसे टाला जा सकता है?

locationनई दिल्लीPublished: Oct 14, 2020 06:00:40 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया और पाठकों ने मिलीजुली प्रतिक्रिया दी। पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

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टकराव से नुकसान
केन्द्र में जिस दल की सरकार होती है, उस दल की विचारधारा से प्रभावित व्यक्ति को ही राज्यपाल बनाया जाता है। जब केंद्र और राज्य में एक ही दल की सरकार होती है, तब तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के संबंध बड़े ही मधुर होते हैं। दोनों के मध्य कोई परेशानी नहीं होती, लेकिन जब राज्य में विरोधी दल की सरकार होती है ,तो मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य कुछ फैसलों को लेकर टकराव पैदा हो जाता है। यही टकराव लोकतांत्रिक प्रक्रिया को हानि पहुंचाता है। इसलिए मुख्यमंत्री और राज्यपाल के मध्य पैदा हुए टकराव को रोकने का सबसे आसान और सही तरीका यही है कि राज्यों में राज्यपाल के पद पर किसी ऐसे व्यक्ति को ही भेजा जाए, जो किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ न हो और ना ही किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित हो।
-कुशल सिंह राठौड़, जोधपुर
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दलगत सोच से बाहर निकलें
राज्यपाल और मुख्यमंत्री दोनों ही मजबूत लोकतंत्र के उत्तरदायी आधार स्तंभ हैं। इन दोनों पदों पर बैठे व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह दलगत राजनीति के दलदल से बाहर निकलकर ही कार्य करे। दलगत राजनीति वाली सोच ऐसे टकराव को जन्म देती है और भविष्य में भी देती रहेगी। यह किसी भी दृष्टि से लोकतंत्र के लिए ठीक बात नहीं है। ऐसे दलगत विचारों की बजाय न्यायपूर्ण और संवैधानिक निर्णय के आधार पर चलकर ही इन पदों की गरिमा बचाई जा सकती है।
-डॉ. विकास पंडित, सेंधवा, बड़वानी, मप्र
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जरूरी है आपसी सहयोग और तालमेल
राज्यपाल की नियुक्ति केंद्र सरकार से होने के कारण राज्यपाल को एक प्रकार से केन्द सरकार के आंख तथा कान भी कहा जा सकता है। वह केन्द्र सरकार तथा सत्ताधारी दल का आज्ञाकारी बना रहता है। मुख्यमंत्री और राज्यपाल विपरीत दल से हों तो कदम-कदम पर विचारों में भिन्नता देखने को मिलती है। इसके लिए आवश्यक है कि निर्णय सदैव निजी स्वार्थों को नजरअंदाज कर राज्य हित मे लिए जाएं।आपसी तालमेल और सहयोग के माध्यम से ही राज्य का कुशलता से संचालन किया जा सकता है।
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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दायरे में रहें
संविधान में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के अधिकारों के साथ जिम्मेदारी का भी उल्लेख किया गया है। इन उल्लेखित अधिकारों के भीतर कार्य करने से मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों के बीच टकराव को टाला जा सकता है
-सन्नी ताम्रकार, दुर्ग, छत्तीसगढ़
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फैसले संवैधानिक आधार पर हों
राज्यपाल को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संवैधानिक आधार पर सभी फैसले करने चाहिए। मुख्यमंत्रियों को भी राज्यपाल को किसी दल का व्यक्ति न मानकर एक संवैधानिक पद मानते हुए संवैधानिक मर्यादा के साथ सलाह लेनी चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारों के बीच की कड़ी राज्यपाल को भी द्वेषता से कोई कार्य नहीं करना चाहिए।
-आनंद सिंह बीठू, सींथल, बीकानेर
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निष्पक्षता की जरूरत
राज्यपाल एक संवैधानिक पद होता है, जिसकी नियुक्ति केंद्र सरकार की सिफारिश से राष्ट्रपति करता है। राज्यपाल बिना किसी पार्टी का समर्थन किए अगर निष्पक्ष फैसले ले तो उसके प्रति मुख्यमंत्री का विश्वास भी बढ़ेगा और आपसी टकराव नहीं होगा। राज्यपाल को संविधान के मुताबिक और अपने पद की गरिमा का ध्यान रखते हुए कार्य करना चाहिए।
-मोहित जयपाल, बाला सती, बिलाड़ा
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नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव जरूरी
राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमंत्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति करते हैं। इस तरह राज्यपाल केन्द्र सरकार के प्रति उत्तरदायी हो जाता है। यही व्यवस्था एक राज्यपाल को मुख्यमंत्री के खिलाफ कर देती है। राज्यपाल केन्द्र के इशारे पर काम करते हंै। मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव टालने के लिए राष्ट्रपति की नियुक्ति प्रक्रिया मे बदलाव जरूरी है।
-गुमान दायमा, हरसौर,नागौर
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ताकि न हो टकराव
राज्यपाल एक संवैधानिक पद है, जिसकी नियुक्ति प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करता है। व्यवहार में राज्यपाल पद पर केंद्रीय सत्ता पक्ष की विचारधारा से प्रभावित व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है। ऐसे में जब केंद्र एवं राज्य में विपरीत विचारधारा वाली सरकार हो तो राज्यपाल और मुख्यमंत्री में टकराव की स्थिति बन जाती है। इस स्थिति को टालने के लिए राज्यपाल पद पर गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले कानूनी एवं संवैधानिक जानकार की नियुक्ति होनी चाहिए, जिससे वह बिना किसी राजनीतिक दबाव के कार्य कर सके।
-सुरेश प्रजापति भींडर, उदयपुर
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रहे गरिमा का ध्यान
राज्यपाल संवैधानिक पद है। केंद्र में राष्ट्रपति की जो भूमिका है, वही भूमिका राज्य में राज्यपाल की है। केंद्र और राज्य में अलग-अलग दल की सरकार होने पर, राज्यपाल व मुख्यमंत्री में कई बार टकराव की स्थिति पैदा होती है। राज्यपाल की कार्यप्रणाली विवादों में रहती है। राज्यपाल का पद संवैधानिक होते हुए नियुक्ति से पहले जिस दल के रहे हों, उस दल के प्रति उनका रुख नरम नजर आता है। पद की गरिमा के प्रतिकूल आचरण-व्यवहार भी सामने आता है। इससे मुख्यमंत्री व राज्यपाल में टकराव की स्थिति पैदा होती है। दलगत राजनीति बाधक न बने। संवैधानिक व्यवस्था के अनुकूल राज्यपाल अपना काम करें, तभी मुख्यमंत्री व राज्यपाल में टकराव की स्थिति पैदा होने से बच सकेगी।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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समन्वय जरूरी
टकराव का मुख्य कारण होता है राजनीति से प्रेरित होकर फैसले लेना। राज्यपाल केंद्र का प्रतिनिधित्व करता है। अत: वह केंद्र के प्रति जवाबदार होता है और केंद्र द्वारा जारी नीतियों को लागू करवाना उसका कर्तव्य होता है और मुख्यमंत्री केंद्र के साथ राज्य की जनता व अपनी पार्टी से भी बंधा होता है। बस यहीं पर समन्वय बैठाने की आवश्यकता होती है।
-सुशील मेहता, ब्यावर
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पार्टी के प्रतिनिधि की तरह काम न करें
हमारे देश की अजीब स्थति है। शपथ लेते हैं संविधान की और कुर्सी पर बैठते ही राज्यपाल पार्टी के प्रतिनिधि की तरह कार्य करने लगते हैं। ऐसे लोगो की वजह से मुख्यमंत्रियों और राज्यपालों में टकराव होना लाजमी है।
-घनश्याम, जोधपुर
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राज्यपाल पद की प्रासंगिकता पर सवाल
राज्यपाल पद की कोई प्रासंगिकता नहीं है। इसलिए इस पद को ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। केंद्र में सत्तारुढ़ दल अपनी विचारधारा को इनके माध्यम से राज्य पर थोपने की कोशिश करता है। इससे राज्य की चुनी हुई सरकार के काम में बाधा पहुंचती है। यह विडंबना ही है कि मनोनीत व्यक्ति चुनी हुई सरकार के ऊपर बिठा दिया जाता है।
– विष्णु बघेल, रायपुर
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जरूरी है टकराव
मुख्यमंत्री और राज्यपाल को चाहिए कि वे समन्वय स्थापित करके चलें तथा दोनों ही अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए स्वार्थ से ऊपर उठकर काम करें। वैचारिक मतभेदों के कारण द्वेषता न रखें। अपना ध्यान लोकहित में केंद्रित करें।
-श्रीपाल सेवदा,नागौर
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देश हित सर्वोपरि हो
जो सविंधान की मर्यादाओं के अनुरूप आचरण करे, उसी को राज्यपाल नियुक्त किया जाना चाहिए। दलीय पूर्वाग्रह से ग्रसित व्यक्ति को राज्यपाल नहीं बनाया जाए। जो पार्टी, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र और वर्ग से ऊपर उठकर देशहित में सोच सके, वही व्यक्ति राज्यपाल पद के लायक होता है। सभी को देशहित सर्वोपरि मानना चाहिए।
-एम. शफीक, पिड़ावा
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रहे मर्यादा का ध्यान
राज्यपाल को संविधान के हिसाब से निर्णय लेने चाहिए। मुश्किल यह है कि वे अपनी पुरानी राजनीेतिक सोच से उबर ही नहीं पाते। जैसे महाराष्ट्र के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को भेजे पत्र में विवादित भाषा का इस्तेमाल किया। राज्यपाल को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।
-अरविंद रेवाड़, नांगली,सीकर
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बनी रहे पदों की गरिमा
मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच टकराव निश्चित रूप से उस राज्य के लिए एक संवैधानिक संकट है। इसका समाधान उन दोनों को ही मिलकर कर लेना चाहिए, जिससे दोनों के पदों की गरिमा बनी रहे। अगर फिर भी सामंजस्य ना बने, तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को दखल देना चाहिए।
-रामबाबू सोलंकी, खरगोन, मध्यप्रदेश
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जनहित में लिए जाएं फैसले
मुख्यमंत्री व राज्यपाल दोनों के पद की अपनी.अपनी गरिमा हैं। अत: दोनों के बीच किसी भी प्रकार का टकराव देश हित में नहीं कहा जा सकता। हर समस्या का समाधान मिल बैठकर बातचीत से ही निकाला जा सकता है। अत: अनावश्यक ही किसी मुद्दे को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर आपसी संबंध व माहौल को खराब नहीं करना चाहिए। जब राज्य के दो प्रतिष्ठित सज्जन पुरुष ही हर बात को अपनी मूंछ का सवाल बना लेंगे, तो आम जनता कैसे कुशल शासन की आस कर सकती है। अत: दोनों वंदनीय नागरिक जनहित में कार्य करें। अपने अहं के कारण अपने संबंधों, पद की मर्यादा व जनहित को दांव पर न लगाएं ।
-सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
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