पंजाब: अतीत से सबक नहीं सीखा तो परिणाम भयावह
Published: Mar 09, 2023 09:22:51 pm
पंजाब पर आप की राजनीतिक पकड़ ढीली होने का संकेत पिछले साल जून में ही मिल गया था, जब मार्च में सत्ता का प्रचंड जनादेश पाने के तीन महीने बाद ही वह खालिस्तान समर्थक पूर्व आइपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान से संगरूर लोकसभा उप चुनाव में हार गई थी।


पंजाब: अतीत से सबक नहीं सीखा तो परिणाम भयावह
राजकुमार सिंह
वरिष्ठ पत्रकार पंजाब में विधानसभा चुनाव को वर्ष भर हो गया है, पर इस दौरान हालात तेजी से बदहाल हो रहे हैं। आप नेताओं ने न सिर्फ पीली पगड़ी बांध कर चुनाव प्रचार करते हुए अमर शहीद भगत सिंह के सपने दिखाए, बल्कि ऐतिहासिक जनादेश मिलने पर उनके पैतृक गांव खटकड़ कलां में भगवंत मान ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ भी ली। युवाओं में फैलते नशे के जहर के चलते फिल्म बनी थी 'उड़ता पंजाबÓ। इसलिए, आप नेताओं ने जुमला दिया कि हम 'उठता पंजाबÓ बनाएंगे, पर साल भर में देश के इस सीमावर्ती राज्य की जो तस्वीर उभर रही है, वह चिंताजनक है। भिंडरावाले और खालिस्तान के साए फिर से महसूस होने लगे हैं।
पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से हथियार और नशीले पदार्थ भेजे जाने की घटनाएं नई नहीं हैं, लेकिन उनमें वृद्धि डराने वाली है। आरपीजी और ड्रोन हमले की घटनाएं पिछले साल भी हुई थीं। गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या हुई, तो बेअदबी के एक आरोपी को भी मार डाला गया, पर हाल ही में अजनाला में जिस तरह हथियारबंद खालिस्तान समर्थकों ने पुलिस थाने पर हमला बोला और 24 घंटे का अल्टीमेटम देकर अपहरण के आरोप में गिरफ्तार अपने साथी को रिहा भी करवा लिया, इससे कानून -व्यवस्था की स्थिति पर भी सवाल उठता है। फिर भी मुख्यमंत्री मान कानून-व्यवस्था नियंत्रण में बताते हैं और 'पंजाब की धरती नफरत पैदा नहीं करतीÓ जैसे जुमले बोलते हैं, तो वैकल्पिक राजनीति के पैरोकारों के तेजी से परंपरागत राजनेताओं के रंग में रंग जाने का ही नमूना पेश करते हैं। भगवंत मान मूलत: लोक गायक और कॉमेडियन रहे हैं, पर वे यह बात भुला देना चाहते हैं कि कहीं की भी धरती नफरत पैदा नहीं करती। नफरत पैदा करती है राजनीति। यह कड़वा सच पंजाब के निवासियों से बेहतर और कौन जानता है? लगभग दो दशक तक आतंकवाद के रक्तरंजित दौर से गुजरा पंजाब आज चौतरफा चुनौतियों से घिरा नजर आता है, पर लगता नहीं कि हमारी राजनीति ने अतीत से कोई सबक सीखा है। सवाल यह नहीं है कि सरकार-दर-सरकार मजबूत होते गए माफिया राज और अंतहीन भष्टाचार से मुक्ति पंजाबियों के लिए सपना बन कर रह गई है। उससे भी बड़ा सवाल आज पंजाब में अमन-चैन का बन गया है।
अमृतसर के अजनाला पुलिस थाने पर कट्टरपंथी उपदेशक अमृतपाल सिंह के समर्थकों के हमले और पहले से गिरफ्तार साथी लवप्रीत की अल्टीमेटम के बाद रिहाई के बावजूद मुख्यमंत्री का कानून-व्यवस्था नियंत्रण में होने का दावा दरअसल सत्ता-राजनीति की कथनी-करनी में अंतर का प्रमाण ही है। मुख्यमंत्री बता रहे हैं कि अमृतपाल जैसे लोगों को विदेश से फंडिंग और पाकिस्तान से शह मिल रही है, पर यह नहीं बताते कि उनकी सरकार के हाथ किसने बांध रखे हैं? अमृतपाल केंद्रीय गृह मंत्री को खुलेआम धमकी नहीं देता, तो भी यह सवाल तो पूछा ही जाना जरूरी है कि देश की एकता-अखंडता को चुनौती देनेवाले इस शख्स के विरुद्ध कार्रवाई ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट बंद कर देने तक ही सीमित क्यों है? दूसरे के घर में घुस कर मारने का दम है, तो कोई हमारे घर में रह कर ही कैसे सेंध लगा पर रहा है?
अजनाला प्रकरण के बाद जिस तरह की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आई हैं, वे अतीत के अनुभव के मद्देनजर चिंता ही बढ़ाती हैं। 1980 के आसपास कांग्रेस के राजनीतिक अंतर्कलह से पोषित स्वयंभू संत जरनैल सिंह भिंडरावाले देखते-देखते ही खालिस्तान का पैरोकार बन गया, तो पंजाब को अलगाववाद और आतंकवाद की अंधी सुरंग में फिसलने बचाया नहीं जा सका, क्योंकि तब तक वह पाकिस्तान की भारत विरोधी साजिशों का भी मोहरा बन चुका था। उस सुरंग से निकलने की पंजाब और देश ने भी भारी कीमत चुकाई थी।
पंजाब पर आप की राजनीतिक पकड़ ढीली होने का संकेत पिछले साल जून में ही मिल गया था, जब मार्च में सत्ता का प्रचंड जनादेश पाने के तीन महीने बाद ही वह खालिस्तान समर्थक पूर्व आइपीएस अधिकारी सिमरनजीत सिंह मान से संगरूर लोकसभा उप चुनाव में हार गई थी। वहां से भगवंत मान लगातार दो बार चुनाव जीते थे। उसके बाद लगातार हो रही घटनाएं शासन तंत्र पर भी आप सरकार की पकड़ कमजोर होने का ही उदाहरण है। जाहिर है, राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के साथ प्रशासनिक अनुभव की कमी तथा पुलिस-प्रशासन से अपेक्षित सहयोग न मिल पाना भी चुनौतियों से निपटने में आप की नाकामी के कारण हो सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में भारत विरोधी गतिविधियां और हिंदुओं पर हमले बताते हैं कि हमारे सीमावर्ती संवेदनशील राज्य पंजाब पर पाकिस्तान की कुदृष्टि लगातार बनी हुई है और कट्टरपंथियों को कई देशों में शह मिल रही है। इसलिए यह केंद्र-राज्य सरकार अथवा राजनीतिक दलों के बीच तकरार का मुद्दा नहीं होना चाहिए। हमें याद रखना चाहिए कि राजनीति देश के लिए की जाती है, देश राजनीति के लिए नहीं होता। देश सबका है और इसकी एकता-अखंडता बरकरार रखना सबकी जिम्मेदारी है।