scriptpatrika opinion गेहूं की बढ़ती कीमतों के बीच अहम फैसला | Important decision amidst rising wheat prices | Patrika News

patrika opinion गेहूं की बढ़ती कीमतों के बीच अहम फैसला

Published: May 16, 2022 08:00:43 pm

Submitted by:

Patrika Desk

कम उत्पादन की आशंका से सरकार भी चिंतित है। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध को इस चिंता से भी जोड़ा जा रहा है। प्रतिबंध के फैसले के बाद उन कंपनियों और व्यापारियों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है, जो निर्यात के लिए पहले से गेहूं का बड़ा स्टॉक जमा कर चुके हैं।

patrika opinion गेहूं की बढ़ती कीमतों के बीच अहम फैसला

patrika opinion गेहूं की बढ़ती कीमतों के बीच अहम फैसला

घरेलू स्तर पर बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के उपायों के तहत गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के भारत सरकार के फैसले ने दुनियाभर में चिंता बढ़ा दी है। रूस, अमरीका, यूक्रेन, कनाडा और फ्रांस दुनिया के पांच सबसे बड़े गेहूं निर्यातक हैं। निर्यात में सबसे बड़ी हिस्सेदारी (करीब 30 फीसदी) रूस और यूक्रेन की है। इन दोनों के बीच जारी युद्ध से दुनिया में गेहूं की आपूर्ति का हिसाब-किताब गड़बड़ा गया है। इन विषम हालात में गेहूं के लिए जिन देशों की उम्मीदें भारत पर टिकी हुई थीं, उन्हें झटका लगा है। दरअसल, भारत सरकार ने 12 मई को गेहूं के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए टास्क फोर्स बनाने की घोषणा की थी और अगले दिन ही निर्यात पर प्रतिबंध की घोषणा कर दी गई।
ऐसे समय में, जब लगातार बढ़ती महंगाई के आंकड़ों ने भारत की आम जनता का आटा गीला कर रखा हो, सरकार का फैसला काफी अहम है। अप्रेल में गेहूं और आटे की खुदरा महंगाई दर 9.59 फीसदी पर पहुंच गई, जो मार्च में 7.77 फीसदी थी। सालभर पहले खुदरा बाजार में आटे की औसत कीमत 2,880 रुपए प्रति क्विंटल थी। अब यह बढ़कर 3,291 रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। बेकरी उत्पादों के दाम भी 8-10 फीसदी बढ़ गए हैं। अमरीकी अखबार ‘द इकोनॉमिस्टÓ की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण दुनिया में गेहूं की आपूर्ति उसी तरह बाधित हुई है, जिस तरह प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुई थी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमत 30 फीसदी से ज्यादा बढ़ चुकी है।
भारत में गेहूं की कीमत बढऩे के पीछे यूक्रेन संकट के अलावा कुछ घरेलू कारण भी हैं। इनमें सबसे बड़ा कारण है गेहूं उत्पादन पर मौसम की मार। इस साल उत्तर और मध्य भारत दोनों इलाकों में समय से पहले गर्मी की शुरुआत ने उत्पादन पर असर डाला है। गेहूं की फसल को मार्च तक कम तापमान की जरूरत होती है। पर मार्च में ही तापमान बढऩे से कई जगह फसल पूरी तरह नहीं पक सकी। सरकार ने फिलहाल आंकड़े जारी नहीं किए हैं, लेकिन पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के किसानों के हवाले से कुछ कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस बार गेहूं उत्पादन 15-20 फीसदी कम होने के आसार हैं।
कम उत्पादन की आशंका से सरकार भी चिंतित है। गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध को इस चिंता से भी जोड़ा जा रहा है। प्रतिबंध के फैसले के बाद उन कंपनियों और व्यापारियों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है, जो निर्यात के लिए पहले से गेहूं का बड़ा स्टॉक जमा कर चुके हैं। इसे घरेलू बाजार में भेजने के बजाय वे निर्यात से रोक हटने का लंबा इंतजार कर सकते हैं। उनकी जमाखोरी पर अंकुश जरूरी है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो