नौकरशाही में सुधार के लिए हाइब्रिड दृष्टिकोण उपयोगी
देश में इस बात पर बहस लगातार चल़ रही है कि क्या अपनी अनावश्यक जटिलताओं और अति केंद्रीकरण के कारण भारत का स्टील फ्रेम अपनी चमक खो रहा है? देश मे सिविल सेवा भर्ती और नियुक्ति की प्रक्रिया में तत्काल, प्रभावी और स्थायी परिवर्तन की आवश्यकता पर सहमति रही है।
Published: April 21, 2022 08:40:22 pm
चिन्मय दांडेकर
पब्लिक पॉलिसी एवं
राजनीतिक विश्लेषक सिविल सेवा के अधिकारी, सरकार के उच्चतम स्तरों पर नीतियों के निर्माण, विभिन्न नीतियों के क्रियान्वयन और उच्चतम स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करने से संबंधित अपार जिम्मेदारी का निर्वहन करते हैं। देश के लगभग हर सचिवालय, विभाग और मंत्रालय के कर्मचारी अखिल भारतीय सेवा और भारतीय राजस्व सेवा जैसी अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारी ही हैं। सिविल सेवा ने देश की एकता को बनाए रखने, स्थिरता प्रदान करने और विभिन्न जातीय, सांप्रदायिक, क्षेत्रीय, आदि संघर्षों से ग्रस्त विशाल देश में व्यवस्था बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। लगभग 27 लाख युवा हर साल सिविल सेवा के लिए आवेदन करते हैं, जिससे इस सेवा के प्रति युवाओं का आकर्षण स्पष्ट हो जाता है।
हालांकि, देश में इस बात पर बहस लगातार चल़ रही है कि क्या अपनी अनावश्यक जटिलताओं और अति केंद्रीकरण के कारण भारत का स्टील फ्रेम अपनी चमक खो रहा है? देश मे सिविल सेवा भर्ती और नियुक्ति की प्रक्रिया में तत्काल, प्रभावी और स्थायी परिवर्तन की आवश्यकता पर सहमति रही है। 1 जनवरी 2021 को लोकसभा में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार देश में 5231 आइएएस अधिकारी हैं, जो 6746 की स्वीकृत संख्या से 22.45 प्रतिशत कम है। यूपीएससी 1990 के दशक में लगभग 60 से 70 आइएएस अधिकारियों का चयन करता था। इस कारण आज 18 से 25 वर्ष की वरिष्ठता वाले मध्य स्तर के आइएएस अधिकारियों की भारी कमी हो गई है। भले ही आइएएस अधिकारियों की संख्या अब 180 प्रति वर्ष तक बढ़ा दी गई है, लेकिन भारत की आबादी और जटिल चुनौतियों को देखते हुए यह अब भी काफी कम है। प्रशासनिक सुधार आयोग ने वरिष्ठ स्तर पर सिविल सेवाओं में शामिल होने के लिए वरिष्ठ कार्यकारी सेवा (एसइएस) बनाने की सिफारिश की है, जिसमें सिविल सेवाओं के बाहर से भी प्रवेश शामिल होगा। मनमोहन सिंह, जयराम रमेश, अरविंद सुब्रमण्यम और विजय केलकर जैसे लोगों ने लेटरल एंट्री के जरिए प्रवेश करके वरिष्ठ पदों पर काम किया है और काफी योगदान दिया है। जब सिविल सेवा की बात आती है, तो सामान्यवादी बनाम विशेषज्ञ बहस फिर शुरू हो जाती है। विभिन्न राज्य सरकारों में और केंद्र सरकार के स्तर पर कुछ पदों के लिए लेटरल एंट्री के लिए द्वार खोल दिए गए हैं। राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के मंत्रालयों द्वारा शुरू की गई विभिन्न फेलोशिप सरकार में निचले स्तरों पर क्षमता बढ़ाने का एक प्रयास है। समय की कमी, सूचना विषमता और नौकरी की जटिलताओं को देखते हुए- यह महत्त्वपूर्ण है कि लेटरल एंट्री के जरिए आए लोगों को सहयोगी के रूप में देखा जाए, न कि मौजूदा संरचना के लिए प्रतिस्पर्धी।
देश के प्रशासनिक ढांचे को आधुनिक बनाने के लिए, न केवल हमें नौकरशाही व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है, बल्कि हमें मौजूदा नौकरशाही के पूरक के लिए हाइब्रिड दृष्टिकोण को लागू करने और सार्वजनिक नीति पेशेवरों का एक नया वर्ग बनाने की आवश्यकता है। यूपीएससी की 2013-14 की 64वीं वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष 27 लाख में से लगभग 6000 छात्र यूपीएससी परीक्षा पास करते हैं। सिविल सेवा परीक्षा बहुत प्रतिस्पर्धी होने के कारण, उन उम्मीदवारों की ऊर्जा, ज्ञान और प्रेरणा को सही राह दिखाना बहुत महत्त्वपूर्ण है, जो उसको पास नहीं करते। उनके पास अच्छा ज्ञान, कौशल और देश के लिए काम करने की तीव्र इच्छा है। बस, वे परीक्षा के स्वरूप के कारण विफल रहते हैं। इन युवाओं की ऊर्जा का उपयोग देश हित में करने की जरूरत है। अक्सर नौकरशाह सुधारक प्रणाली को विघटनकारी दृष्टिकोण से देखने के कारण विरोध आमंत्रित करते हैं। एक हाइब्रिड दृष्टिकोण आंतरिक कोर को बरकरार रखेगा, जो कि यूपीएससी के माध्यम से भर्ती की जाने वाली नौकरशाही होगी। इससे मौजूदा सेटअप बाधित नहीं होगा। साथ ही इन नीति पेशेवरों का एक बाहरी सर्कल एक बहुत ही आवश्यक सहायक हाइब्रिड संस्कृति का निर्माण करेगा। 21वीं सदी में भारत के सामने आने वाली चुनौतियों की जटिलता को देखते हुए यह दृष्टिकोण फायदेमंद साबित होगा।

नौकरशाही में सुधार के लिए हाइब्रिड दृष्टिकोण उपयोगी
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