scriptImitation of US economy is dangerous | अमरीकी अर्थव्यवस्था का अनुकरण घातक | Patrika News

अमरीकी अर्थव्यवस्था का अनुकरण घातक

Published: Mar 16, 2023 09:29:55 pm

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Patrika Desk

आज अमरीका के पास ताकत है, इसलिए कोई भी ऋणदाता ऋण लौटाने के लिए नहीं बोल पाता, लेकिन जिस भी दिन शक्ति क्षीण होनी शुरू होगी, तब सभी छोटे-बड़े देश ऋण लौटाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर देंगे। हमें हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है तो हमें दीर्घकालीन सोच वाले विचारकों को प्रबंधन से जोडऩा होगा

अमरीकी अर्थव्यवस्था का अनुकरण घातक
अमरीकी अर्थव्यवस्था का अनुकरण घातक
डॉ. एन. एम. सिंघवी
प्रशासनिक सुधार, मानव संसाधन विकास व जनशक्ति आयोजना समिति, राजस्थान के अध्यक्ष रहे हैं

हाल ही अमरीका में दो बैंक धराशायी हो गए। एक सिलिकॉन वैली बैंक तथा दूसरा सिग्नेचर बैंक। सिलिकॉन वैली बैंक अमरीका का १६ वें नम्बर का बड़ा बैंक था। कोविड के समय अमरीका में फेड ने ब्याज दर शून्य कर दी, जिससे बॉन्ड प्रतिफल बढ़ गया। बैंक बॉंन्ड भी खरीद कर रखते हैं। इस बैंक के प्रबंधकों ने घाटा कम करने के लिए हेजिंग नहीं की और ब्याज दरें बढऩे पर बॉंन्ड प्रतिफल कम हो गया। इस हानि का प्रबंधन पूर्वानुमान नहीं लगा पाया। इसी बैंक के उच्च पदस्थ प्रशासकों ने पिछले छह महीने से अपने शेयर बेचने शुरू कर दिए थे। इस पर भी अमरीका की नियामक संस्थाओं ने संज्ञान नहीं लिया।
फॉक्स ने एक सप्ताह पहले सिलिकॉन बैंक को बेस्ट बैंक कहा था। जेपी मोर्गन ने एक सप्ताह पहले ही इस बैंक के शेयर के लिए क्रय की रेटिंग दी थी। इस रेटिंग पर क्या वहां पर किसी प्रकार की कार्रवाई का प्रावधान है? इससे पहले साल 2008 में वॉशिंगटन म्यूचुअल बैंक डूब गया था। साल 2008 की आर्थिक मंदी ने अमरीका ने बैंकों के लिए नियम सख्त बना दिए थे। इसके बावजूद अमरीका के दो बैंकों का डूबना कई तरह के सवाल खड़े करता है। अमरीका की अर्थव्यवस्था पर सभी अर्थशास्त्री विश्वास करके चलते हैं। वहां की अर्थव्यवस्था पर सामान्यत: वहीं के विश्वविद्यालयों में शिक्षित प्रबंधकों का नियंत्रण है। अमरीकी नियामक संस्थाओं तथा रेटिंग एजेंसियों पर भी वहीं के शिक्षित लोगों का नियंत्रण है। इतना सब कुछ होने के उपरांत भी अमरीका की अर्थव्यवस्था पर हर पांच-दस साल में भारी संकट आ जाता है। विडंबना यह है कि हमारे देश में भी वहीं से प्रशिक्षित पेशेवरों को ही प्राथमिकता दी जाने लगी है। ये दूसरे पढ़े-लिखे दीर्घकालिक सोच वालों को हेय दृष्टि से देख कर उनका अपमान करने से भी नहीं चूकते। हम खुद भी हमारे बच्चों को वहां शिक्षा प्राप्त करने भेजना चाहते हैं। पास में धन नहीं हो तो ऋण लेकर भेजना चाहते हैं। वहां की रेटिंग एजेंसियों पर हमारे शेयर बाजार भी आंखें मूंद कर विश्वास करते हैं। भारत के विश्लेषक उन्हीं के विश्लेषण पर चर्चा करते हैं।
यहां प्रश्न यह उठता है कि जिन अमरीकी संस्थाओं की कार्य प्रणाली के आधार पर हम हमारी संस्थाओं का निर्माण करना चाहते हैं, वह कितना उचित है? हमें हमारी संस्कृति व बचत पर आधारित अर्थव्यवस्था को ही विकसित करने पर फिर से विचार करना होगा। हमने यदि अमरीका जैसी ऋण व युद्ध सामग्री पर आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण किया तो दीर्घकाल में आर्थिक विनाश होना तय है। आज अमरीका के पास ताकत है, इसलिए कोई भी ऋणदाता ऋण लौटाने के लिए नहीं बोल पाता, लेकिन जिस भी दिन शक्ति क्षीण होनी शुरू होगी, तब सभी छोटे-बड़े देश ऋण लौटाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर देंगे। हमें हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है तो हमें दीर्घकालीन सोच वाले विचारकों को प्रबंधन से जोडऩा होगा
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