शहरी विकास में मानवीय पक्ष को शामिल करना होगा
जयपुरPublished: Sep 27, 2022 10:02:37 pm
यह सवाल बड़ा और दिलचस्प है कि हमारी ऐतिहासिक वास्तुकला से प्रेरित हमारे शहर स्पष्ट रूप से भारतीय क्यों नहीं दिखते? उत्तर भारत के हर शहर में सार्वजनिक स्थान के रूप में एक बावली (बावड़ी) क्यों नहीं हो सकती है? दरअसल, हम संगठित निजी संपत्ति द्वारा संचालित शहरी परिदृश्य बना रहे हैं और इस कारण अपने शहरों को और अधिक मानवीय बनाना भूल गए हैं।


शहरी संसाधनों तक व्यक्तिगत पहुंच का सुनिश्चित होना जरूरी है। देश में शहरी विकास को लेकर संस्थागत ढांचे को सुदृढ़ व विकसित करने की दरकार है। इसके लिए संस्थानिक क्षमता भी बढ़ानी होगी। भारत को आदर्श रूप से 2031 तक 3 लाख टाउन और कंट्री प्लानर्स की जरूरत होगी, जबकि अभी 5,000 टाउन प्लानर ही हैं। अभी ऐसे 26 संस्थान ही हैं, जो टाउन प्लानिंग से जुड़े पाठ्यक्रम चलाते हैं, जिनसे देश को हर साल करीब 700 टाउन प्लानर मिलते हैं।
यह सवाल बड़ा और दिलचस्प है कि हमारी ऐतिहासिक वास्तुकला से प्रेरित हमारे शहर स्पष्ट रूप से भारतीय क्यों नहीं दिखते? उत्तर भारत के हर शहर में सार्वजनिक स्थान के रूप में एक बावली (बावड़ी) क्यों नहीं हो सकती है? दरअसल, हम संगठित निजी संपत्ति द्वारा संचालित शहरी परिदृश्य बना रहे हैं और इस कारण अपने शहरों को और अधिक मानवीय बनाना भूल गए हैं। आज जरूरत है कि हम अपने शहरी परिदृश्य का पुनर्निर्माण करते हुए एक नए प्रकार के भारतीय नागरिक संस्कार को गढ़ें, जो जातिगत पूर्वग्रहों और छोटी-छोटी प्रतिद्वंद्विता को अप्रभावी करते हुए शहरी ताने-बाने को बेहतर व संवेदनशील शक्ल दे। जाहिर है इसके लिए हमारे शहरी नीति निर्माताओं को शहरी विकास के ऐतिहासिक संदर्भ से अवगत होने की जरूरत है।