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आपका हक : नहीं रुक पा रही घरेलू हिंसा

Published: Jun 23, 2021 08:09:49 am

पुरुष और महिला दोनों जानते हैं कि घरेलू हिंसा नैतिक और कानूनी रूप से गलत है। सवाल यह है कि फिर भी इस तरह के मामले क्यों होते हैं? ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि हमारे सामाजिक परिवेश में घरेलू हिंसा को सहजता से लिया जाता है।

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Hindu Succession Act

– आभा सिंह, अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट

भारत में घरेलू हिंसा की जड़ें बहुत गहरी हैं। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) 2019 की रिपोर्ट है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों के सभी 4.05 लाख मामलों में से अधिकांश (30.9 फीसदी) भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 498 (ए) के तहत दर्ज होते हैं। यह खंड ‘पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ से संबंधित है। पुरुष और महिला दोनों जानते हैं कि घरेलू हिंसा नैतिक और कानूनी रूप से गलत है। सवाल यह है कि फिर भी इस तरह के मामले क्यों होते हैं? ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि हमारे सामाजिक परिवेश में घरेलू हिंसा को सहजता से लिया जाता है। भारत में घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीडऩ की समस्या व्यापक है। कई बार देखा गया है कि पीडि़ता को पता नहीं होता कि क्या किया जाना चाहिए?
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इस तथ्य के बावजूद कि भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध नहीं माना जाता है, धारा 498 (ए) के तहत पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध को क्रूरता के रूप में देखा जा सकता है। धारा 498 (ए) का दायरा बहुत बड़ा है। इसमें ऐसा कोई भी व्यवहार शामिल है, जो महिला को आत्महत्या करने जैसा कदम उठाने के लिए मजबूर करता हो या उसका स्वास्थ्य प्रभावित होता हो। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 भी एक आपराधिक कानून है, जिसमें दहेज देने और लेने के लिए सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के तहत ही दहेज प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। इस कानून के अनुसार, जो दहेज देता है, लेता है या मांगता है, उसे 6 महीने की सजा हो सकती है या उस पर पांच हजार रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
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सबको पता है कि लॉकडाउन में घरेलू हिंसा भी बढ़ी है। यह आज हमारे आसपास की महिलाओं द्वारा झेला गया सबसे भयावह प्रकार का उत्पीडऩ है और हम इस हिंसा के खिलाफ गंभीरता से अपनी आवाज नहीं उठा पा रहे हैं। सारे कानून कागजों में ही रह गए हैं और हकीकत इससे अलग है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि घरेलू उत्पीडऩ का शिकार महिलाएं सबसे ज्यादा होती हैं, लेकिन पुरुष भी इस समस्या से पीडि़त हैं। हम अपनी आवाज को गंभीरता से नहीं उठा रहे हैं, क्योंकि हमें लगता है कि हम सुरक्षित हैं, लेकिन हम गलत हैं। घरेलू हिंसा किसी के साथ भी हो सकती है। यदि घरेलू हिंसा की समस्या से दृढ़ता से निपटा नहीं गया, तो समाज के सभी वर्गों में यह समस्या बनी रहेगी। इसलिए, भारत के नागरिकों खासतौर पर युवा पीढ़ी को, इसके खिलाफ दृढ़ता से खड़ा होना होगा। घरेलू हिंसा पीडि़तों की रक्षा के लिए सख्त कानून बनाना होगा।
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