scriptदोस्ती उनकी, शंकाएं हमारी | Their friendship, doubts our | Patrika News

दोस्ती उनकी, शंकाएं हमारी

Published: Apr 28, 2015 12:13:00 am

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में पाकिस्तान की यात्रा की। दोनों देशों के बीच अनेक समझौते हुए जिसमें चीन ने पाकिस्तान में 46 अरब डॉलर के निवेश

pak

pak

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने हाल ही में पाकिस्तान की यात्रा की। दोनों देशों के बीच अनेक समझौते हुए जिसमें चीन ने पाकिस्तान में 46 अरब डॉलर के निवेश का समझौता भी किया है। इसके तहत चीन अपने शिनजियांग प्रांत के काश्गर से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक व्यापारिक उद्देश्य से आर्थिक गलियारा बनाएगा। यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होता हुआ गुजरेगा। जिनपिंग की इस पाकिस्तानी यात्रा के क्या है मायने और क्षेत्रीय व्यापार व सुरक्षा संतुलन के लिहाज से चीन की क्या है रणनीति और भारत के लिए क्या हैं संकेत? स्पॉटलाइट में इन्हीं विषयों पर पढिए जानकारों की राय…

क्या है आर्थिक गलियारा
चीन ने पाक में 46 अरब डॉलर के निवेश के समझौते किए हैं। अधिकतर हिस्सा चीन के काश्गर से पाक के ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने में खर्च होगा। सड़क, रेल, समंदर को जोड़कर तैयार इस इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिये चीन मध्य पूर्व के देशों व अफ्रीका तक व्यापार के लिए सबसे छोटा मार्ग तैयार करना चाहता है।

सिल्क रूट पर चीन की नई चाल
चीन से रेशम के व्यापार का बड़ी मात्रा में व्यापार हुआ करता था। इस व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए चीन ने जो मार्ग तैयार किए उसे अंग्रेजी में सिल्क रूट कहा गया। कालांतर में चीन ने इस मार्ग के जरिए अन्य व्यापार भी शुरू कर दिए। समुद्री मार्गो के विकास के बाद इन मार्गो का इस्तेमाल कम होने लगा। पर ये मार्ग अत्यधिक खर्चीले होते हैं इसलिए चीन ने एक बार फिर सिल्क रूट की परियोजना शुरू की है और इसके जरिए वह दुनिया के अन्य देशों तक व्यापार करने की चाहत रखता है। इसी परियोजना का ही हिस्सा है पाकिस्तान और चीन में बनने वाले आर्थिक गलियारा।

भारत को चिंता क्यों
यातायात और ऊर्जा की इस मिलीजुली परियोजना के तहत चीन पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह विकसित करेगा, जो पाकिस्तान के साथ चीन के लिए भी हिंद महासागर तक चीन के लिए रास्ता खोल देगा। इसके अलावा यह परियोजना पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजर रही है। इससे भारत की चिंता बढ़ना लाजमी है।

इस निवेश की खासियत
चीन का यह निवेश 2008 के बाद से पाकिस्तान में होने वाले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दोगुने से भी ज्यादा है।
यह 2002 से अब तक पाकिस्तान में हुए अमरीकी निवेश से भी अधिक है।
इस परियोजना को पूरा होने में करीब तीन साल लग जाएंगे।
2395 किमी लंबा यह कॉरिडॉर रेलवे नेटवर्क, ऊर्जा योजनाओं और पेट्रोलियम पाइपलाइनों का मिश्रित नेटवर्क होगा।
इन आर्थिक समझौतों से पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में प्राण फुकेंगे।


श्याम सरन, पूर्व विदेश सचिव
चीन पाकिस्तान को 46 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता देगा जिसके माध्यम से चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) विकसित किया जाएगा। इस परियोजना में रेल, सड़क, तेल व गैस पाइपलाइनों के जरिए चीन के पश्चिमी क्षेत्र को पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक जोड़ा जाएगा। चीन के लिहाज से देखें तो वह पाकिस्तान में इस कॉरिडोर के माध्यम से चीन के शिनजियांग सहित पूरे पश्चिमी इलाके को मध्य एशिया और यूरोप के साथ व्यापार के लिए भूमि मार्ग से जोड़ते हुए देखता है। पाकिस्तान को इसके जरिए अत्याधुनिक यातायात के संसाधनों का लाभ तो मिलेगा ही साथ ही यह व्यापार के लिए प्रमुख संपर्क मार्ग का माध्यम भी रहेगा।

इसके अलावा पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर बिगड़ी राजनीतिक परिस्थतियों और बलूचिस्तान मेंं बढ़ रही हिंसक गतिविधियों को नियंत्रित करने में इससे सहायता मिलेगी। ऎसा भी समझा जा रहा है कि चीन के मुस्लिम बहुल शिनजियांग इलाके में बढ़ रही आतंकी गतिविधियां भी थामने में मदद मिलेगी। ऎसा समझा जाता है कि उत्तरी और पश्चिमी पाकिस्तान से शिनजियांग में घुसपैठ होती रही है और इसस ही वहां आतंकी गतिविधियों बढ़ावा मिलता है। इस तरह से समूची परियोजना की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि जिस क्षेत्र से यह कॉरिडोर गुजरेगा वहां असुरक्षा की स्थिति से कैसे निजात पाई गई है।

भारत की परेशानी

इस परियोजना को लेकर भारत का विरोध का कारण जायज है। कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होता हुआ निकलेगा जिस पर भारत अपना दावा करता रहा है। यह परियोजना भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है और भारत को इसीलिए इसे लेकर चिंता है और इसीलिए इसका विरोध भी किया जाना चाहिए। यदि भारत इस प्रस्तावित परियोजना पर अपना कड़ा एतराज जताता है तो न केवल इसकी वैधानिकता पर सवाल खड़े होंगे बल्कि इस परियोजना पर कुछ हद तक रोक भी लग सकेगी।

इसके अलावा यह जरूर है कि भारत इस परियोजना मे सहयोगी बन जाए तो इस परियोजना की व्यवहारिकता को बल मिलेगा लेकिन इसके लिए पाकिस्तान शायद ही तैयार हो। वह कभी भी भारत को मध्य एशिया या ईरान और खाड़ी देशों से साथ जुड़ने के लिए रास्ता नहीं देगा। भले ही पाकिस्तान और चीन को सुरक्षा के लिहाज कुछ लाभ रहेगा लेकिन भारत के इस तरह परियोजना से जुड़ने की स्थिति में परियोजना की आर्थिक महत्ता काफी बढ़ जाएगी। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब चीन की यात्रा पर जाएंगे तो उन्हें बेझिझक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होते हुए इस कॉरिडोर को बनाने पर अपनी चिंता जतानी चाहिए। उन्हें यह बताना चाहिए कि इस क्षेत्र में भारत और चीन के बीच आर्थिक भागेदारी अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण है। उन्हें यह भी बताना चाहिए कि पाकिस्तान में चीन के इस तरह के कदमों से मेरिटाइम सिल्क रोड (एमएसआर) के प्रति भारत की प्रतिक्रिया पर भी असर होगा। यदि भारत एमएसआर से अलग होता है और इसका विरोध करता है तो भी इस परियोजना के प्रयास पर असर तो पड़ेगा ही।

ग्वादर से चीन की निगाह
चीन भारत के आसपास समुद्र में अपनी गतिविधियों से भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत अब तक हिंद महासागर से दक्षिण चीन सागर को जोड़ने वाले बहुत बड़े समुद्री मार्ग पर अपना प्रभुत्व रखता है। इसकी नौसेना दक्षिण और पश्चिम दोनों ओर मौजूद है। लेकिन, ग्वादर में चीन की आर्मी की उपस्थिति खास भारत के लिए चिंता का विषय है क्योंकि यह स्थान सुरक्षा के लिहाज से बहुत संवेदनशील कहा जा सकता है। यह जरूर है कि भारत और चीन दोनों ही व्यापार के लिहाज से विस्तारित समुद्री सीमा पर बहुत निर्भर हैं, खास तौर पर तेल आयात के संदर्भ में। इसके दोनों ही नौसेना सहित संयुक्त सेना तैयार कर सकते हैं। इसके अलावा दोनों ही बातचीत के आधार पर आपसी सुरक्षा की बात कर सकते हैं और विश्वास बढ़ाने के लिए आचार संहिता बना सकते हैं।

चीन को यदि कोई बराबरी का जवाब दे सकता है या उससे आगे जा सकता है तो वह केवल भारत ही है। पिछले कुछ दशकों में भारत ने भारत-चीन सीमा पर आधारभूत सुविधाओं को बेहतर किया है। हमने न केवल हवाई हमलों की क्षमता को बेहतर किया है बल्कि परमाणु क्षमता में जबर्दस्त सुधार किया है। हम अमरीका, जापान, दक्षिण पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया के साथ मजबूत राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संबंध बना पाने में सफल हुए हैं।

हालांकि सफलता का मूलमंत्र तीव्र और निरंतर आर्थिक विकास में ही है। इसके साथ ही पिछले दो दशकों में भारत इस बात को भलीभांति जान चुका है कि भारत क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर अपनी सक्रिय भूमिका तब तक नहीं निभा सकता जब तक कि वह अपने पड़ोसियों से बेहतर संबंध नहीं बना पाता। इसीलिए बाद की सरकारों ने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को बेहतर बनाने को प्राथमिकता दी है। भारत से उम्मीद की जाने लगी है कि वह पड़ोसी देशों के लिए किस तरह से विकास और निर्यात के लिए अपने बाजार खोलता है।

पाक को चीन की तो सुननी पड़ेगी
सलमान हैदर पूर्व विदेश सचिव
चीन की महत्वाकांक्षा और विश्वास लगातार बढ़ता जा रहा है। वह मुश्किल से मुश्किल ढांचागत कार्यो को अंजाम दे रहा है। बुनियादी ढांचा निर्माण में वह विशेषज्ञ हो गया है। अब वह ग्वादर में पाइपलाइन डालने जा रहा है। इससे जो गैस या तेल घूमकर चीन पहुंच रहा है, इससे चीन सीधे पहुंचेगी। सेंट्रल एशिया से भी उन्होंने पाइप लाइन डाली है। इस वक्त चीन अपने भविष्य की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने पर जोर दे रहा है।

इसी दिशा में जिनपिंग ने पाकिस्तान से समझौते किए हैं। चीन पाकिस्तान के साथ सामरिक हितों के तहत काम करता रहा है। पाकिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक हालत इस वक्त काफी खस्ता है। उसके पड़ोसी देश आगे बढ़ रहे हैं और वह गर्त में जा रहा है। ऎसे में चीन द्वारा वहां बुनियादी ढांचों के लिए निवेश करना, पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए “लाइफलाइन” का काम करेगा।

इस निवेश के साथ चीन पाकिस्तान से पनपने वाले आतंकवाद को रोकने में भी अहम भूमिका निभा सकता है। चूंकि चीन कोे भी अपने कई शहरों में इससे रूबरू होना पड़ा है। आतंकवाद की कोई सरहद नहीं होती है। चीन में भी आतंकवाद पाकिस्तान से गया है। यकीनन चीन की कोशिश रहेगी कि वह आतंकवाद पर लगाम लगवा पाए। भारत द्वारा तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान आतंकवाद की फैक्ट्रियां बंद नहीं करा पाया। वह हमारी नहीं सुनता है। चीन को वह नजरअंदाज नहीं कर पाएगा। यानी चीन की दक्षिण एशियाई क्षेत्र में आतंकवाद को रोकने में आने वाले वक्त में रचनात्मक भूमिका हो सकती है। यह हमारे लिए हितकर होगा। इसलिए मोदी जब चीनी यात्रा पर जाएं तो हमारा लहजा शिकायती रहने की बजाय इस बड़ी समस्या से काबू पाने पर रहना चाहिए।


भारत विरोध में नहीं थी यह यात्रा
पुष्पेश पंत चीन मामलों के जानकार
शी जिनपिंग की पाकिस्तान यात्रा बुनियादी रूप से भारत विरोधी नहीं थी। जिनपिंग अपने सामरिक और आर्थिक हितों के मद्देनजर वहां गए। उन्होंने पाकिस्तान 45 अरब डॉलर की आर्थिक सहायद की घोषणा की। हालांकि यह सारी राशि एक मुश्त नहीं दी जाएगी। यह सहायता पाकिस्तान को 4-5 साल में मिलेगी। यह राशि वहां आधारभूत ढांचागत निर्माण पर खर्च होगी। पर ठेके पाकिस्तान को नहीं बल्कि खुद चीन ही निर्माण कार्य करेगा। खुद पाकिस्तान के सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि इसका फायदा चीनी उद्योगपतियों को होने वाला है, पाकिस्तान को नहीं।

चीन पाकिस्तान में अपने आर्थिक हितों की रक्षा करेगा। जिनपिंग की इस यात्रा से चीन के सामरिक हितों में कोई नया अध्याय नहीं जुड़ गया है। न ही भारत कोई नुकसान हुआ है। जहां तक भारत की घेराबंदी का सवाल है तो वह तो कराची के बंदरगाह से लेकर ग्वादर तक चीन पहले से ही बैठा हुआ है। भारत-पाकिस्तान के बीच खींचतान का रिश्ता पुराना है। 1965 में जब जुल्फिकार अली भूट्टो विदेश मंत्री थे, तब से चीन के पाकिस्तान से सामरिक सम्बंध घनिष्ठ हो गए थे। पाकिस्तान के तथाकथित आजाद कश्मीर में चीन कुछ नया नहीं कर रहा है। चीन और पाकिस्तान के बीच सामरिक समझौते होते रहे हैं। पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और अमरीकी प्रभाव के कारण चीन का काम काफी वक्त से अधूरा पड़ा था, जो अब निर्णायक दिशा में जा रहा है।

अब सवाल है कि यह भारत के हित के खिलाफ है या नहीं? इतने बड़े पैैमाने पर न सही लेकिन चीन 10 अरब डॉलर भी पाकिस्तान में फंसाता है तो उसकी प्राथमिकता अपनी पूंजी और अपने नागरिकों की सुरक्षा रहेगी। चीन जिन इलाकों पर ध्यान दे रहा है, वह ब्ालूचिस्तान और अफगानिस्तान के ऎसे इलाके हैं, जहां हिंसा फैली हुई है। इन इलाकों में पाकिस्तान कब्जा चाहता रहा है। इन्हीं इलाकों से भारत में भी आतंकवाद आता है।

इसलिए चीन भी अपने सामरिक हितों के लिए इन इलाकों में स्थायित्व के लिए तमाम कोशिश करेगा। इसका फायदा देर-सबेर भारत को भी होगा। पाकिस्तान पिछले 25 साल से ब्ालूचिस्तान, वजीरिस्तान और नॉर्थवेस्ट फ्रंटियर में कब्जा नहीं जमा पाया। इन इलाकों में चीनियों की उपस्थिति बढ़ेगी। चीनी पंडुब्बियां ग्वादर में हैं तो जाहिर है कि चीन वहां सुरक्षित माहौल चाहेगा। वहां चीनियों के आने से हमें कोई नुकसान ही नहीं होगा। हम भले ही पाकिस्तान के कारण दुखी होते रहे कि चीनी समझौता भारत विरोध के कारण हुआ है। पर इसका प्रतीकात्मक महत्व ही ज्यादा है।

आतंकवाद पर साथ आएं
अच्छी बात यह है कि मोदी सरकार ने चीन-पाक समझौते को अनावश्यक तूल नहीं दिया। इससे सिर्फ अमरीका और अंतरराष्ट्रीय अखबार ही तूल देंगे। अगले महीने जब मोदी चीन यात्रा पर जाएं तो भी इसे तूल नहीं देना चाहिए। हमारा चीन के साथ बड़ा कारोबार है। खुद चीन के लिए भारत के साथ आर्थिक समझौते अहम हैं। मोदी को पाकिस्तान से आने वाले आतंकवाद और बढ़ते कट्टरपंथी इस्लाम पर अंकुश लगाने के लिए राह बनानी चाहिए। यह हमारे दोनों मुल्कों के लिए लाभदायक होगा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो