यह भी बताया गया कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भारत आने का न्यौता स्वीकार कर लिया है। लेकिन इन राजनय घटनाक्रमों के बीच चीन को लेकर देश के आम आदमी की दुविधा बढ़ती जा रही है। उसके इस भ्रम की ठोस वजहें भी हैं। वह एक तरफ तो प्रधानमंत्री मोदी के बार-बार उमड़ते चीन प्रेम को देखता है, जिसमें वह चार साल में चीन की रिकॉर्ड यात्राएं कर चुके हैं। दूसरी तरफ डोकलाम में चीन का आक्रामक रवैया, पाकिस्तान की आतंकी हरकतों को शह, नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका और मालदीव में अड्डे जमाकर भारत को घेरने की उसकी चेष्टा हर भारतीय को चिंता में डालती है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत को चीन समेत सभी शक्तियों के साथ संतुलन बनाकर देश के विकास की गति बढ़ाने का जतन करना चाहिए। लेकिन जनता भ्रमित तब होती है जब इसी केंद्र सरकार के मातृ दल भाजपा के नेता और इस पार्टी को दीक्षित करने वाले आरएसएस के कर्ताधर्ता चीन को लेकर जहर उगलते नजर आते हैं। कभी चीनी उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान होता है तो कभी चीन को दुश्मन नंबर एक बताया जाता है। हमें तीन माह पहले हुआ एक घटनाक्रम भी याद रखना चाहिए।
हिमाचल में निर्वासित तिब्बती सरकार की ओर से हो रहे धन्यवाद समारोह में भाग लेने से सभी केंद्रीय मंत्रियों और अफसरों को रोक दिया गया था। भारत के विदेश सचिव ने पत्र में लिखा था कि समारोह में जाने से चीन को एतराज हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी को यह तो सुनिश्चित करना ही चाहिए कि उनकी सरकार जिस तरह का कूटनीतिक साहस दिखा रही है, देश में उनकी पार्टी भी वैसा राजनीतिक साहस दिखाए। चीन को लेकर अंदर-बाहर एक जैसी रणनीति रहे।