2018 में जितने महत्त्वपूर्ण निर्णय हुए, उतने शायद पहले कभी नहीं हुए होंगे। न्यायाधीशों की प्रेस कॉन्फ्रेंस ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के कार्यकाल को चाहे विवादों मे खींच लिया हो, पर जितने निर्णय निरन्तर उनकी पीठ ने किए, ऐसा अन्य उदाहरण मिलना मुश्किल है। 26 सितंबर के निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति/जन जाति के राजकीय कर्मचरियों की पदोन्नति में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का जो आदेश पहले दिया गया था, उसके विरुद्ध प्रस्तुत की गई अपील सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी।
आधार अधिनियम की धारा 57 को रद्द करते हुए 26 सितंबर के निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निजी कम्पनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं। 27 सितंबर के निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले से जुड़े दो प्रार्थना पत्र ठुकरा दिए थे। 28 सितंबर के निर्णय द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण किए जाने के लिए सहमति जताई थी। न्यायालय में जिस तरह सुनवाई होती है उसे जनता देख सके, सुप्रीम कोर्ट इसका समर्थक है।
दांडिक प्रकरणों में लिप्त राजनीतिज्ञों के लिए कठोर कानून बनाने की अनुशंसा भी सुप्रीम कोर्ट ने की। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि अपराधों में लिप्त राजनीतिज्ञों के मामलों का शीघ्र निस्तारण किया जाए।
(लेखक राजस्थान उच्च न्यायालय में न्यायाधीश और राष्ट्रीय विधि आयोग के सदस्य रहे हैं।)