इमरान को मालूम है कि मोदी और मजबूत बनकर उभरे हैं। साथ ही कश्मीर घाटी में पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी रखने वालों को इस चुनाव में जनता ने नकार दिया है। पीडीपी की महबूबा मुफ्ती भी चुनाव हार गईं। सुरक्षा बलों के आतंककारियों पर कसते शिकंजे से भी पाक घबराया हुआ है। जिस तरह सुरक्षा बल घाटी में लश्कर समेत तमाम पाक परस्त आतंकी गुटों का सफाया कर रहे हैं, घाटी में हिंसा की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है। अब वहां के बाशिंदे भी अमन-चैन चाहते हैं।
पर्यटन सीजन की शुरुआत और आगामी अमरनाथ यात्रा के चलते आम नागरिक भी काम-धंधों में जुट गया है। ज्यादातर अलगाववादी नेता भी नजरबंद हैं या जेलों में हैं। यही वजह है कि इमरान खान क्षेत्रीय विकास, शांति और समृद्धि की दुहाई देकर भारत से वार्ता को उत्सुक हैं। पाकिस्तान के प्रस्ताव पर विदेश मंत्रालय ने सधा हुआ जवाब भेजा है। कहा है कि भारत सदैव ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति पर चला है लेकिन पाकिस्तान को इसके लिए पहले हिंसा और आतंक से मुक्त माहौल बनाने का विश्वास ही नहीं दिलाना होगा, बल्कि इसे करके भी दिखाना होगा। पाकिस्तान आर्थिक रूप से टूटा है। भारत से व्यापार प्रतिबंध के बाद उसकी मुद्रा का जबर्दस्त अवमूल्यन हुआ है।
चीन ने भी मसूद अजहर के प्रति अपनी नीति बदलकर संकेत दे दिए हैं कि वह पाकिस्तान का कितना भी हिमायती क्यों न हो, भारत से अच्छे रिश्ते भी उसकी प्राथमिकता में शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए यह अच्छा मौका है कि वह अन्तरराष्ट्रीय दबाव के बीच पाकिस्तान को अपनी शर्तों पर काम करने को मजबूर कर सकते हैं। पुलवामा हमले के बाद बालाकोट में एयर स्ट्राइक से पूरे विश्व में यह संदेश जा चुका है कि भारत अब डरने वाला नहीं। जरूरत हुई तो भीतर घुसकर भी मार सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की नई सरकार के शपथ ग्रहण के बाद पहले विदेश दौरे पर मालदीव जाने की संभावना है। फिर 13-14 जून को उन्हें किरगिस्तान की राजधानी बिशकेक में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में हिस्सा लेना है। इस शिखर बैठक में उनकी मुलाकात चीन और रूस के राष्ट्रपतियों से होगी। इमरान खान से भी आमना-सामना हो सकता है। पिछले मौकों पर मोदी ने दृढ़ता का परिचय दिया था। मुलाकात इस बार भी हो, तो अपनी ही शर्तों पर हो।