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डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास बढऩे से बदल सकता है माहौल

Published: Jul 01, 2022 08:34:31 pm

Submitted by:

Patrika Desk

आशा है कि जन मानस में व्याप्त संदेह, भ्रांतियों का तिमिर छटेगा और चिकित्सक एवं रोगियों के सम्बंध प्रगाढ़ हो सकेंगे। इसी से स्वस्थ भारत का निर्माण होगा।

डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास बढऩे से बदल सकता है माहौल

डॉक्टर और मरीज के बीच विश्वास बढऩे से बदल सकता है माहौल

डॉ. सुरेश पाण्डेय
चिकित्सक और कई
पुस्तकों के लेखक


भारत में आज डॉक्टर्स-डे मनाया जा रहा है। डॉ. बिधान चंद्र रॉय के जन्मदिवस को ‘डॉक्टर्स-डे’ के रूप में मनाया जाता है। पटना (बिहार) में जन्म लेने वाले रॉय ने पहले कोलकाता और फिर लंदन (इंग्लैंड) में चिकित्सा विज्ञान की पढ़ाई की और फिर भारत लौटकर न केवल एक बेहतरीन डॉक्टर के रूप में अपनी पहचान बनाई, बल्कि महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। कांग्रेस के नेता रहने के बाद वे पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री भी बने। सुश्रुत, चरक और धन्वंतरि के युग से ही भारतीयों की चिकित्सकों में प्रगाढ़ आस्था रही है। उन्हें भगवान के बाद ‘पृथ्वी पर जीवित भगवानÓ कहा जाता रहा। बदलते परिवेश में डॉक्टर चिकित्सक के बीच विश्वास की डोर कमजोर होती चली गई। मॉडर्न मेडिकल साइंस के क्रांतिकारी शोधों के फलस्वरूप चिकित्सकीय सुविधाओं का लाभ हर वर्ग तक पहुंचा। इसके बावजूद रोगियों की बढ़ती अपेक्षाओं अथवा उपचार/ऑपरेशन में सफलता नहीं मिल पाने अथवा जीवन न बचा पाने की स्थिति में रोगी के परिजन चिकित्सक पर अपना गुस्सा उतारने लगे। चिकित्सक के साथ मारपीट अथवा अस्पताल में होने वाली तोडफ़ोड़ के मामले आज चंद मिनटों में सोशल मीडिया के माध्यम से मेडिकल प्रोफेशनल ग्रुप्स में तेजी से शेयर किए जा रहे है। इसके कारण युवा चिकित्सकों के मन में नकारात्मक भाव पैदा होता है। फलस्वरूप भारत के प्रतिभाशाली युवा चिकित्सकों का विदेश में पलायन बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति वाकई चिंताजनक है।
आज दुनिया भर में और खास तौर से भारतवर्ष में डॉक्टरों और मरीजों के बीच विश्वास का रिश्ता काफी कमजोर होता जा रहा है। चिकित्सक के प्रति बढ़ते अविश्वास के कारण अस्पतालों में चिकित्सकों के साथ आए दिन मारपीट और तोडफ़ोड़ होती है। मरीजों को शिकायत है कि डॉक्टर अक्सर संवेदनहीन, अभिमानी, बेरूखे व स्वकेन्द्रित होते हैं। वे जटिल मेडिकल शब्दों प्रयोग कर मरीज को भ्रमित करते हैं। मरीजों की तकलीफ सुनने के लिए प्रर्याप्त समय नहीं देते एवं उपचार के लिए मोटी फीस लेते हैं। वहीं डॉक्टरों को लगता है कि मरीज बीमारी व इलाज के बारे में पूरी तरह नहीं समझते हुए भी डॉक्टरों को बात-बात पर दोष देते हैं। इंटरनेट पर ‘डॉ. गूगल’ अथवा, मित्रों के माध्यम से प्राप्त की आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर डॉक्टर पर हावी होने का प्रयास करते हैं। अपनी बीमारी के प्रति अपनी जिम्मेदारी को न समझते हुए डॉक्टरों को हमेशा शक व अविश्वास से देखते है। हालांकि विश्वास की कमी, संदेहपूर्ण रवैया और गिरता नैतिक स्तर समाज के हर हिस्से को प्रभावित कर रहा है। इसके बावजूद आज भी अन्य पेशों की तुलना में लोग डॉक्टरों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इर इंसान को डॉक्टरों की जरूरत भी पड़ती है। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि डॉक्टरों और मरीजों के बीच परस्पर विश्वास का रिश्ता हो।
कोराना काल खण्ड से गुजरते समय आज का युग धर्म है कि देश को चलाने वाली सरकार एवं देश की जनता हेल्थ, हाइजीन, हॉस्पिटल को प्राथमिकता में रख कर जागरूकता बढ़ाते हुए स्वस्थ जीवन जीने का सबक ले। देश की सरकार हेल्थ केयर पर जीडीपी का 1.5 प्रतिशत नहीं वरन् पांच प्रतिशत तक खर्च करे। सरकारी अस्पतालों का इंफ्रास्ट्रक्चर एवं मानव संसाधन का नेटवर्क सुदृढ़ बनाते हुए चिकित्सकों को सरकारी नौकरियों में बेहतरीन तनख्वाह दी जाए। साथ ही आवश्यक भौतिक संसाधन भी दिए जाएं, जिससे सरकारी अस्पतालों के प्रति डॉक्टरों का आकर्षण बढ़ सके। आशा है कि कोरोना काल खण्ड में सीखे गए सबक से देश की चिकित्सा व्यवस्था में संजीवनी का संचार होगा। इसके लिए रोगियों को अपने स्वास्थ्य की सम्पूर्ण जिम्मेदारी लेते हुए स्वस्थ जीवनचर्या अपनानी होगी। चिकित्सकों को भी केयर (देखभाल), कंपैशन (दयालुता), कम्युनिकेशन (संवादशीलता), कोमपेटेंस (दक्षता) पर ध्यान देना होगा एवं रोगियों का विश्वास जीतने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे। आशा है कि डॉक्टर्स डे के अवसर पर जन मानस में व्याप्त संदेह, भ्रांतियों का तिमिर छटेगा और चिकित्सक एवं रोगियों के सम्बंध प्रगाढ़ हो सकेंगे। इसी से स्वस्थ भारत का निर्माण होगा।

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