परशुराम जड़ हो गए थे। अब तक दूर खड़े महर्षि विश्वामित्र आगे बढ़े और हाथ जोड़ कर रहस्यमय स्वर में कहा, ‘पहचान लिया भगवान?’ परशुराम मुस्कुराए। राम की ओर बढ़ कर समर्पण भाव से कहा, ‘शीघ्रता कीजिए प्रभु! अपने बाण से मेरी समस्त प्रतिष्ठा को समाप्त कर दीजिए। अब से यह युग आपका है, आप संभालें इसे। मैं निश्चिंत हो कर महेंद्र पर्वत जाकर तप करूंगा।’ राम ने बाण वायु में छोड़ दिया और परशुराम उन्हें प्रणाम कर के वापस महेंद्र पर्वत चले गए। प्रश्न यह है कि क्या बाण से पुण्यों का नाश हो सकता है? नहीं। वस्तुत: भगवान राम के प्रत्यंचा चढ़ाने और परशुराम के समर्पण से उनके द्वारा अर्जित की गई सदैव अपराजेय रहने की प्रतिष्ठा का नाश हो गया था। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार और अपने युग के नायक थे। राम से युद्ध के आग्रह में उनका अहंकार नहीं, कत्र्तव्यबोध था। वे राम को यों ही अगले युग का नायक स्वीकार नहीं कर सकते थे। इसके लिए राम की शक्ति, धैर्य, और साहस की परीक्षा आवश्यक थी, जो इसी घटना के समय पूरी हुई। तभी रामयुग में भगवान परशुराम पूर्णत: शांत ही रहे।