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नीति नवाचार : बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन कितनी जरूरी

locationनई दिल्लीPublished: Oct 19, 2021 08:18:43 am

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Patrika Desk

अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण बच्चे अब तक कोरोना से सुरक्षित रहे हैं।जरूरी है बच्चों पर वैक्सीन के दीर्घकालीन असर का अध्ययन।

नीति नवाचार : बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन कितनी जरूरी

नीति नवाचार : बच्चों के लिए कोरोना वैक्सीन कितनी जरूरी

लेखक – कामेस्वरी चेब्रोलू, भास्करन रामन

(आइआइटी बॉम्बे के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में फैकल्टी)

लम्बे समय तक स्कूल बंद रखने वाले देशों की सूची में भारत का स्थान तीसरा है। अक्टूबर 2020 में यूनिसेफ ने कहा था ‘स्कूल सबसे आखिर में बंद में होने चाहिए और सबसे पहले खुलने चाहिए।’ हमने ठीक विपरीत किया। ज्यादातर देशों ने बच्चों की शिक्षा को प्राथमिकता दी, लेकिन हमने नहीं। सरकारों ने इसका एक बड़ा कारण यह बताया कि अभिभावक बच्चों को स्कूल भेजने को तैयार नहीं हैं। हालांकि बहुत से सर्वे में सामने आया है कि ज्यादातर माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार हैं। क्या बच्चों को वाकई कोविड-19 वैक्सीन लगाने की जरूरत है? इस मामले में जो बात वयस्कों पर लागू होती है, बच्चों पर नहीं होती। बच्चों में कोविड का खतरा वयस्कों से पूरी तरह अलग है। जो वैक्सीन वयस्कों के लिए कारगर है, जरूरी नहीं कि वह बच्चों के लिए भी कारगर हो।

बच्चों को कोविड से कितना खतरा है? अमरीका से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 5 से 14 साल के बच्चों में कोविड का खतरा अन्य बीमारियों, जैसे फ्लू, निमोनिया, डूबना, दिल की बीमारी, हत्या, आत्महत्या, सड़क दुर्घटना और कैंसर से भी कम है। इनमें से अंतिम तीन में जान जाने का खतरा कोविड के मुकाबले 10 गुना ज्यादा है। दूसरी ओर वृद्ध जनों के लिए कोविड का खतरा एक हजार गुना ज्यादा है। दूसरी लहर के दौरान भी देश के अखबारों में कोरोना से मरने वाले लोगों में वृद्धों की संख्या ज्यादा थी। बच्चों के बारे में ऐसी खबरें मुश्किल से ही देखने-सुनने मिलीं। इसकी वजह सिर्फ यह नहीं है कि हमने बच्चों को बाहरी सम्पर्क से दूर रखा।

सिरॉलॉजिकल सर्वे के अनुसार 70 प्रतिशत बच्चे बाहरी सम्पर्क में पहले ही आ चुके हैं। यानी ज्यादातर बच्चों को वायरस संक्रमण हुआ, लेकिन अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता के कारण वे सुरक्षित रहे। जब 70 प्रतिशत बच्चों को कोरोना हो ही चुका है और वे हमें पता चले बिना ही ठीक भी हो गए, तो क्या बाकी के 30 प्रतिशत को वैक्सीन देना जरूरी है? इसके लिए जरूरी है कि हम लाभ-हानि विश्लेषण करें। कोविड-19 वैक्सीन से खतरा कम है, लेकिन ऐसा भी नहीं कि शून्य ही हो। इसलिए वैक्सीन का बच्चों के संदर्भ में अध्ययन जरूरी है। उदाहरण के लिए, एस्ट्राजेनेका (कोविशील्ड) वैक्सीन से खून के थक्के जमने का खतरा 50,000 में एक को रहता है।

वयस्कों को कोविड का खतरा ज्यादा है। इसलिए वैक्सीन जीवन बचा सकता है। बच्चों के लिए वैक्सीन से खतरा वयस्कों के मुकाबले अधिक है। इसी वजह से कई यूरोपीय देशों ने अप्रेल 2021 में एस्ट्राजेनेका को केवल वयस्कों तक ही सीमित कर दिया। वैक्सीन के शुरुआती ट्रायल में इससे जोखिम का पता ही नहीं चला था। बच्चों के लिए ट्रायल तो बहुत ही कम हुआ। इतने सीमित ट्रायल में वैक्सीन के खतरे का अनुमान लगाना मुश्किल है।

हाल ही में बच्चों में वैक्सीन से जो खतरे पाए गए हैं, वे चिंताजनक हैं। इजरायल में हुए अध्ययन के मुताबिक लड़कों में एमआरएनए वैक्सीन लगाने के बाद पाया गया कि 6000 में से एक को खतरा है। इस पर विचार करते हुए ही कई यूरोपीय देशों ने 30 साल से कम उम्र के युवाओं के लिए मॉडर्ना का इस्तेमाल बंद कर दिया है। क्या लाखों बच्चों को कोवैक्सीन या जाईकोव-डी लगने के बाद ही हमें इनके दुष्प्रभाव का पता लगेगा? बच्चों में वैक्सीन के दीर्घकालीन असर का अध्ययन करना बेहद जरूरी है। किसी भी मौजूदा कोविड वैक्सीन के दीर्घगामी प्रभावों का कोई डेटा नहीं है। वयस्कों के लिए टीकों का आपातकालीन उपयोग समझ में आता है, लेकिन बच्चों के लिए नहीं। बच्चों के लिए कोई कोविड-19 आपातकाल की स्थिति नहीं है, क्योंकि वे स्वाभाविक रूप से सुरक्षित हैं।

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