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मैं ही समाज

आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजस्थान पत्रिका के दो बड़े सामाजिक ‘कर्तत्वÓ का लोकार्पण करेंगे। राजस्थान में अपनी तरह का शायद यह पहला ही आयोजन है। हम मोदी जी के हृदय से आभारी हैं कि उनके इस अनुग्रह से ‘सम्वाद उपनिषद’ और ‘पत्रिका गेट’ दोनों ही राष्ट्रीय धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएंगे। सत्ता के शीर्ष पुरुषों द्वारा वैदिक वाङ्गमय के प्रति ऐसा बोध भी दुर्लभ है। मेरे लिए तो व्यक्तिश: इससे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान भी क्या होगा? यह सम्मान मैं अपने आचार्य एवं पितृ पुरुष को समर्पित करता हूं।

Sep 08, 2020 / 10:58 am

Gulab Kothari

Gulab Kothari

गुलाब कोठारी

आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) राजस्थान पत्रिका (Rajasthan Patrika) के दो बड़े सामाजिक ‘कर्तत्व’ का लोकार्पण करेंगे। राजस्थान (Rajasthan) में अपनी तरह का शायद यह पहला ही आयोजन है। हम मोदी जी के हृदय से आभारी हैं कि उनके इस अनुग्रह से ‘सम्वाद उपनिषद’ (Samvad Upnishad) और ‘पत्रिका गेट’ (Patrika Gate) दोनों ही राष्ट्रीय धरोहर के रूप में प्रतिष्ठित हो जाएंगे। सत्ता के शीर्ष पुरुषों द्वारा वैदिक वाङ्गमय के प्रति ऐसा बोध भी दुर्लभ है। मेरे लिए तो व्यक्तिश: इससे बड़ा राष्ट्रीय सम्मान भी क्या होगा? यह सम्मान मैं अपने आचार्य एवं पितृ पुरुष को समर्पित करता हूं।

इस घटना के दो मुख्य पहलू हैं-एक, दूर बैठकर भी सम्बन्ध/भूमिका को निभाया जा सकता है। तकनीक के आज के युग में बाहरी जीवन में यह संभव हो गया है। यह अपरा विद्या है। भारतीय ज्ञान का आधार परा-विद्या है। भीतर बैठे-बैठे ही बाहर भूमिका निभा सकते हैं। ‘ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति ॥’ गीता 18/61। तब प्रहलाद की घटना हो या द्रोपदी का चीर हरण, प्रश्न केवल आस्था का है। आस्था, स्वयं में आस्था ही ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है। स्वयं में जीने वाला व्यक्ति एक स्थान पर बैठकर भी कहीं भी, किसी की भी सहायता कर सकता है। यहां वाक् ही ब्रह्म है। शब्द भी वही है, नाद भी वही है, अर्थ भी वही है।

सृष्टि का यही रहस्य है। जड़ एक है-ईश्वर रूप, विश्व एक वृक्ष है और हम सब इस वृक्ष के पत्ते हैं। कोई पत्ता जड़ से अलग नहीं हो सकता-सूख जाएगा। जो जड़ को प्राप्त होता है, वह तना, डालियों, टहनियों, पत्तों, फूलों और फलों तक स्वत: ही पहुंच जाता है। हर पत्ता एक-दूसरे के जीवन से सीधे जुड़ा रहता है। एक-दूसरे का अंग होता है। इस दृष्टि से आज धर्मों, जातियों और समुदायों-सम्प्रदायों ने भारत के वृक्ष को सुखाना शुरू कर दिया है।

क्या कोई भी पत्ता स्वयं के लिए कार्य करता है-जीता है? यह प्रश्न आप फूलों-फलों से भी पूछकर देखें। सब मिलकर किसके लिए जीते हैं? स्वयं के लिए तो नहीं। बीज अपने जीवन को न्यौछावर करता है-जमीन में गड़कर। स्वयं फल खाने के लिए? वृक्ष बनकर अपना सर्वस्व समाज को-मनुष्य, पशु, पक्षी आदि-लुटा देने के लिए। स्वयं की रक्षा/चिन्ता को साथ लिए जीता, तो वृक्ष ही नहीं बन पाता। समाज के लिए वह जड़ रूप ईश्वर बन जाता है। अन्तर केवल इतना ही है कि सृष्टि की जड़-ईश्वर-ऊपर, पेड़ नीचे की ओर बढ़ता है। भूपिण्ड पर जड़ नीचे-पेड़ ऊपर उठता है। यही उत्थान का मार्ग है। यही सेवा का मार्ग है। यही सामाजिक सरोकार है।

सेवा में अहंकार मिटता है। व्यक्ति स्वयं की ही सेवा करता है। अपनी आत्मा के अंश का दान दूसरे की आत्मा में करता है। दोनों एक हो जाते हैं। एक ही पेड़ के पत्ते होने की अनुभूति स्फूर्त होती है। व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जुड़ते ही प्राणवान हो उठता है। ‘अमृतं जलम्’ अभियान की प्राणवत्ता जन-जन को याद होगी। देने वाला वही-पाने वाला भी वही। मैं ही पशु-पक्षी बनता हूं, वृक्ष-पर्वत बनता हूं। मुझे ही सामाजिक सरोकारों के माध्यम से देव-असुर शक्ति को एक मंच देना है, ताकि आम आदमी भी लोकहित का चिन्तन करके अपनी आत्मा में गौरवान्वित हो सके। उठो!!

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