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जाति व धर्म आधारित राजनीति कैसे खत्म हो सकती है?

Published: Jun 13, 2021 07:28:24 pm

Submitted by:

Gyan Chand Patni

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

जाति व धर्म आधारित राजनीति कैसे खत्म हो सकती है?

जाति व धर्म आधारित राजनीति कैसे खत्म हो सकती है?

नैतिकता का रहे ध्यान
वैसे तो जाति और धर्म पर आधारित राजनीति को परिवर्तित करना असंभव ही लगता है, पर यदि देश को सामने रखा जाए, तो हालात सुधर सकते हैं। महात्मा गांधी कहा करते थे कि धर्म को कभी भी राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता है। धर्म से उनका मतलब हिन्दू या इस्लाम जैसे धर्म से न होकर नैतिक मूल्यों से था, जो सभी धर्मों से जुड़े हैं। उनका मानना था कि राजनीति नैतिक मूल्यों द्वारा स्थापित मूल्यों से निर्देशित होनी चाहिए। सिर्फ धर्म और जातिगत पहचान पर आधारित राजनीति लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं होती। इससे गरीबी उन्मूलन, विकास और भ्रष्टाचार नियंत्रण जैसे ज्यादा बड़े मुद्दों से लोगों का ध्यान भी भटकता है। जातिवाद और सांप्रदायिकता से तनाव, टकराव और हिंसा को भी बढ़ावा मिलता है। अत: अब नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत और देश की एकता को बनाए रखने की योग्यता से युक्त एक व्यवस्था बनाई जानी चाहिए ,जो जाति और धर्म से बहुत ऊपर हो।
– अमित योगी, सवाई माधोपुर
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राजनीतिक दल जिम्मेदार
राजनीतिक दलों को पाबंद करना चाहिए कि वे जाति और धर्म आधारित फैसले लेना बंद करें। अपितु सर्वजन हिताय एवं सर्वजन सुखाय राजनीति की शुरुआत करें। इससे सभी धर्म एवं जाति के लोगों में यह विश्वास उत्पन्न होगा कि उनके हितों को ध्यान रखा जाएगा। साथ ही जाति एवं धर्म से ऊपर उठकर जनता को राष्ट्र धर्म के बारे में भी जानकारी देना चाहिए
-वंदना मित्तल, कोटा
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चुनाव आयोग करे कार्रवाई
भारत के संविधान में यह प्रावधान है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी या दल धर्म या जाति विशेष का नहीं हो सकता। ऐसी स्थिति में यदि कोई राजनीतिक दल या पार्टी किसी विशेष धर्म या जाति को लुभाने की कोशिश करती है, तो चुनाव आयोग उस राजनीतिक दल की मान्यता समाप्त कर देनी चाहिए। इसके लिए चुनाव आयोग को चाहिए कि उस पार्टी के नेताओं के भाषण और बयानों पर लगातार नजर रखी जाए।
-संतोष जादमे, सुसनेर, आगर, मालवा, म.प्र.
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युवा वर्ग कर सकता है परिवर्तन
भारत में जाति और धर्म आधारित राजनीति को समाप्त करने के लिए पाठ्यक्रम में विभिन्न धर्मों के आदर्शों को स्पष्ट किया जाए। शिक्षा ही परिवर्तन लाने में सक्षम है, जिससे आने वाली पीढ़ी को बरगलाया नहीं जा सके। धर्म गुरुओं पर भी निगरानी रखी जाए। नयी पीढ़ी जब इसका बीड़ा उठा लेगी, तो वह अपने धर्म और जाति के साथ अन्य धर्म और जाति की रक्षा भी कर पाएगी। धर्म और जाति पर राजनीति करने वाले लोगों को सबक सिखाना जरूरी है। ये काम युवा पीढ़ी को ही करना होगा।
-डॉ. मंजु शर्मा, जयपुर
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धर्म के आधार पर न दिए जाएं टिकट
चुनाव में जाति और धर्म के आधार पर टिकटों का बंटवारा बंद हो किया जाना चाहिए। जाति और धर्म की कट्टरता को बढ़ावा देने वाली शिक्षा व्यवस्था इस देश मे बंद हो। किसी जाति और धर्म को विशेषाधिकार नहीं मिलना चाहिए।
-महेंद्र सिंह नाथावत, कोटा
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वैमनस्यता को बढ़ावा
जाति व धर्म आधारित राजनीति केवल हमारे मध्य वैमनस्यता को बढ़ाती है, बल्कि ये हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करती है। जाति व धर्म प्रत्येक मनुष्य के मस्तिष्क में बचपन से ही ऊंच-नीच, उत्कृष्टता- निकृष्टता के बीज बो देती है। अमुक जाति व धर्म का सदस्य होने के नाते किसी को लाभ होता है, तो किसी को हानि उठानी पड़ती है। धर्म और जाति पर आधारित भेदभाव समाप्त होना चाहिए।
-खुशवंत कुमार हिंडोनिया, चित्तौडग़ढ़
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चुनाव आयोग दिखाए अपनी ताकत
देश की राजनीति में जाति और धर्म का मिश्रण देश की एकता, अखंडता एवं लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए खतरा उत्पन्न करता है। भारत का संविधान देश को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप मे परिभाषित करता है। मगर हमारे राजनेता अपने वोट बैंक के लिए जाति-धर्म आधारित राजनीति कर रहे हंै। वर्तमान मे देश के राजनीतिक दल टिकट वितरण, उम्मीदवारों के चयन से लेकर मंत्रिमंडल के निर्माण तक में जातिगत एवं धार्मिक समीकरणों के मद्देनजर फैसला करते हंै। ऐसी राजनीति हमारे सामाजिक सौहार्द के लिए बेहद घातक है। चुनाव आयोग ऐसे राजनीतिक दलों एवं नेताओं पर सख्त कार्रवाई करे। साथ ही आम मतदाता को भी जाति- धर्म से ऊपर उठकर निर्वाचन प्रक्रिया मे भाग लेना चाहिए।
-तेजपाल गुर्जर, हाथीदेह, श्रीमाधोपुर
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उच्च शिक्षा से बदलेंगे हालात
उच्च शिक्षा से ही भारत में जाति और धर्म आधारित राजनीति खत्म हो सकती है क्योंकि शिक्षा से ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है, जब हमारी उच्च शिक्षा अंतिम छोर पर बैठे व्यक्ति तक पहुंच जाएगी तो निश्चित मानिए भारत में सभी लोग जागरूक हो जाएंगे। इसके साथ ही जाति और धर्म से जुड़ी समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाएंगी। नेता अनपढ़ या कम पढ़े लिखे लोगों को ज्यादा प्रभावित करते हैं और उनको बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। जब प्रत्येक व्यक्ति उच्च शिक्षित होगा तो राजनीति में धर्म और जाति का दुरुपयोग समाप्त हो जाएगा।
-मुकेश गोदारा, चक दो वाई, श्रीगंगानगर
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ईमानदार लोग आएं राजनीति में
भारत में कई पार्टियां और संगठन जाति और धर्म के आधार पर ही बने हुए हैं। पार्टियां अपने प्रत्याशी जाति और धर्म के आधार पर ही खड़े करती है। । जब तक पार्टियां ऐसे दांव-पेंच बंद नहीं करेगी तब तक मुश्किल है। ईमानदार और सच्चे समाज सेवक राजनीति में नहीं आएंगे तब तक सुधार नहीं होगा ।
-सुरेन्द्र सिंह गुर्जर, गोतेड़ी, नागौर
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मुश्किल है परिवर्तन
भारत में जाति और धर्म पर आधारित राजनीति खत्म होना अब संभव नहीं है। नब्बे के दशक से भारतीय राजनीति में परिवर्तन केवल धर्म और जाति के आधार पर ही देखने को मिला है। कई राजनीतिक दलों व नेताओं का वर्चस्व केवल धर्म और जाति के मुद्दों के आधार पर ही बना है। यदि वे राजनीतिक दल व नेता इन दोनों मुद्दों को छोड़ दें, तो अस्तित्वहीन हो जाएंगे। आज भारतीय राजनीति में चुनावों के लिए टिकटों का वितरण भी क्षेत्र में जाति व धर्म का पलड़ा देखकर होता है। यहां लोकतांत्रिक संस्थाओं में प्रतिनिधित्व के लिए सीटें जातियों के आरक्षण के आधार पर निर्धारित हो गई हैं, तो हालात कैसे बदलेंगे?
-सुदर्शन शर्मा, चौमूं, जयपुर
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खत्म होना चाहिए आरक्षण
भारत की राजनीति में जाति और धर्म की बहुत प्रबलता हैं । आज भी भारत में चुनावों के दौरान जातिवाद और धर्म को मुद्दा बनाने की राजनीति देखी जा सकती है। शिक्षा और नौकरी में जाति के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था है। जाति और धर्म में ऊंच-नीच के भेदभाव के कारण सामाजिक कटुता बढ़ती जा रही है। भारत में जातिवाद को खत्म करने के लिए नेताओं में दृढ़ इच्छाशक्ति और ईमानदारी होनी चाहिए। राजनीतिक दलों को जातिवादी संगठनों और धार्मिक गतिविधियों से दूर रहना चाहिए। साथ ही आरक्षण को हटाना चाहिए और सभी को उनकी योग्यता के आधार पर अवसर मिलने चाहिए।
-नीलिमा जैन , उदयपुर
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नेताओं की जिम्मेदारी
अगर हमारे देश में धर्म और जाति आधारित राजनीति को खत्म करना हे तो सर्वप्रथम हमारे देश के नेताओं को चुनावों में धर्म-जाति का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। चुनाव आयोग के प्रतिबंध के बावजूद नेता घटिया राजनीति करने से नहीं चूकते और आम सभाओं में धर्म व जाति को लेकर भाषण देते हैं। यह रुकना चाहिए।
-लता अग्रवाल चित्तौडग़ढ़
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मुश्किल है परिवर्तन
हमारे देश मे धर्म और जाति के आधार पर राजनीति चलती रहेगी। इसे कोई भी पार्टी और उसके नेता कभी भी खत्म नहीं होने देंगे। चुनाव में हर पार्टी जाति और धर्म के आधार पर ही उम्मीदवारों को टिकट देती है। जातिगत राजनीति की जड़ें बहुत मजबूत हो गई है। जहां तक धर्म की राजनीति का सवाल है तो वह तो आज अपने पूरे चरम पर है। इसलिए भारत में धर्म और जातिगत राजनीति खत्म होना मुश्किल है।
– महेश सक्सेना, भोपाल, म.प्र.
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बदलनी होगी राजनीति
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसलिए देश में जाति व धर्म आधारित राजनीति का स्थान नहीं होना चाहिए। इसके बावजूद यहां तो राजनीतिक दलों द्वारा टिकट वितरण से लेकर सत्तासीन होने तक जाति व धर्म का खेल चलता है, जो कि गलत है। इस स्थिति को चुनाव आयोग ही बदल सकता है।
-जे. पी. घिंटाला, लाडनूं, नागौर
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मीडिया की प्रमुख भूमिका
जो लोग राजनीति के लिए लोगों में भेदभाव पैदा करते हैं उनको अस्वीकार करें। मीडिया देश में सद्भावना पैदा करने के लिए प्रयास करें। मीडिया धर्म व जाति के नाम पर राजनीति करने वालों के हौसलों को बुलंद ना करे। जनता में जागरूकता पैदा करे। ऐसा होने पर धीरे-धीरे नफरत फैलाने वालों की राजनीति खत्म हो जाएगी ।
-मोहम्मद इब्राहिम खान, संजय नगर, रायपुर

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