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हैवानों से निपटो

अकेली महिला चाहे टैक्सी में सफर करे या सडक़ पर पैदल निकले, उसकी अस्मिता पर कब, कौन हाथ डाल देगा, कोई नहीं जानता।

Dec 11, 2017 / 09:35 am

सुनील शर्मा

girl molestation

हमारे देश में कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा के दावे केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों के स्तर तक प्रतिदिन किए जाते हैं। लेकिन महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं, यह आए दिन होने वाली अमानुषिक घटनाओं से साफ जाहिर है। हवाई जहाज हो या ट्रेन, स्कूल-कॉलेज हो या घर सभी असुरक्षित जान पड़ते हैं। अकेली महिला चाहे टैक्सी में सफर करे या सडक़ पर पैदल निकले, उसकी अस्मिता पर कब, कौन हाथ डाल देगा, कोई नहीं जानता।
ताजा दो घटनाएं रौंगटे खड़े कर देने वाली हैं। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित एक फिल्म अभिनेत्री (नाबालिग) के साथ दिल्ली से मुंबई की उड़ान में सहयात्री ने छेड़छाड़ की। घबराई अभिनेत्री ने मुंबई पहुंचकर सोशल मीडिया पर घटनाक्रम का वीडियो डाला, तब हलचल हुई। अब नागरिक उड्डयन मंत्री ने कहा कि विमान में अभद्र हरकत करने वाले को नो-फ्लाइट लिस्ट में डाला जा सकता है। क्या इतनी सजा काफी होगी? इससे क्या दुष्कर्मियों का दुस्साहस कम हो जाएगा? हालांकि मुंबई पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है।
दूसरी वारदात में लखनऊ के सरोजनी नगर में ब्लड कैंसर से पीडि़त एक युवती के साथ परिचितों ने सामूहिक दुष्कर्म किया। बाद में बचाव के लिए चिल्ला रही पीडि़ता को एक राहगीर ने मदद के नाम पर अपनी हवस का शिकार बना लिया। ये दो घटनाएं तो महज उदाहरण हैं। पूरे देश में रोजाना न जाने कितनी मासूम बच्चियां नर पिशाचों का शिकार होती हैं। ज्यादातर मामले पुलिस या कानून के संज्ञान में ही नहीं आते और कुछ आते भी हैं तो उन्हें तमाम कानूनी और सामाजिक पेचीदगियों का हवाला देकर रफा-दफा करने के प्रयास किए जाते हैं।
निर्भया कांड के बाद सडक़ से संसद तक हुए बवाल के बाद दुष्कर्मियों को फांसी की सजा का कानून बना। लेकिन आज तक कितनों को फांसी हुई? कानून की क्रियान्विति में इतने झोल छोड़ दिए जाते हैं कि कई साल सुनवाई और अपीलों में ही निकल जाते हैं। दुष्कर्म के मामलों में फास्ट टे्रक अदालतों में समयबद्ध फैसले हों और कड़ी से कड़ी सजा मिले तो हैवानियत में कमी की उम्मीद की जा सकती है। हमारे यहां गंगा को स्वच्छ करने की बात तो होती है लेकिन मैली मानसिकता को कैसे साफ किया जाए, यह कोई नहीं सोचता!

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