यह सवाल बड़ा और दिलचस्प है कि हमारी ऐतिहासिक वास्तुकला से प्रेरित हमारे शहर स्पष्ट रूप से भारतीय क्यों नहीं दिखते? उत्तर भारत के हर शहर में सार्वजनिक स्थान के रूप में एक बावली (बावड़ी) क्यों नहीं हो सकती है? दरअसल, हम संगठित निजी संपत्ति द्वारा संचालित शहरी परिदृश्य बना रहे हैं और इस कारण अपने शहरों को और अधिक मानवीय बनाना भूल गए हैं।
जयपुर•Sep 27, 2022 / 10:02 pm•
Patrika Desk