भक्ति के लिए चाहिए, बिना शर्त संपूर्ण समर्पण। आप किसके प्रति समर्पित हैं या किसके भक्त हैं, मुद्दा यह नहीं है। यदि आप सोचते हैं कि मैं भक्त बनना चाहता हूं, पर आपके मन में यह संदेह है कि ईश्वर है भी या नहीं, फिर आप भ्रम में हैं। जिसे मैं भक्ति कहता हूं उसकी गहराई ऐसी है कि यदि ईश्वर नहीं भी हो, तो भी वह उसका सृजन कर सकती है, उसको उतार सकती है। जो इन्सान अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त है, जो अपने काम में पूरी तरह समर्पित है, वही सच्चा भक्त है। उसे भक्ति के लिए किसी देवता की आवश्यकता नहीं होती। भक्ति इसलिए नहीं आई, क्योंकि भगवान हैं। चूंकि भक्ति है, इसीलिए भगवान हैं।