श्रम आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिले, तो बने बात
Published: Jun 02, 2023 09:33:28 pm
अर्थव्यवस्था के ऐसे विकास का क्या फायदा, जिसमें लोगों का विकास नहीं हो रहा। देश की करीब आधी आबादी की आयु 25 वर्ष से कम है। जनसांख्यिकीय लाभांश मानी जाने वाली भारत की युवा जनसंख्या को वरदान माना जाता है, परन्तु बिना रोजगार के यह वरदान अभिशाप बन सकता है।


श्रम आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिले, तो बने बात
अरुण सिन्हा
वरिष्ठ पत्रकार और 'अगेंस्ट द फ्यू: स्ट्रगल्स ऑफ इंडियाज रूरल पुअर ' व कई अन्य पुस्तकों के लेखक क्या आपको 1958 की फिल्म 'मालिकÓ का गीत याद है, जिसके बोल थे 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब/जो खेलोगे कूदोगे होंगे खराब। ' यह अतिरंजित लगे, लेकिन नव स्वतंत्र भारत के बच्चों के लिए यह एक संदेश था कि शिक्षा ही अच्छे जीवन को सुनिश्चित करने वाला मार्ग है। आज के भारत में लाखों युवा मानते हैं कि यह सच नहीं है। अच्छा जीवन जीने के लिए अच्छे वेतन वाली नौकरी चाहिए, जो उन्हें कहीं मिलती नहीं है। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्पलॉयमेंट के अनुसार, देश में स्नातकों और उससे ज्यादा शिक्षितों के बीच बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से तीन गुना ज्यादा है। इसीलिए, शिक्षित बेरोजगार निराश हैं। इन बेरोजगारों और इनके परिवारों ने शिक्षा के लिए काफी पैसा और समय निवेश किया है। ये युवा आय का साधन चाहते हैं। इसलिए वे उन नौकरियों के लिए भी आवेदन कर देते हैं, जो कम शिक्षितों के लिए होती हैं।
वर्ष 2018 में उत्तर प्रदेश पुलिस ने टेलीफोन मैसेंजर की 62 रिक्तियों पर भर्ती के लिए विज्ञापन दिया। इनका काम होता है साइकिल से एक पुलिस स्टेशन से दूसरे के बीच दस्तावेज पहुंचाना। वांछित योग्यता थी मात्र पांचवीं पास। इस पद के लिए करीब 93,000 लोगों ने आवेदन किया। चयन बोर्ड यह देख कर हैरान रह गया कि आवेदनकर्ताओं में 50,000 स्नातक थे, इनमें बी.टैक भी शामिल थे तो 28,000 अधिस्नातक (एमबीए भी) थे और 3700 पीएच.डी. डिग्रीधारी थे। इसी साल रेलवे भर्ती बोर्ड ने लेवल-१ की 63,000 रिक्तियों के लिए विज्ञापन जारी किया। गेटमैन और पोर्टर जैसे पदों के लिए योग्यता दसवीं पास रखी गई। इसके लिए 1.9 करोड़ आवेदन आए। इनमें अधिकतर स्नातक व अधिस्नातक थे। 2019 में महाराष्ट्र सरकार की कैंटीन के लिए चयनित 13 में से 12 वेटर स्नातक थे। न्यूनतम वांछित योग्यता थी-चौथी पास। काम था-सब्जियां काटना, बर्तन मांजना और फर्श साफ करना। ये अच्छे शिक्षित लोग कम पढ़े-लिखों के लिए निकाली गई नौकरियों पर क्यों हाथ आजमा रहे हैं? असल में पर्याप्त नौकरियां नहीं हैं। विडम्बना यह है कि अर्थव्यवस्था का विकास हो रहा है, लेकिन रोजगार घट रहे हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) और सेंटर फॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस(सीईडीए) के संयुक्त अध्ययन के अनुसार, निर्माण क्षेत्र में कामगारों की संख्या 2016-17 में 5.1 करोड़ थी, जो 2020-21 में करीब 50 प्रतिशत गिर कर 2.7 करोड़ ही रह गई। रोजगार में सबसे ज्यादा कमी आई श्रम आधारित क्षेत्रों में, जैसे टेक्सटाइल, निर्माण सामग्री और खाद्य प्रसंस्करण में। 2016-17 में टेक्सटाइल क्षेत्र में 1.26 करोड़ कामगार थे, जो 2020-21 में घटकर 55 लाख रह गए। निर्माण सामग्री कारखानों में यह संख्या 1.14 करोड़ थी, जो घटकर 48 लाख रह गई। पश्चिमी देशों में अनुभव किया गया कि जब अर्थव्यवस्था का विकास हुआ तो श्रम शक्ति कृषि से निर्माण क्षेत्र की ओर चली जाती है, परन्तु भारत में इसके विपरीत हो रहा है। निर्माण क्षेत्र की श्रम शक्ति पुन: कृषि की ओर लौट रही है। सीआइएमई-सीईडीए अध्ययन में पाया गया कि 2016-17 से 2020-21 के बीच कृषि क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों की संख्या बढ़ गई। कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों में केवल अशिक्षित ही हों, ऐसा नहीं है, बल्कि शिक्षित लोग भी हैं, जिन्हें कोई नौकरी नहीं मिली या निर्माण क्षेत्र से निकाल दिए गए।
स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था गलत दिशा में है। श्रम शक्ति संपन्न भारत की अर्थव्यवस्था अधिक श्रमिक व कम मशीन आधारित होनी चाहिए, लेकिन यह पूंजी आधारित (ज्यादा मशीन, कम श्रमिक) अर्थव्यवस्था बन रही है। पिछले दो दशकों में न तो यूपीए और न ही एनडीए की सरकारों ने यह दिशा ठीक करने का प्रयास किया, क्योंकि जीडीपी बढ़ रही थी। ध्यान रहे, जीडीपी ही सब कुछ नहीं है। भारत के तेज रफ्तार वाली अर्थव्यवस्था बनने की खुशी के साथ ही उदासी की एक वजह यह भी है कि इस विकास में रोजगार नहीं है। अर्थव्यवस्था के ऐसे विकास का क्या फायदा, जिसमें लोगों का विकास नहीं हो रहा। देश की करीब आधी आबादी की आयु 25 वर्ष से कम है। जनसांख्यिकीय लाभांश मानी जाने वाली भारत की युवा जनसंख्या को वरदान माना जाता है, परन्तु बिना रोजगार के यह वरदान अभिशाप बन सकता है।
देश में रोजगार बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सरकार निर्माण क्षेत्र को पूंजी की बजाय श्रम आधारित बनाने पर काम करे, जो कि नहीं हो रहा। सरकार ने 2022 के मध्य में घोषणा की थी कि अगले डेढ़ साल में वह अपने मंत्रालयों व विभागों में 10 लाख युवाओं को रोजगार देगी। जिस देश में 2022 मध्य से 2023 के अंत तक 1 करोड़ से अधिक लोग रोजगार की कतार में हों, वहां केवल 10 लाख को सरकारी नौकरी देने से समस्या हल नहीं होगी। आने वाले वर्षों के दौरान बढऩे वाली बेरोजगारों की संख्या को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। भारत बेरोजगारी से निपटने के लिए चार स्तरीय रणनीति अपना सकता है- पहला, सरकार श्रम प्रधान उद्योगों (जैसे टैक्सटाइल, कपड़ा, चमड़ा व जूता, खाद्य प्रसंस्करण, फर्नीचर) को बढ़ावा देने के लिए अपनी नीतियां बदले। मई 2023 में श्रम प्रधान क्षेत्र के लिए भी पीएलआइ (उत्पाद संबद्ध प्रोत्साहन) योजना शुरू की है, जो सही दिशा में उठाया कदम है। दूसरा,सरकार प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना को पूरी तरह सार्थक बनाए। तीसरा, उद्योग जगत को कौशल विकास की जिम्मेदारी साझा करनी चाहिए। गूगल व आइबीएम जैसी कम्पनियां अपने अलग कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाती हैं। चार, शिक्षा स्कूल-कॉलेज व उद्योगों के बीच सेतु बने। पाठ्यक्रमों को करियर और कार्य आधारित प्रशिक्षण के साथ जोड़ा जाए।